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24.2.16

कवि आलोचक शैलेन्द्र चौहान का सम्मान समारोह ‘‘प्रसंग: शैलेन्द्र चौहान’’ विदिशा में आयोजित हुआ


विदिशा। म.प्र. हिन्दी साहित्य सम्मेलन की विदिशा इकाई द्वारा ‘‘धरती’’ के संपादक और जाने-माने कवि, आलोचक, पत्रकार शैलेन्द्र चौहान की षष्ठिपूर्ति के अवसर पर उनका शाल-श्रीफल-पुष्पहार सहित शाल भंजिका की प्रतिमा भेंटकर अभिनंदन किया गया। मुख्य कविता पाठ करते हुए शैलेन्द्र जी ने इस कविता से शुरूआत की- ‘अपनी छोटी दुनिया और/छोटी छोटी बातें/ मुझे प्रिय है बहुत/ करना चाहता हूँ/ छोटा - सा कोई काम। कुछ ऐसा कि / एक छोटा बच्चा/हंस सके/ मारते हये किलकारी/ एक बूढ़ी औरत/ कर सके बातें सहज / किसी दूसरे व्यक्ति से बीते हुये जीवन की / मैं प्यार करना चाहता हूं/ खेतों खलिहानों/ उनके रखवालों की/ एक औरत की /जिसकी आँखों में तिरती नमी/मेरे माथे का फाहा बन सके। मैं प्यार करना चाहता हूं तुम्हें/ताकि तुम / इस छोटी दुनिया के लोगों से / आँख मिलाने के/काबिल बन सको।’


कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्रदेश अध्यक्ष पलाश सुरजन ने कहा - ‘‘मैं मानकर चलता हूं कि किसी की नकल करके कोई बड़ा नहीं बनता । बड़ा बनता है अपने अनुभवों और संघर्षों को अपनी तरह से रूपायित करके। शैलेन्द्र चौहान ने अपनी कविताओं में यही किया है। प्रो. के.के. पंजाबी ने (पत्नी को लेकर लिखी कविता ‘अस्मिता’ में पत्नी के सपनों के विस्तार का सजीव दृश्य प्रस्तुत करते हुए इन पंक्तियों को उद्घत किया - ‘आँगन में खड़ी पत्नी/जिसके सपने दूर गगन में/ उड़ती चिड़िया की तरह। तथा ‘हाँ, मैं तुम पर कविता लिखूंगा/लिखूंगा बीस बरस का/अबूझ इतिहास/अनूठा महाकाव्य/असीम भूगोल और / निर्बाध बहती अजस्त्र / एक सदा नीरा नदी की कथा। ......... सब कुछ तुम्हारे हाथों का / स्पर्श पाकर / मेरे जीवन-जल में/ विलीन हो गया है।
सम्मेलन की विदिशा इकाई के महामंत्री सुरेन्द्र कुशवाह ने शैलेन्द्र चौहान के संपादन में निकले जनकवि ‘शील’ अंक, समकालीन कविता अंक और ‘शलभ’ श्रीराम सिंह अंक का विशेष उल्लेख करते हुए कहा - ‘‘श्री चौहान काव्य कर्म ही नहीं करते अपितु कविता को नए सिरे से परिभाषित भी करते है।’’

प्रस्तुति - सुरेन्द्र सिंह कुशवाह
महामंत्री (म.प्र.हिन्दी साहित्य सम्मेलन, विदिशा)
मो. 9826460198

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