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23.11.16

अपनी ही ज़मीन को भूली सरकार, बाड़ ही खा रही खेत

प्रशासनिक लापरवाही से राज्य सरकार को करोड़ो का नुकसान 

हेमन्त जैमन

अलवर : बचपन में यह कहावत सुनी थी कि बाड़ (वृहत हिंदी शब्दकोष के अनुसार बाड़ का अर्थ है, फसल की रक्षा के लिए बनाया हुआ कांटे, बांस आदि का घेरा) इसलिए होता है कि वह खेत की सुरक्षा करे| खेत की फसल को बरबाद न होने दे पर, जब सुरक्षा के लिए बनी चीज ही बरबाद करने पर तुल जाये तो? यही हाल होता है, जो आज अलवर का हो रहा है| अलवर जिले की सरकारी ज़मीनो को बचाने का दायित्व किसका है? किन पर है? नौकरशाही, अधिकारी वगैरह का ही न, पर अलवर में हो क्या रहा है?


नौकरशाही स्टील फ्रेम कही जाती है, इस संस्था की भूमिका देश को जोड़ने में अदभुत रही है, ईमानदार नौकरशाहों की बदौलत आज देश यहां पहुंचा है| अलवर जिले में भी अनेक अच्छे, ईमानदार और समर्पित आइएएस-आइपीएस आए हैं, पर वे निष्क्रिय बना दिये गये| जिस तरह से पिछले दिनो मे भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने नये डीएसपी सलेह मोहम्मद के नेतरत्व मे लगभग हर महीने एक न एक भ्रष्ट अधिकारी को पकड़ा है| ओर जो विवरण आये हैं, उनसे लगता है कि अलवर जिले में कोई शासन ही नहीं रह गया|  डॉ राममनोहर लोहिया ने नौकरशाही को दूसरे नंबर का स्थायी राजा कहा था, यानी नेता और मंत्री तो आते-जाते रहते हैं, चुनाव में पराजित भी होते हैं, पर अफसर तो अपनी जगह बने रहते हैं|

प्रकरण क्या है:-- अलवर शहर के ग्राम भाखेडा तहसील अलवर मे 10 बीघा 11 बिस्वा ज़मीन जिसका खसरा नंबर पुराना 164 था| जो कि संवत 2020  से संवत 2047 तक सार्वजनिक निर्माण विभाग के नाम खातेदार दर्ज थी| उसके नये खसरा नंबर 256, 257, 258, 259, 544, 547, 548, 549, 550, 551, 552 व 547/922 बनाए गये| इस सरकारी ज़मीन पर बिना अनुमति के कुछ लोगो द्वारा खेती की जा रही थी| उक्त ज़मीन के 6 बीघा 10 बिस्वा हिस्से को केवल मात्र अवेध रूप से कब्जेदारी के आधार पर मिलीभगत करके सरकार के विपक्ष मे निर्णय किया गया|

तीन खसरा नंबर पीडब्ल्यूडी विभाग के नाम है दर्ज:- यदि कागज़ी कार्यवाही को माने तो वर्तमान मे तीन खसरा नंबर 550, 551 व 552 पर सार्वजनिक निर्माण विभाग का नाम खातेदार के रूप मे दर्ज है| जिसे एक अख़बार मे छपी खबर के बाद  कार्यवाही के तह्त उक्त ज़मीन को कब्ज़ेराज लेकर सार्वजनिक निर्माण विभाग का बोर्ड लगा दिया गया| वर्तमान मे उक्त ज़मीन पर नगर विकास न्यास के बोर्ड लगे हुए है| अलवर मुख्यालय पर निर्माणधीन मिनी सचिवालय के निर्माण कार्य को पूरा करने हेतु बजट की आवश्यकता को देखते हुए मुख्य सचिव राजस्थान सरकार की अध्यक्षता मे हुए निर्णय 22 मई 2015 के आदेश दिनांक 3 सितंबर 2015 के तह्त खसरा नंबर 551 व 552 को सार्वजनिक निर्माण विभाग, अधिशासी अभियंता - सार्वजनिक निर्माण विभाग, खंड प्रथम, अलवर द्वारा आदेश जारी कर दिनांक 15 दिसंबर 2015 को  नगर विकास न्यास अलवर को हस्तांतरित किया गया| उक्त ज़मीन का आवासीय भूमि मे परिवर्तित कर उसपर भविष्य मे नीलामी के ज़रिए रकम अर्जित की जाएगी, जिसका उपयोग वर्तमान मे चल रहे मिनी सचिवालय के निर्माण मे किया जाना संभव है| सूत्रो से मिली जानकारी के अनुसार अलवर नगर विकास न्यास के पास मिनी सचिवालय के निर्माण हेतु बजट की कमी रही तो करीब 14 करोड़ रुपए भिवाड़ी नगर विकास न्यास से लिए गये| तब जाकर मिनी सचिवालय का निर्माण कार्य शुरू हो सका| प्रॉपर्टी एक्सपर्ट्स की माने तो उक्त ज़मीन वर्तमान मे लगभग 6 करोड़ की है|


तत्कालीन अधिकारियो ने न तो कब्जा लिया ओर न ही अपील की -

संवत 2020 से 2047 तक खसरा नंबर 164 कुल भूमि 10 बीघा 11 बिस्वा सार्वजनिक निर्माण विभाग के नाम खातेदारी मे दर्ज थी| लेकिन उसमे से कुल 3 खसरा नंबर पर ही कब्जा लेकर बाकी की भूमि को भूमाफियायो के कब्ज़े मे छोड़कर राज्य सरकार को करोड़ो के राजस्व की हानि पहुँचाई है| उक्त कुल ज़मीन 10 बीघा 11बिस्वा के कुछ खसरा नंबर की 3 बीघा 5 बिस्वा ज़मीन को ज़रिये आदेश न्यायालय तत्कालीन सहायक कलेक्टर अलवर द्वारा नियम विरुद कब्जेदारो के हक मे एक निर्णय दिनांक 2 नवंबर 1995 को एवम् उपखण्ड अधिकारी अलवर द्वारा दूसरे निर्णय दिनांक 10 जून 1991 मे 3 बीघा 5 बिस्वा ज़मीन को इस बाबत दिया गया कि इस ज़मीन पर जो व्यक्ति काबिज होकर खेती कर रहे है उसके कृषि कार्य मे किसी भी प्रकार की रुकावट व मजाहमत न करे| जबकि उक्त ज़मीन निर्णय के समय सार्वजनिक निर्माण विभाग के नाम खातेदार दर्ज होने के बावजूद व ज़मीन किस्म नहरी बाग दर्ज होने के बाद भी केवल मात्र कब्ज़े के आधार पर जबरन अतिक्रमी व्यक्ति को खातेदारी अधिकार प्रदान कर दिए गये| इस प्रकरण मे तत्कालीन सहायक् कलक्टर व उपखण्ड अधिकारी एवम् तत्कालीन सार्वजनिक निर्माण विभाग के अधिकारीयो की मिलीभगत से ग़लत निर्णय पारित किए गये|

पीडब्ल्यूडी अधिकारीयो की लापरवाही सरकार पर पड़ी भारी ---

सार्वजनिक निर्माण विभाग के तत्कालीन अधिकारियो ने सक्षम न्यायालय (राजस्व अपील अधिकारी) के समक्ष अपील न करके अपने पद का दुरूउपयोग किया है| यह भी एक जाँच का विषय है| कब्ज़ेदारो के पक्ष मे उक्त सरकारी भूमि की खातेदारी करने के आदेश विधि विरुद जारी किये गये| उन आदेशो के विरुद आज तक सरकार के किसी भी ज़िम्मेदार अधिकारी द्वारा किसी न्यायालय मे नही जाकर अपने कर्तव्यो का सही तरह से पालन नही कर राज्य सरकार को करोड़ो के राजस्व की हानि पहुँचाई जा रही है|

एक बड़ा सवाल यह है भी उठता है कि  सरकार (संबंधित विभाग के अधिकारी) ने अपनी भूमि मे कब्ज़े के लिए एवम् शासन रिकार्ड मे ग़लत अंकन के आधार पर हुए बेचान व अवेध कब्जो के विरुद किसी भी सक्षम न्यायालय मे न तो आजतक कोई वाद दायर किया ओर ना ही ज़मीन को कब्ज़े राज मे लिया गया है| इस भूमि पर वर्तमान मे सनराईज रिसोर्ट के नाम से एक बहुत बड़ा मेरीज हों संचालित है| व कुछ भूमि पर लोगो ने अवेध रूप से कब्ज़े कर पक्के निर्माण कर कब्जा कर रखा है| इससे अधिकारीओ की मिलीभगत ओर जानबूझकर सरकार को उक्त ज़मीन पर कब्जा न मिले इस दिशा मे कोई कदम नही उठाया है|

आख़िर जवाबदारी किसकी

जब सार्वजनिक निर्माण विभाग के नाम उक्त ज़मीन के संवत 2047 तक खातेदार के रूप मे दर्ज थी, जब एक ही खसरा नंबर 164 था तो सरकारी अधिकारियो द्वारा किस बिनाह पर उसके एक ही खसरा नंबर को अलग अलग खसरा नंबर मे विभक्त किया गया| आख़िर जब तीन खसरा नंबर अभी भी सार्वजनिक निर्माण विभाग के नाम दर्ज है ओर उन्हे नगर विकास न्यास द्वारा अधिग्रहित कर लिया गया है| तो ऐसे मे बाकी के खसरा नंबर पर कब्ज़ेदारी हक के लिए अधिकारी उच्च स्तर पर अदालत का दरवाजा क्यो नही ख़टखटा रहे है| अधिकारियो की मंशा पर सवाल उठना लाजमी है| लगता है बाड़ ही खेत को खा रही है|

Hemant Jaiman 
reporterjaiman@gmail.com

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