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1.11.15

गैरसैंण में विधान सभा का दूसरा सत्र : जनअपेक्षाओं के आइने में कितना खरा उतरेगा!

-पुरुषोत्तम असनोड़ा-    

गैरसैंण में विधान सभा का दूसरा सत्र 2 नवम्बर से प्रारम्भ होने जा रहा है। सरकार इसे जनभावनाओं और सरकार की प्रतिबद्धता के रुप में पेश कर रही है तो विपक्ष फिजूल की हरकत बता रहा है। उत्तराखण्ड राज्य आन्दोलन में गैरसैंण वह नाम रहा जिसने राजधानी के नाम पर आन्दोलन को बंटने नहीं दिया। उत्तराखण्ड क्रान्ति दल द्वारा 25 जुलाई 1992 में गैरसैंण को पेशावर विद्रोह के अमर नायक वीर चन्द्रसिंह गढवाली के नाम पर चन्द्रनगर कहते हुुए उत्तराखण्ड की राजधानी का औपचारिक शिलान्यास किया। हालांकि कुछ लोगों ने कालागढ नाम उछाला जरुर लेकिन 1994 के आन्दोलन के ज्वार में गैरसैंण और केवल गैरसैंण ही सर्वसम्मत नाम रहा।



राज्य गठन के बाद सरकारें देहरादून क्या जमी कि सरकारों के पालतू मीडिया ने कब्जाये हुए सुन्दर शहर को राजधानी प्रचारित कर दिया। और एक लाख की आवादी के सुन्दर दून में 3 लाख की आवादी ढूंस, वाहनों की रेलम-पेल, किस्म-किस्म के चरित्र और आदतों के लोगों ने दून को नरक बनाने में कसर नही की। ये खतरे गैरसैंण के लिए भी हैं। बावजूद इसके आनदोलनकारी लडते रहे उन अपेक्षाओं के लिए जो उत्तराखण्ड राज्य आन्दोलन की थी। 13 बार उत्तराखण्ड राज्य और राजधानी, उत्राखण्डी परिकल्पनाओं को साकार करने की मांग पर आनशन करने वाले बाबा मोहन उत्तराखण्डी 8 अगस्त 2004 अनशन के 38वें  प्रशासन ने बेनीताल से जबरन उठाया और 9 अगस्त को उनकी लाश सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र कर्णप्रयाग में मिली। जो आन्दोलनकारियों के अनुसार हत्या थी।

उत्तराखण्ड महिला मंच ने 2 अक्टूबर 2004 से गैरसैंण राजधानी की मांग को लेकर 67 दिन का आमरण अनशन किया और संयुक्त संधर्ष समिति ने गेरसैंण- देहरादून, गैरसैंण- बागेश्वर की पदयात्रा की, देहरादून में दर्जनों प्रदर्शन, ललकार रैली और गैरसैंण में  उत्तराखण्ड क्रान्ति दल ने दर्जनों आयोजन, रैलियां की। 9 मई सन् 2012 की गैरसेंण रामलीला मैदान की वह सभा आज बदले परिदृश्य का पहला कदम कहा जा सकता है जब तत्कालीन मुख्य मंत्री विजय बहुगुणा ने तत्कालीन सांसद सतपाल महाराज के कहने पर गैरसैंण में कैबिनेट बैठक की घोषणा की। स्थानीय विधायक डा अनुसूया प्रसाद मैखुरी ने विजय बहुगुणा को कर्णप्रयाग क्षेत्र से चुनाव लडने का न्योता दिया। 3 नवम्बर 12 को हुई कैबिनेट में गैरसैंण में विधान  भवन बनाने का निर्णय लिया गया। और भराडीसैंण में बन रहा विधान भवन और गैरसैंण में आयोजित हो रहा विधान सभा का दूसरा सत्र अब कयासें और अटकलों से आगे बढे तब ही उसकी सार्थकता होगी।

गैरसैंण राजधानी का अर्थ था उत्तराखण्ड जो मूलतः हिमालयी पहाडी राज्य है कि राजधानी पहाडों में में हो, जहां से राज्य की योजनाऐं, नीतियां बनें और उत्तराखण्ड के केन्द्र से विकास की धारा  पूरे राज्य को अभिसंचिंत करे। विधानसभा अध्यक्ष गोविन्दसिंह कुंजवाल ने गैरसैंण राजधानी की मुहिम ली है, उनके अलावा पूर्व सांसद प्रदीप टम्टा आन्दोलन के दौर से ही गैरसैंण राजधानी कहते रहे हैं। कांगेस प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय  और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष तीरथसिंह रावत भी गैरसैंण को स्थाई राजधानी बनाने की मांग  में शामिल हो गये हैं। नेता प्रतिपक्ष ने तो यहां तक कहा है कि यदि इस सत्र में गैरसैंण को स्थाई राजधानी बनाने का प्रस्ताव पारित नही हुआ तो सत्र बेकार है।

राजनीति के अपने अलग रंग हैं। उत्तराखण्ड राज्य की मांग से कांग्रेस इसलिए किनारा करती थी कि राजधानी को लेकर एका नही हो पायेगा। दरअसल केन्द्र के बडे नेताओं की छत्र-छाया के आकांक्षी अपनी कोई आवाज नही रखते और उन्हें जनता और जन समस्याओं से अधिक आका की भृकुटि की चिन्ता पहले सताने लगती है। भाजपा गैरसैंण के नाम से इसलिए परहेज करती रही है कि यह नाम उत्तराखण्ड क्रान्ति दल ने सुझाया है।

आज के परिप्रेक्ष्य में स्थिति बदल गयी हैं। यह कम संयोग नही है कि मुख्य मंत्री हरीश रावत एक कद्दावर कांग्रेसी नेता बन चुके हैं और यदि वे कोई निर्णय करें तो हाई कमान का कम से कम हस्तक्षेप उसमें होगा। भाजपा ने चुनाव जीतने-हारने के बावजूद ये निष्कर्ष जरुर निकाल लिया होगा कि 2000 में दून बैठकर गलती की थी और जनअपेक्षाऐं गैरसैण के पक्ष में हैं। दीक्षित आयोग द्वारा गैरसैंण पर लाख मीन-मेख के बाद भी जनअपेक्षाओं को गैरसैंण के पक्ष में लिखना उनकी मजबूरी बन गया था।

उत्तराखण्ड से नौकरशाही का प्रभाव हरीश रावत का आभा मण्डल फीका नही कर पाया है जो अब तक के सरकारों की प्रमुख असफलताओं में से एक कही जा सकती हैं जिस प्रकार नौकरशाह हवाई दौरे कर रहे हैं वह बताता है कि राज्य की वित्तिय स्थितियों पर सरकार का नियंत्रण नही है।  दिवालीखाल से भराडीसैंण जंगल में तो उन्हें बिजली चाहिए लेकिन सलियाणा और धुनारघाट उस चकाचौंध से बंचित रहें तो उनकी बला से। राष्ट्रपति 18 मई 15 को उत्तराखण्ड के विशेष विधान सभा सत्र में विधान सभाओं के सत्र कम से कम 100 दिन करने की सलाह देते है और विधान सभा अध्यक्ष 10-15 दिन का सत्र होने की मंशा जाहिर करते हैं तो मुख्य सचिव राकेश शर्मा को लगता है कि सत्र 3 दिन में निवट जायेगा। अब कौन सी बात सही होगी यह समय बतायेगाऔर यह भी कि हमारी सरकार, विपक्ष और विधायक सत्र चलाने में कितने इच्छुक अनैच्छिुक होते हैं। कानून व्यवस्था के नाम पर सडकों को रोका गया तो यह किसी आपातकाल से कम नही होगा पार्टियों, संगठन और समूहों का विरोध स्वीकारने की मानसिकता उत्तराखण्ड में पैदा होनी चाहिए। अधिकांश विरोध अपनी मांगों को लेकर हैं जिन्हें समय से न सुलझाना बडी समस्या है।

9 जून 14 का तीन दिवसीय सत्र पक्ष-विपक्ष के शराब प्रेम में चढ गया है। शराब नीति पर एक-दूसरे की टांग खींचने के अलावा अनुपूरक बजट व कुछ विधेयक पास कराकर सत्र का का समापन हो गया। शराब की प्रेत छाया इस सत्र में भी रहेगी क्योंकि मुख्य मंत्री सचिव मौहम्मद शाहिद के स्टिंग की कोई परिणिति अभी नही आयी है। अनुपूरक बजट में सरकार क्या लेती दमती है यह उत्सुकता भी रहेगी। राजस्व भूमि को विल्डरों माफिया को देने की नीति पर विपक्ष कडे प्रहार कर सकता है तो चिकित्सालयों की दुर्दशा किसी से छुपी नही है। गेस्ट टीचरों के वेतन का मामला अभी तय ही नही है। पिछला सत्र में टैंट में चली विधान सभा और टैट में रहे विधायकों को सकून महसूस होना चाहिए कि इस बार विधान सभा के लिए राजकीय पांलीटेक्निक है और विधायकों के लिए उनके अपने आवास। एक विधायक आवास में दो विधायकों के अलग-अलग कमरे हैं।

पहाडी परिवेश में पलायित होते पहाडों की कितनी समस्याओं को समाधान की परिणिति तक ये सत्र ले जाता है यही देखना दिलचस्प होगा। पुलिस की रेल-पेल और विभागोंकी भागम-भाग में कहीं पिण्ड छुडाने जैसी स्थितियां ही बनें तो शायद लोग निराश होंगे।


लेखक PURUSHOTTAM ASNORA  उत्तराखंड के वरिष्ठ पत्रकार हैं. उनसे संपर्क purushottamasnora@gmail.com के जरिए किया जा सकता है. 

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