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23.11.16

रमेश चंद्र अग्रवाल से प्रेरित होकर बहुत से बिजनेसमैन पत्रकारिता में आए, उन्हें पत्रकारिता से कोई लेना-देना नहीं

सत्ता और आर्थिक क्षेत्र की बड़ी हस्तियों में मीडिया से सिर्फ भास्कर समूह!



इंदौर में महँगी इश्तिहारबाजी और धूम धड़ाके के साथ आयोजित की गई इन्वेस्टर्स समिट के पहले दिन दोपहर भोज का फोटो दैनिक भास्कर ने छापा है. फोटो का शीर्षक है –पावरफुल लंच:सत्ता और आर्थिक क्षेत्र की बड़ी हस्तियाँ एक टेबल पर. हिंदुजा ब्रदर्स, बाबा रामदेव, दैनिक भास्कर के मालिक रमेश अग्रवाल और अनजाने से नटपुरी के अलावा टेबल पर जेटली, शिवराजसिंह चौहान और रविशंकर प्रसाद नजर ही आ रहे थे. भास्कर सेठ की मौजूदगी से मन में सवाल कौंधा की अख़बार जगत की तरफ से अकेले वो ही क्यों..? वैसे सब जानते हैं की अग्रवाल साहब अब सिर्फ अख़बार मालिक नहीं रहे बल्कि कामयाब उद्योगपति भी हैं. वो तेल उधोग, एनर्जी सेक्टर, रियल स्टेट और नमक निर्माण के साथ सितारा स्कूल भी चला रहे हैं. फिर उनका परिचय कामयाब उद्योगपति के बजाय भास्कर समूह के चेयरमेन के नाते क्यों दिया गया..? शायद इसलिए क्योंकि मीडिया अब पत्रकारिता नहीं महज धंधा बन कर रह गया है.


इसमें ज्यादा परेशान होने वाली बात नहीं है. जिस प्रकार अग्रवाल साहब ने हिंदी पत्रकारिता में कामयाब होने के बाद इसके दम पर बिजनेस में कामयाबी हासिल की उससे प्रेरित होकर बहुत से बिजनेसमेन पत्रकारिता में घुस गए है. उन्हें पत्रकारिता से कोई लेना देना नहीं है बस इसके रुतबे का इस्तेमाल अपने कारोबार के फलने फूलने में करना है. इसलिए मध्यप्रदेश में पत्रकारिता लुप्त हो गई है और उसका स्थान मीडिया ने ले लिया है जिसे बाजारी पत्रकारिता कहना ज्यादा मौजू होगा. सब आवास मेला और वाहन मेला आयोजित करने, स्कूल-कॉलेज, अस्पताल और विश्वविद्यालय चलाने  और गरबा-डांडिया नचाने में लगे हैं.

उनके संवाददाता इनके प्रवेशपत्र बांटने, गेट पर वीआइपी का स्वागत करने और पूजा पाठ का बॉक्स और मिठाई बांटने में लगा दिए जाते हैं. समिट के अंतिम दिन अग्रवाल साहब ने भाषण भी दिया जिसे जाहिर है अख़बार ने करीने से छापा है. इसमें वो फरमाते हैं की जब आप रिस्क नहीं उठा सकते तो किस बात के आंत्रप्रेन्योर..? यह बात और है की खुद उन्होंने अख़बार के दम पर बिना रिस्क के सुरक्षित निवेश कर कारोबार बढ़ाया हैं. कुल मिला कर अब भूल जाइये की भारत की अखबारी दुनिया में कभी रामनाथ गोयनका जैसा कद्दावर मालिक भी हुआ करता था. वैसे थोड़ी बहुत पत्रकारिता खून पसीने से सींचे गए उनके इंडियन एक्सप्रेस में  ही देखने को मिलती है.

श्रीप्रकाश दीक्षित
भोपाल

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