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21.2.16

राष्ट्र के गुनाहागार कैसे देशभक्त

अजय कुमार, लखनऊ
गत दिनों राहुल गांधी लखनऊ और उसके बाद अपने संसदीय क्षेत्र अमेठी पधारे। वैसे यह कोई नई बात नहीं है,जिस पर चर्चा की जाये।आजकल उन्हें मोदी विरोध के लिये देश भ्रमण का चस्का लगा हुआ है। इसी क्रम में हाल में उन्होंने लखनऊ में दलितों के एक सम्मेलन को तो अमेठी कांग्रेस कार्यालय में पार्टी की ग्राम सभा के अध्यक्षों को संबोधित किया था ।दोनों की कार्यक्रम पार्टी कार्यालय में हुए थे। लखनऊ में उन्हें दलित याद आये तो अमेठी में महात्मा गांधी की याद आ गई। दोनों के बहाने उन्होंने मोदी,भाजपा और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को घेरा। अमेठी में राहुल ने कहा,‘ महात्मा गांधी मेरे राजनैतिक गुरू हैं, जिन लोगों ने मेरे गुरू को मारा आखिर वे मेरे कैसे हो सकते हैं।’ वह यहीं नहीं रूके उन्हें पता था कि जेएनयू में देशद्रोहियों का समर्थन करने के कारण वह फंसते जा रहे हैं,इसलिये राहुल को  सफाई देनी पड़ी थी, ‘मेरे खून के एक-एक कतरे में देशभक्ति भरी है।’ आश्चर्यजनक रूप से राहुल को अपनी देशभक्ति साबित करने के लिये पंडित जवाहर लाल नेहरू के 15 वर्षो तक जेल में बिताये समय से लेकर दादी इदिरा गांधी और पिता राजीव गांधी तक की शहादत गिनाना पड़ी। (शायद उनके पास यही एक पूंजी होगी)


लखनऊ और अमेठी के कार्यक्रमों में राहुल ने अपने खानदान की शहादत का तो जिक्र किया लेकिन यह नहीं बताया कि जम्मू-कश्मीर में जो हालात बने हुए हैं उसके लिये पंडित जवाहर लाल नेहरू पर हमेशा क्यों उंगली उठाई जाती है। चीन से युद्ध के समय तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने वायुसेना का इस्तेमाल किस वजह से नहीं किया था,जिसका खामियाजा देश को भारी जानमाल के नुकसान से चुकाना पड़ा था। लाखों सैनिक भी शहीद हुए थे।उन्होंने यह भी नहीं बताया कि इंदिरा गांधी द्धारा संविधान की धज्जियां उड़कार देश में आपाताकाल थोपने के लिये कांग्रेस को देश से माफी क्यों नहीं मांगनी चाहिए। राहुल को यह भी बताना होगा जब उनकी दादी इंदिरा गांधी की हत्या हुई थी,तब कांग्रेसियों ने कितने सिख परिवारों को जान से मारकर उनका घर बार उजाड़ दिया था। यह संख्या सैकड़ों में नहीं हजारों मे थी। राहुल नें यह भी नहीं बताया कि पंजाब में आतंकवाद का भस्मासुर बन गया भिंडरावाला को आगे बढ़ाने में उनकी दादी इंदिरा गांधी ने कैसी भूमिका निभाई थी,जिस कारण दशकों तक पंजाब आतंकवाद की आग में जलता रहा था। राहल यह भी नहीं बताते हैं कि इंदिरा गांधी की मौत के बाद राजीव गांधी ने सिख के साथ मारकाट पर यह बयान क्यों दिया कि जब जब बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलती ही है।

राहुल गांधी, महात्मा गांधी को अपना राजनैतिक गुरू मानते हैं।वह कहते हैं कि गांधी जी को जिस गोडसे ने गोली मारी केन्द्र की भाजपा सरकार आज उन्हीं की पूजा करती है,लेकिन यह नहीं बताते हैं कि गोडसे ने गांधी के शरीर पर गोली दागी थी, जबकि कांग्रेस ने गांधी जी की विचारधारा की हत्या की थी। गांधी जी आजादी के बाद कांग्रेस का विघटन करना चाहते थे,लेकिन पंडित जवाहर लाल नेहरू और उनकी चौकड़ी ने ऐसा नहीं होने दिया। वह यह नहीं बताते हैं कि गांधी जी देश का प्रथम प्रधानमंत्री किसको बनाना चाहते थे(ताकि देश का बंटवारा न हो)।वह यह भी नहीं बताते हैं कि नेताजी सुभाष चन्द्र बोस और लाल बहादुर शास्त्री जैसे बड़े नेताओं/ स्वतंत्रता सेनानियों की मौत को कांग्रेसियों ने हमेशा रहस्यमय क्यों बनाये रखा।इतिहास के पन्ने ऐसे तमाम सवाालों से भरे हुए हैं,जिसका जबाव कभी नहीं मिल पाया और न मिलने की उम्मीद है।

वह यह क्यों नहीं बताते हैं कि बटाला हाउस कांड में आतंकवादियों की मौत की खबर सुनकर उनकी मॉ सोनिया गाधी भावुक होकर रोने क्यों लगी थीं।वह यह भी नहीं बताते हैं कि किसी मजबूरी में करीब 11 वर्ष पूर्व मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाया गया था,जबकि राष्ट्रपति भवन में सोनिया गांधी प्रधानमंत्री पद के लिये अपनी दावेदारी के साथ केन्द्र में सरकार बनाने का दावा करने गईं थी।राष्ट्रपति भवन में ऐसा क्या हुआ था,जो लौट कर आत्मा की आवाज पर सोनिया ने पीएम बनने से इंकार कर दिया,जिसके बाद मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठाया गया।वह यह क्यों नहीं बताते हैं कि पार्टी में जब मनमोहन सिंह से अधिक योग्य नेता प्रणव मुखर्जी मौजूद थे तो प्रधानमंत्री पद के लिये उनकी अनदेखी क्यों की गई। इसके पीछे दस जनपथ की क्या साजिश थी।क्या दस जनपथ को रबर स्टाम्प पीएम की जरूरत थी,जिसके लिये मनमोहन सिंह फिट बैठते थे।

राहुल इतिहास से सबक लेने की बजाये उसे गलत तरीके से दोहराते रहते हैं। संविधान का मजाक उड़ाना उनके लिये आम हो गया है। इसीलिये यह नहीं बताते हैं कि जब अमेठी में एमएलसी चुनाव के कारण आचार संहिता लगी हुई है,तब वह चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन करके वहां सभा क्यों करते हैं। वह यह भी नहीं बताते हैं कि हैदराबाद में एक छात्र दुर्भाग्यपूर्ण हालात में आत्महत्या कर लेता है या फिर मुजफ्फनगर में दंगा होता है अथव जेएनयू में बावल होेता है तब तो वह वहॉ पहुंच जाते हैं,लेकिन जब मालदा में हिंसा होती है तो वहां उनके कदम क्यों नहीं पड़ते।राहुल को चिंता इस बात की भी है कि केन्द्र सरकार विश्वविद्यालय से लेकर अन्य संवैधानिक पदों पर आरएसएस की विचारधारा वाले लोगों को बैठा रही है, लेकिन उनके पास इस बात का जबाव नहीं देते हैं कि उनकी ही पार्टी के नेता और उस समय के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के बयान कि देश की प्राकृतिक संपदा पर पहले हक अल्पसंख्यकों का है, पर कांग्रेसी चुप क्यों रहते हैं।

वह यह भी नहीं बताते हैं कि क्यों वह संसद को ठप करने के लिये तो ललित मोदी कांड, मध्य प्रदेश के व्यापम घोटाले,राजस्थान की मुख्यमंत्री सिंधिया के ललित मोदी से संबंध को लेकर संसद में हाय-तौबा करते हैं, उसे चलने नहीं देते हैं,लेकिन संसद खत्म होते ही वह इन मुद्दों से मुंह क्यों मोड़ लेते हैं।उनको यह भी बताना चाहिए की  बहुमत के साथ सरकार चुनने वाली जनता किस तरह से साम्प्रदायिक हो सकती है और 44 सीटों वाली कांग्रेस जिसे जनता ने ठुकरा दिया है,वह कैसे धर्मनिरपेक्षता का लबादा ओढ़ सकती है।उन्हें बताना चाहिए कि अगर मोदी सरकार देश को तोड़ने वाले फैसले ले रही है। आरएसएस की विचारधारा देश की एकता के लिये खतरा है ओर भाजपा साम्प्रदायिक पार्टी है तो 60 वर्षो तक देश पर हुकूमत करने वाली कांग्रेस ने इन दलों पर प्रतिबंद्ध क्यों नहीं लगाया।राहुल के खून में अगर राष्ट्रभक्ति है तो फिर वह खून तब पानी क्यों हो जाता है,जब देश के हितों के साथ कोई टकराव करता है।वह जेएनयू के छात्रों को यह क्यों नहीं बताते हैं कि अफजल गुरू देशद्रोही था और उनकी सरकार की सक्रियता के चलते ही उसे फांसी के फंदे पर लटकाया गया था।राहुल को यह बात भी स्पष्ट करना चाहिए कि 2014 के चुनावों में कांग्रेस को मिली करारी हार के लिये उन्होंने अपने को क्यों जिम्मेदार नहीं ठहराया।

वह यह भी नहीं बताते हैं कि किस मजबूरी के चलते उन्हें भ्रष्टाचार में सजायाफ्ता लालू यादव से बिहार में हाथ मिलना पड़ गया।वह यह भी नहीं  बताते हैं कि चाहें उत्तराखंड हो या फिर जम्मू-कश्मीर अथवा देश क किसी ओर हिस्से में कोई प्राकृतिक आपदा आती है तो वह ऐसी जगहों से नदारत क्यों रहते हैं।राहुल यह बताते नहीं थकते हैं कि मोदी राज में देश का किसान-मजदूर मेहनत करने के बाद भी भूख-प्यास से मर रहा है, लेकिन यह नहीं बताते है कि भूख-प्यास से मरती जनता के प्रति वह कोरी बयानबाजी के अलावा और कोई कदम क्यों नहीं उठाते हैं। राहुल गांधी अगर तय कर लेंगे कि आगे से वह छुट्टिया मनाने विदेश नहीं जाया करेंगे और इससे जो लाखों रूपया बचेगा, उसे गरीबों में दान कर देंगे ताकि भूख प्यास से मरते कुछ मजदूरों और किसानों का तो भला हो ही आये।इस बचे हुए पैसे से सैकड़ो गरीब परिवारों के लिये साल भर के राशन-पानी की व्यवस्था हो सकती है, लेकिन वह ऐसा करेंगे नहीं। राहुल चाहें जितना भी नाटक कर लें उनके पीएम बनने का सपना पूरा होने वाला नहीं है। देश की जनता इतनी भी बेवकूफ नहीं है कि अभी तक वह उन्हें (राहुल) समझ नहीं पाई होगी। राहुल कितने काबिल नेता हैं। यह उनके व्यवहार से अक्सर अहसास होता रहता है।राहुल की काबलियत पर कांग्रेसियों को ही भरोसा नहीं है, इसीलिये तो वह अक्सर उनकी बहन प्रियंका वाड्रा का नाम उछालते रहते हैं। दरअसल, कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी अपनी, अपने परिवार तथा पार्टी की हकीकत कम बताते हैं और छिपाते ज्यादा हैं। इसी लिये गांधी परिवार और कांग्रेस गर्दिश में जा रही है।देश के गुनाहागार कभी राष्ट्रभक्त नहीं हो सकते हैं।  

अजय कुमार
वरिष्ठ पत्रकार
लखनऊ    

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