Bhadas ब्लाग में पुराना कहा-सुना-लिखा कुछ खोजें.......................

17.11.16

पत्रकारों की कोई सुरक्षा नहीं है, न तो सेवा की सुरक्षा और न ही सामाजिक सुरक्षा : मणिकांत ठाकुर

राष्ट्रीय प्रेस दिवस पर विषम क्षेत्र से रिपोर्टिंग और मीडिया की चुनौतियां पर संगोष्ठी 

पत्रकारिता में सत्य के साथ ही रखें मानवीय संवेदना : आयुक्त 




मुंगेर के प्रमंडलीय अयुक्त नवीन चंद्र झा ने पत्रकारों का आह्वान किया है कि पत्रकारिता में सच को सामने लाने के साथ मानवीय संवेदना का पूरी तरह ख्याल रखें. मानवीय मूल्य को दरकिनार कर हम जिम्मेदार भूमिका अदा नहीं कर सकते हैं. चाहे वह कोई भी क्षेत्र हो. वे प्रमंडलीय सभागार में राष्ट्रीय प्रेस दिवस पर '' रिपोर्ट फ्रॉम कन्फलिक्ट एरिया, ए चैलेंज टू मीडिया '' विषयक संगोष्ठी का उद‍्घाटन समारोह को संबोधित कर रहे थे. कार्यक्रम की अध्यक्षता जिला पदाधिकारी उदय कुमार सिंह ने की. जबकि कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्वलित कर किया गया.


आयुक्त ने कहा कि जहां तक विषम क्षेत्र का सवाल है सांप्रदायिक तनाव, हिंसा एवं विधि व्यवस्था के समय रिपोर्टिंग पत्रकारों के लिए चुनौती भरा होता है. कोई भी विषम परिस्थिति उत्पन्न होने पर जिस प्रकार प्रशासन अपने दायित्व का निवर्हन करता है उसी प्रकार पत्रकारों को अपने दायित्व का निवर्हन करना होता है. उस परिस्थिति में पत्रकारों के समक्ष यह चुनौती होती है कि तथ्यों को सही रूप में पेश करें. वहीं प्रशासनिक महकमे के लोग भी अपने फर्ज को अंजाम देने में लगे रहते हैं. इस बात को निश्चित रूप से ध्यान रखा जाना चाहिए कि वैसी कोई भी रिपोर्टिंग नहीं हो जिससे सौहार्द और अमन-चैन बिगड़े. लेकिन हमें सत्य को भी स्वीकार करना होगा. उसी से पत्रकारिता का वजूद भी कायम रहेगा.

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए जिलाधिकारी उदय कुमार सिंह ने कहा कि कन्फ्लिक्ट एरिया सिर्फ उग्रवाद, नक्सलवाद व आतंकवाद के क्षेत्रों तक ही सीमित नहीं है. बल्कि हर जगह ऐसे क्षेत्र हैं जहां रिपोर्टिंग चैलेंज होता है. उन्होंने संसद हमले व मुंबई की 26/11 की घटना का उल्लेख करते हुए कहा कि ऐसी वारदातों के समय मीडिया की भूमिका ऐसी होनी चाहिए. जहां किसी का जान संकट में न पड़े. उन्होंने महाभारत के संजय का उदाहरण देते हुए कहा कि कभी-कभी युधिष्ठिर के अस्वसथामा नरोहतो वाकुंजरो... की भी भूमिका रिपोर्टिंग में निभाने की जरूरत है.

इंडियन एक्सप्रेस के सहायक संपादक संतोष सिंह ने '' कन्फ्लिक्ट एरिया '' को विश्लेषित करते हुए जम्मू-कश्मीर, पूर्वोत्तर क्षेत्र की पत्रकारिता और नक्सलवादी क्षेत्रों में जोखिमपूर्ण रिपोर्टिंग की विस्तार से चर्चा की. उन्होंने कहा कि पत्रकारों के समक्ष सत्य के पास पहुंचने की चुनौती होती है. इस दौरान कई बार ऐसी विषम परिस्थित पैदा हो जाती जो काफी जोखिम भरा होता है. ऐसी स्थिति में सूचनाएं प्राप्त करना और उसकी पुष्टि बहुत जरूरी है.

