Bhadas ब्लाग में पुराना कहा-सुना-लिखा कुछ खोजें.......................

1.11.15

इस देश में सभी को अपने मन मुताबिक चलने, खाने का, पहनने का अधिकार संविधान ने दिया है

सामाजिक असहिष्णुता और भारत में चुनौतियां पर संगोष्ठी

नई दिल्ली । सामाजिक संस्था नागरिक मंच ने ‘सामाजिक असहिष्णुता और भारत में चुनौतियां’ विषय पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया। मयूर विहार फेस एक, सांई मंदिर आडिटोरियम में शुक्रवार को आयोजित संगोष्ठी में मुख्य वक्ता के रूप में जेएनयू के पूर्व प्रोफेसर व समाजविज्ञानी और स्वराज अभियान के राष्ट्रीय संयोजक डा आनंद कुमार थे। कार्यक्रम का संचालन दिल्ली विश्वविदलय के प्रो अनिल ठाकुर जबकि धन्यवाद ज्ञापन पूर्व निगम पार्षद सुरजीत सिंह ने किया।





प्रो आनंद कुमार ने कहा कि विविधताओं से भरे इस देश की खासियत यह रही है कि यहां सभी धर्मों, संप्रदायों और जाति के लोग एक साथ बिना किसी भेदभाव के रहते आए हैं। पर इधर कुछ समय से देश में एक ऐसे विचारधारा का जन्म हो रहा हैै जो हमारी इस संस्कृति को नष्ट करने को तैैयार है। यही संस्कृति कभी लिंग भेद के नाम पर तो कभी प्रदेश व गैैर बराबरी के नाम पर हमें डराता है। पर हमें मानवता का समाज बनाने के लिए हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सभी को एक सूत्रों में पिरोकर चलना होगा।

प्रो कुमार ने कहा कि हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि इस देश में सभी को अपने मन मुताबिक चलने, खाने का, पहनने का अधिकार संविधान ने दिया है। मांसाहारी और शाकाहारी ही नहीं बल्कि छोटी-छोटी बातों पर हम इस समय अपना आपा खो देते है। कोई फोन कर देता है कि उसके घर के पास कुछ अनहोनी हो गया तो दंगा भडक जाता है और कोई गैर बराबरी के नाम पर, कहीं मंदिर मस्जिद के नाम पर तो कभी उत्तर भारतीय और दक्षिण भारतीय के नाम पर हंगामा खडा कर देता है। यह ऐसे हो रहा है जैसे लगता है कि दो सौ साल जिस अंग्रेजों ने हमें दबाया उससे भी बुरे दौड आने की प्रतीक्षा हो रही हैै। मस्जिद के मलबे पर  बैठी सरकार नकली सेकुलरिज्म की बातें कर धार्मिक सहिष्णुता को बिगाडने में आहूति दे रहे हैं।

गोष्ठी को वरिष्ठ पत्रकार अनिल चमरिया, सामाजिक कार्यकर्ता ओबेश खान, राजवीर पंवार, डा डी के गिरी, अशोक कुमार, विजय राजभर, प्रो के के तिवारी, प्रो संतप्रकाश, सांई सेना के राजेश कुमार, सुनील सिंह सहित कई अन्य लोगों ने संबोधित किया।

प्रो अनिल ठाकुर
संयोजक, नागरिक मंच
फोन-09810491822
प्रेस विज्ञप्ति

No comments: