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25.10.16

मुलायम ने स्पष्ट कर दिया कि वे भाई के साथ हैं, बेटे के नहीं!

अखिलेश अखिल 

नेता जी मुलायम सिंह की महा बैठक पर सबकी निगाहें टिकी थी। मीडिया के लोग हलुक हलुक कर कानाफूसी के जरिये ख़ास खबर लेने को बेचैन थे।  विपक्ष वाले भी इस महाबैठक को सूंघने के लिए अपने अपने  छोर रखा था।  लखनऊ से दिल्ली तक राजनितिक दलों के भीतर इस महाबैठक पर चर्चा चल रही थी।  लेकिन बैठक की कोई बात तबतक बाहर नहीं आयी जब तक नेता जी ने अपने इरादे की बात सबके सामने नहीं रखी।  अन्त में नेता जी के मन की बात सामने आयी।  चाचा -भतीजा को मिलाने की बात पहले सामने आयी।  फिर दोनों के बीच हुयी झड़प की बाते भी खूब प्रचारित हुयी।   भी सामने आयी कि अमर सिंह , मुलायम सिंह के सबसे ज्यादा  करीबी है और मुख्यमंत्री अमर सिंह के बारे में गलत बयानबाजी नहीं करे।


कुल मिलाकर समाजवादी पार्टी की हुई महत्वपूर्ण बैठक के बाद यह साफ हो गया है, पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव, अपने बेटे अखिलेश के साथ नहीं बल्कि अपने भाई शिवपाल यादव के साथ खड़े हैं। लेकिन सपा मुखिया मुलायम सिंह ने यह भी बता दिया कि सरकार अखिलेश चलाएंगे और पार्टी को शिवपाल देखेंगे। मुलायम सिंह ने यह भी साफ़ किया है कि अखिलेश की छवि साफ़ है और चुनाव में अखिलेश की छवि पर ही सपा चुनाव लड़ेगी। लेकिन इसके साथ ही नेता जी ने अपने बेटे अखिलेश को औकात में रहने की भी नाशिहत दे डाली।  उन्होंने स्पष्ट शब्दों में अखिलेश से कहा कि मुझे और शिवपाल को अलग करने की कोई सोच भी नहीं सकता।  यही नहीं मुलायम ने उन सभी लोगों का समर्थन किया जिनका अखिलेश विरोध करते आ रहे हैं और आज भी अपने संबोधन में उनका विरोध किया और उनके खिलाफ कार्रवाई की बात कही।  मुलायम ने अमर सिंह को अपना भाई और मुख्तार अंसारी को ईमानदार बताया।  साथ ही उन्होंने अखिलेश को फटकार लगाते हुए यह भी कहा कि आपकी हैसियत ही क्या है? क्या पद पाते ही आपका दिमाग खराब हो गया है। आज मुलायम ने किसी तरह के निर्णय की घोषणा तो नहीं की, लेकिन यह बात भी तय है कि उन्होंने खुले शब्दों में अखिलेश को धमकाया है।

मुलायम सिंह यादव और शिवपाल यादव ने अखिलेश को स्पष्ट शब्दों में यह बता दिया है कि समाजवादी पार्टी को उन्होंने अपनी मेहनत और संघर्षों से खड़ा किया है, इसमें अखिलेश का कोई योगदान नहीं है।  ऐसे में सपा में चलेगी तो उनकी ही।  अखिलेश ने हमेशा यह कहा है कि वे नेताजी का विरोध नहीं करते हैं और हमेशा उनके निर्देश का पालन किया है, ऐसे में गेंद अखिलेश के पाले में है, अब वे क्या करेंगे, यह समय के साथ ही पता चलेगा।  हालांकि मुलायम ने अपने संबोधन के अंत में कहा कि सरकार अखिलेश चलायेंगे और पार्टी शिवपाल।  लेकिन इसमें भी कोई दोराय नहीं है कि अखिलेश ही पार्टी का वो चेहरा हैं, जो चुनाव में जीत दिला सकते हैं।  सपा अगर उन्हें दरकिनार कर शिवपाल को सामने लाती है, तो पार्टी को भारी नुकसान होगा।  इस बात का फायदा अखिलेश किस तरह उठाते हैं यह भी देखने वाली बात होगी।

मुलायम ने अखिलेश से कहा कि आप शिवपाल चाचा के गले लगें उनका विरोध ना करें।  यानी कुल सार यह है कि आपकी नहीं चलेगी, आप मुख्यमंत्री तो रहेंगे, लेकिन निर्णय हमारा होगा।  ऐसे में अखिलेश के सामने क्या है रास्ता? अगर अखिलेश अपनी तमाम इच्छाओं और आकांक्षाओं का गला घोंट सकते हैं, तो वे समर्पण करके प्रदेश के मुख्यमंत्री रह सकते हैं।  लेकिन अगर वे अपनी छवि कार्यों और उपलब्धियों के साथ रहना चाहते हैं, तो बगावत के अलावा उनके पास और कोई उपाय नहीं है।

अब तक के घटनाक्रम पर ध्यान दें तो यह कहा जा सकता है कि अखिलेश आसानी से हथियार डालने वालों में से नहीं हैं।  हालांकि वे यह कहते आये हैं कि वे हमेशा नेताजी के फैसलों के साथ हैं, लेकिन उन्होंने कई बार अपने निर्णयों से इसका विरोध किया है, मसलन शिवपाल से कई विभाग छिनना, गायत्री प्रजाति को बर्खास्त करना, मुख्तार अंसारी का विरोध करना और अब शिवपाल को मंत्रिमंडल से बर्खास्त करना।  आज नेताजी के कहने पर अखिलेश शिवपाल से गले तो मिले लेकिन उसके बाद दोनों के बीच बहस शुरू हो गयी, इससे लगता नहीं है कि अखिलेश आसानी से सरेंडर के मूड में हैं। अखिलेश यादव यह भलीभांति जानते हैं कि नेताजी और शिवपाल के संबंध कैसे हैं।  यही कारण है कि उन्होंने अपने संबोधन में शिवपाल पर सीधा हमला नहीं बोला। लेकिन उन्होंने अमर सिंह और मुख्तार अंसारी को अस्वीकार्य बताया।

युवा अखिलेश की छवि ना केवल सरकार के भीतर साफ़ है वल्कि पार्टी के साथ ही अन्य दलो के लोग भी उनकी छवि की दाद देते है।  पिछले २ सालो के भीतर अखिलेश सरकार के कार्यो की सभी प्रशंसा भी कर रहे है।  चुनावी राजनीति में छवि और विकास की राजनीति बहुत मायने नहीं रखती  क्योंकि चुनाव जितने और हारने के खेल इन मसलो से ऊपर होता है। बीजेपी और बसपा की राजनीति अखिलेश के बड़ी चुनौती है लेकिन इसके साथ ही उनकी चुनौती सपा के भीतर मचे बबाल कही ज्यादा है।  अंसारी , अमर सिंह को अखिलेश पसंद नहीं करते लेकिन उनके पिता जी इन दोनों को बहुत पसंद करते है।  मुलायम सिंह केवल अखिलेश के पिता ही नहीं है वे सपा के मुखिया भी है और वे जानते है की मुलायम सिंह की राजनीति के आगे उनकी एक नहीं चलने वाली।  पार्टी से अलग होकर चुनाव लड़ने की राजनीति के बारे में अखिलेश सोच तो सकते है लेकिन उसके परिणाम क्या होंगे इसकी जानकारी भी उन्हें जरूर होगी।  फिर पार्टी के भीतर टूट की हालत में इसका लाभ किस पार्टी को होगा इसका असर भी अखिलेश को पता है।  ऐसे में अखिलेश अभी चुप ही रहेंगे और यही चुप्पी उनके लिए और पार्टी के सार्थक होगा।

लेखक अखिलेश अखिल वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं.






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