Bhadas ब्लाग में पुराना कहा-सुना-लिखा कुछ खोजें.......................

23.3.16

महिला लेखन स्त्री विमर्श नहीं है : निर्मला जैन



कोलकाता : हिंदी की वरिष्ठ आलोचक व प्रोफेसर (रिटायर्ड) निर्मला जैन ने कहा है कि महिला लेखन स्त्री विमर्श नहीं है। संवेदनशीलता की दृष्टि से महिला लेखन महत्वपूर्ण है। यहीं दृष्टिकोण उन्हें पुरुष दृष्टिकोण से भिन्न करता है। महिला लेखन में स्त्री स्मिता की बात होनी चाहिए लेकिन आजकल महिला लेखन में देहवाद की बात अर्थात नारी के देह की स्वतंत्रता की बात की जा रही है जो ठीक नहीं है।
निर्मला जैन प्रेसीडेंसी विश्वविद्यालय के द्विशतवार्षिकी समारोह के अंतर्गत हिंदी विभाग द्वारा आयोजित आधुनिक भारतीय महिला लेखन विषयक सेमिनार के उद्घाटन सत्र में बोल रही थी। उन्होंने कहा स्त्री के बगैर आप समाज की कल्पना नहीं कर सकते। समाज को गढ़ने का काम स्त्री करती है। यह स्त्री को तय करना है कि वो समाज का विध्वंस करेगी या  निर्माण। प्रेसिडेंसी विवि की उप कुलपति प्रोफेसर लोहिया ने इस सेमिनार का उद्घाटन करते हुए कहा कि कलकत्ता की भूमि पर विभिन्न संस्कृतियों व साहित्य का समागम दिखता है।

हिंदी विभाग की विभागाध्यक्ष प्रोफेसर तनुजा मजुमदार ने कहा कि लेखक सिर्फ लेखक होता है। लेखक को पुरुष व महिला के दायरे में बांधना ठीक नहीं है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा प्रायोजित इस सेमिनार में व्यास सम्मान विजेता हिंदी लेखिका चंद्रकांता ने कहा कि विवाह संस्था से लोग तंग आ गए है और स्त्री बाहर ही नहीं घर में भी शोषित हो रही है।

साहित्य अकादमी  पुरस्कार विजेता हिंदी लेखिका अलका सरावगी ने कहा कि स्त्री विमर्श के नाम पर महिलाओं को खांचे में बांधा जा रहा है। साहित्यिक क्रांति से समाज नहीं बदलता। आनंद  पुरस्कार विजेता बांग्ला लेखिका तिलोत्तमा मजुमदार ने कहा कि पृथ्वी पर ऐसा कोई भी विषय नहीं है जो लेखन का हिस्सा नहीं बन सकता। तीन सत्रों में हुए इस सेमिनार का संचालन क्रमशः प्रोफेसर डा. ऋषिभूषण चौबे, डा. अनिंद्य गांगुली व डा. मैरी हंसदा ने किया। दूसरे सत्र की अध्यक्षता कलकत्ता विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग की विभागाध्यक्ष व प्रोफेसर राजश्री शुक्ला ने किया। इस सत्र में डा. संगीता साइकिया, प्रो. शीला मिश्रा, डा. सेन्थिल प्रकाश व रणवीर सुमेथ ने उक्त विषय पर अपन विचार रखे। तृतीय सत्र की अध्यक्षता प्रोफेसर चंद्रकला  पांडेय ने की। इस सत्र में प्रो. चंदा राय, प्रोफेसर इप्शिता चंदा, डा. सोमा मुखर्जी ने अपने विचार रखे। प्रोफेसर डा. वेदरमण ने धन्यवाद ज्ञापन किया।

No comments: