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1.8.16

मजीठिया वेज बोर्ड के लाभ पाने को लड़ रहे कर्मियों ने छुड़ाये मालिकानों के पसीने

पत्रकारों/गैर पत्रकारों के वेतन व अन्य परिलाभों के लिए केन्द्र सरकार द्वारा गठित मजीठिया वेज बोर्ड ने की संस्तुतियों ने देशभर के अखबार मालिकों की नींद उडाकर रख दी है, आखिर क्यों ? यह पहला वेज बोर्ड नहीं है लेकिन है ऐतिहासिक और इसे ऐतिहासिक बनाया है पत्रकार संगठनों और पत्रकार/गैर पत्रकारों की चट्टानी एकजुटता ने वर्ना देश की आजादी से लेकर अब तक हर दस साल (केंद्रीय व राज्य कर्मचारियों की तरह) पर वेतन आयोग का गठन किया जाता है। अब तक छह वेतन आयोगों का गठन पत्रकारों की बेहतरी के लिए किया जा चुका है लेकिन लागू एक भी नहीं हुआ आखिर क्यों ? हर बार आयोग अपनी रिपोर्ट सौंपता रहा, संसद की दोनों सदनें उसे पास करती रहीं, मालिकान अदालत की शरण लेते रहे और नतीजा " ढाक के तीन पात होता रहा। मालिकानों ने इस बार भी सारे घोडे खोल दिये फिलहाल अभी तक उसे कामयाबी नहीं मिली।


एक नजर अब तक गठित वेजबोर्ड के विषय में। 2.5.1956 को देवतिया आयोग का गठन किया गया। आयोग ने 10.05.1957 यानी एक साल बाद अपनी रिपोर्ट सौंपी। इसके विरोध में एक्सप्रेस न्यूज पेपर प्रा. लि. ने कोर्ट की शरण ली। कोर्ट ने 30-04-57 आयोग की रिपोर्ट को इस आधार पर खारिज कर दिया कि समाचार पत्र उद्योग की क्षमता नहीं है इसे देने की। सितंबर 1958 में श्रमजीवी पत्रकार एक्ट 1958 (फिक्सेशन आँफ रेट आँफ बोर्ड संसद से पास हुआ।

सिंदे वेजबोर्ड : 12.11.1963/25.2.1964 को सिंदे बोर्ड का गठन किया गया। लगभग ढाई साल बाद इसने अपनी रिपोर्ट सौंपी। पीटीआई और यूनियन आँफ इंडिया एंड अदर्स के बीच अदालती लडाई इस वेजबोर्ड को लेकर भी हुई। कोर्ट ने इस वेजबोर्ड को मृत घोषित कर दिया। फिर मालिकानों की क्षमता ढाल बनी।

पालेकर वेतन आयोग : 11.02.1975-0602.1976 को यह बोर्ड अस्तित्व में आया। चार साल बाद 26.12.1980 को अपनी रिपोर्ट सौंपी। 20-07-1981 को इसकी रिपोर्ट को मालिकानों ने चुनौती दी। दिसम्बर 1977 में मालिकानों के प्रतिनिधियों ने केंद्र सरकार को पत्र लिखा कि वे संस्तुतियों को स्वीकार करने की स्थिति में हैं नहीं। 28.08.1978 को बंबई हाईकोर्ट में इसे चुनौती दी गई। मामला राष्ट्रपति के यहां तक पहुंचा। राष्ट्रपति ने 31.01.1979 को श्रमजीवी पत्रकारों और दूसरे अखबार के कर्मचारियों के लिए (कंडीशंस आँफ सर्विस) में विभिन्न प्रावधानों में सुधार के लिए एक कानून बनाने को कहा। कहने का आशय यह कि इतने जद्दोजहद के बाद भी पत्रकारों की झोली खाली रही। पालेकर वेतन आयोग काफी चर्चा में रहा। इसके बाद 17.07.1985 को बतावत वेजबोर्ड का गठन किया गया इसने 31.08-1989 को अपनी रिपोर्ट सौंपी। इसे भी कोर्ट में चुनौती का सामना करना पडा।

रस्म आदायगी के लिए केंद्र सरकार ने 09.09.94 को मणिसाणा वेतन आयोग का गठन किया। 05.12.2000/15.12.2000 को नोटिफिकेशन हुआ। इस वेजबोर्ड को भी कर्नाटक एवं दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौतियों का सामना करना पडा और अब मजीठिया वेजबोर्ड सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट आदेश के बाद भी दो साल से अवमानना का सामना कर रहा है ? इसलिए कि अब तक उन्होंने अपने ताकत के बल पर वेजबोर्डों की जो दुर्गति की उससे उनका गुरूर सातवें आसमान पर है।

मित्रों इस बार मालिकानों का गुरूर टूटेगा यह अब तक न्यायिक प्रक्रिया में साफ देखने को मिला है। जरूरत है कि हम सब मालिकानों और उसके सहयोगी श्रम विभाग के खिलाफ सारे मतभेदों व गुटबाजियों को भुलाते हुए एक हों। एक हों पत्रकारिता के क्षेत्र में आने वाले साथियों के बेहतर भविष्य के लिए। हर वेजबोर्ड के बारे में संक्षिप्त जानकारी देने की आवश्यकता मैंने इसलिए महसूस की ताकि इस वेजबोर्ड की महत्ता को समझा जाए और अंतिम लडाई के लिए मजबूती के उतरा जाए। सुप्रीम कोर्ट ने अपने नए आदेश में उत्तर प्रदेश सहित पांच पूर्वोत्तर राज्यों के प्रमुख सचिवों को 23 अगस्त को स्टेटस रिपोर्ट के साथ तलब किया है। अब ऐसे में हमारा दायित्व है कि हम मजीठिया वेजबोर्ड के अनुसार सीए से क्लेम बनवायें और जल्द से जल्द लेबर कमिश्नर के कार्यालय को भेजें। क्लेम के लिए पत्रकार साथी और आरटीआई कार्यकर्ता शशिकांत सिंह ने पर्याप्त जानकारी भडास4मीडिया पर दे रखी है। अभी यह साइट पर उपलब्ध है। मालिकान हारी हुई लडाई लड रहे हैं उनके हाथ कटी पतंग की डोर का अंतिम सिरा है जिसे वे पकडे हुए हैं लेकिन कब तक पकडे रहेंगे।

अरुण श्रीवास्तव
देहरादून (09458148194)
पत्रकार और आरटीआई कार्यकर्ता
arun.srivastava06@gmail.com

1 comment:

hssgskgm said...

Every employee should be file their actual status report with claim before the concerned Additional Labour Commissioner.
Or Complaint about the non-implemetation of Wage Board or improper implementation of Wage Board with ALC and ask for Referring the case towards Industrial Tribunal for Adjudication.
Also tool the legal opinion of the experts.