बीबीसी के पूर्व पत्रकार मणिकांत ठाकुर ने कहा कि '' कन्फ्लिक्ट एरिया '' की सही तस्वीर को उकेड़ते समय पत्रकारिता की जनपक्षता का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए. सिर्फ संख्या देकर किसी घटना की औपचारिकता पूरी नहीं की जा सकती. बल्कि शास्वत मानवीय मूल्य और जनपक्षता रिपोर्टिंग को सच के समीप ले जाने में सहायक सिद्ध होती है. उन्होंने कहा कि प्रशासन, पत्रकार सभी जनता के लिए काम करते हैं और जनता खबर में सत्य की खोज करता है. इसलिए संवेदनशील परिस्थिति में तनाव को खत्म करने में भी पत्रकारों की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है.

उन्होंने इस बात पर चिंता व्यक्त की कि पत्रकारों की कोई सुरक्षा नहीं है. न तो सेवा की सुरक्षा है और न ही सामाजिक सुरक्षा है. कब उन्हें हटा दिया जायेगा तथा कब संकट की स्थिति में मीडिया घराना पत्रकार मानने से इनकार कर दें. सबसे दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति यह है कि पत्रकार के संगठनों का वजूद समाप्त हो रहा है. ऐसी स्थिति में पत्रकारों को एकजुटता पर भी पुनर्विचार करने की जरूरत है.

द हिंदू के सहायक संपादक अमरनाथ तिवारी ने कहा कि सिर्फ देश की सीमाओं या अन्य युद्धस्थ क्षेत्र ही '' कन्फ्लिक्ट एरिया '' नहीं है. बल्कि आज बिहार पूरी तरह '' कन्फ्लिक्ट एरिया '' बन गया है. जहां लगातार पत्रकारों की हत्या हो रही है. पत्रकार असुरक्षा के बीच काम करते हैं और उनके परिवार के समक्ष आर्थिक संकट की स्थिति होती है. उन्होंने कहा कि पत्रकारों के कारण ही अंदर की बातें बाहर आती है. लेकिन जरूरत है हमें संयम के साथ काम करने की. सिवान में मारे गये पत्रकार राजदेव रंजन और हाल फिल्हाल सासाराम के पत्रकार धर्मेंद्र कुमार सिंह की कोई सुधि लेने वाला नहीं. ऐसे में पत्रकारिता से क्या उम्मीद की जा सकती है. जब पत्रकार ही असुरक्षित हों.

वरिष्ठ पत्रकार कुमार कृष्णन ने कहा कि देश के नक्सलवाद प्रभावित क्षेत्र में पत्रकार जहां जोखिम उठा कर सच को उजागर करते हैं. वहां पत्रकारों को माओवादी करार दिया जाता है. इसके साथ ही कोकराझार के अपने अनुभवों को साझा किया. इस मौके पर पत्रकार राणा गौरी शंकर ने पत्रकारिता के दौरान कई विषम परिस्थितियों का उल्लेख किया. उनमें केसी सुरेंद्र बाबू की हत्या, नगर परिषद चुनाव के दौरान एक खास समुदाय के व्यक्ति की हत्या के बाद उत्पन्न सांप्रदायिक तनाव एवं दलहट्टा मसजिद में एक ग्रंथ के जलाने की घटना के बाद उत्पन्न स्थिति की चर्चा की. उन्होंने कहा कि कन्फ्लिक्ट एरिया में लगातार इजाफा हो रहा है.

मौके पर अवधेश कुमार, प्रशांत मिश्रा, चंद्रशेखरम, समाजसेवी राजेश जैन, राजकुमार सरावगी, मृदुला झा, अब्दुल्ला बोखारी, कौशल किशोर पाठक ने भी अपने विचार व्यक्त किये. इससे पूर्व विषय प्रवेश कराते हुए जनसंपर्क उपनिदेशक कमलाकांत उपाध्याय ने कहा कि भारतीय प्रेस परिषद की स्थापना को प्रेस दिवस के रूप में मनाया जाता रहा है और यह वर्ष प्रेस परिषद का स्वर्ण जयंती वर्ष है. लोकतंत्र की सफलता में मीडिया की बड़ी भूमिका है. इस वर्ष परिषद ने जो विषय रखा है उससे पत्रकारों को कठिन क्षेत्रों में कार्य करने में मदद मिलेगी.

प्रेस दिवस पर मुंगेर के दो वयोवृद्ध पत्रकार काशी प्रसाद एवं निसार अहमद आसी को प्रशासनिक स्तर पर सम्मानित किया गया. प्रमंडलीय आयुक्त नवीन चंद्र झा ने शॉल ओढा कर व स्मृति चिह्न देकर उन्हें सम्मानित किया.

फोटो : आनंद

No comments: