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23.2.17

भारत में विभिन्न समुदाय द्वारा बरती जाने वाली भाषाओं को संवैधानिक दर्जा दिया जाना चाहिए


कैम्पेन फॉर लैंग्यवेज एक्टवलिटी एंड राइटस (क्लीयर), भारतीय भाषा समूह, और मैथली भोजपुरी अकादमी इस मांग में आपनी साझेदारी व्यक्त करती है कि भारत में विभिन्न समुदाय द्वारा बरती जाने वाली भाषाओं को संवैधानिक दर्जा दिया जाना चाहिए और दिल्ली स्थित आकाशवाणी से भारतीय भाषाओं के समाचार प्रसारण की व्यवस्था को देश भर में फैले ऑल इंडिया रेडियों के विभिन्न केन्द्रों में स्थानांतरित करने के फैसले का कड़े शब्दों में विरोध करती है। यह फैसला भारतीय भाषाओं का दर्जा स्थानीय भाषाओं के स्तर पर ले जाने की लंबी योजना का हिस्सा है।


अंतर्राष्ट्राय मातृभाषा दिवस के मौके पर आज 21 फरवरी 2017 को देश भर के भाषा-कार्यकर्ताओं ने केन्द्र सरकार से मांग की है कि 2004 में सीताकांत महापात्र समिति की अनुशंसाओं के अनुसार अड़तीस भाषाओं को संविधान की आठवीं अनुसूची में तत्काल शामिल किया जाना चाहिए। भारत सरकार ने पिछले कई वर्षों के दौरान विभिन्न  समितियों की अनुशंसाओं के आधार पर जिन भारतीय भाषाओं को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया है उन पैमानों को नहीं लागू कर रही है। यह भाषा की विविधता को लेकर सरकार की भेदभाव की नीति को जाहिर करती है।

जिन भाषाओं को आठवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए महापात्र समिति द्वारा अनुशंसा की गई है उनमें अंगिका, बंजारा, बज्जिका, भोजपुरी, भोती, भोटिया, बुंदेलखंडी, छत्तीसगढ़ी, धाक्ती, अंग्रेजी, गढ़वाली( पहाड़ी) , गोंडी, गुज्जर या गुज्जरी, हो, काचाछी, कारबी, खासी, कोदवा( कूर्ग) , कोक बाराक, कुमुंनी ( पहाड़ी) , कुरक, कोसली, लेपचा, लिम्बु, मिजो ( लुशाई) मगही, मुंडारी, नागपुरी, निकोबारीज, पहाडी( हिमाचली) , पाली, राजस्थानी, शौर्सेनी( प्रकृत), सिरैकी है। उन भाषाओं को भी इस सूची में शामिल करने की मांग की गई है जो भाषाएं महापात्र समिति की अनुशंसाओं को प्रस्तुत करने के दौरान अपने संवैधानिक अधिकारों की मांग की है।

इसके अलावा द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद से शुरू हुए भारतीय भाषाओं के समाचार प्रसारण को दिल्ली से देश के विभिन्न रेडियों केन्द्रो की तरफ फेंकने के फैसले का भी हम कड़ा विरोध करते हैं। यह उस लंबी योजना का हिस्सा हैं जिसमें भारतीय भाषाओं के दर्जे को स्थानीय भाषा के रूप में घटाना शामिल है। देश में कोई एक राष्ट्रीय भाषा नहीं है। कई भारतीय भाषाएं मसलन बांग्ला, सिंधी, पंजाबी और तमिल तो आसपास के देशों में भी बड़ी तादाद में बोली, सुनी जाने वाली और कामकाज की भाषा है। आकशवाणी ने योजनाबद्ध तरीके से भारतीय भाषाओं के लिए लंबे समय से नियुक्तियां बंद कर ऱखी है। भारतीय भाषा समूह की पहल पर कई संसद सदस्यों ने संसद में भी इसे उठाया है और भारतीय भाषाओं को दिल्ली में ही एक छत्त के नीचे समाचार प्रसारण को विस्तार देने की जरूरत पर बल दिया है। भारतीय भाषाओं के बीच आपस के रिश्तों को मजबूत करने के उद्देश्य से ही इस तरह की व्यवस्थाएं की गई थी।            

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