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16.9.17

जीएसटी: सामने आएगी प्रिंट मीडिया की धांधली

अक्टूबर से सरकार जीएसटी को लेकर सख्त हो जाएगी जिससे दो नंबर के कारोबार में हाहाकार मच सकता है। बात करे प्रिंट मीडिया की तो एक बहुत बड़ी धांधली बाहर आएगी.  दरअसल प्रिंटिंग प्रेस पर 18 प्रतिशत की जीएसटी लगेगा, पहले यह 6 प्रतिशत था। यदि जीएसटी सही संकल्पना के साथ लागू हो गया तो कईयों की फिल्म बन सकती है।


पाठक से ज्यादा अखबार
देश में 27 करोड़ से अधिक की पत्र-पत्रिकाएं पंजीकृत हैं। अर्थात् देश का हर तीसरा नागरिक प्रेस के कारोबार से जुड़ा है। ऐसे में हर अखबार नंबर वन होता है। और पाठक से ज्यादा अखबार हैं। लेकिन अब यदि कोई एक लाख का सर्कुलेशन दिखाता है तो उसका जीएसटी बिल भी देखा जाएगा कि आपने एक  लाख के लायक पेपर और प्लेस्ट भी खरीदे हैं या नहीं।

आंकड़ों पर नजर
सामान्यत: एक रील (कागज का बंडल) 300 किलो का आता है। और इसके दाम 35 से 40 रुपए प्रति किलो हैं। इसकी प्लेट मैन्युअल 100-125 रुपए में एक पड़ती है(सभी खर्च मिलाकर), सीटीपी से प्लेट बनवाने पर 150 से 175 रुपए का खर्च एक प्लेट पर आता है। अब स्याही की बात करें तो रंगीन स्याही 300 से 400 रुपए किलो में आती है। सामान्यत: 300 रुपए किलो में मिलती है। जबकि ब्लैक स्याही 100 से 150 रुपए किलो में मिलती है।

कितना खर्च आता है?
4 पेज का एक अखबार यदि आप 20 हजार कॉपी छपवाते हैं तो एक रील (कागज का बंडल)का खर्चा आएगा। इसके लिए हर स्याही (श्याम, मजेंडा, एलो, ब्लैक) 2-2 किलो लगेगी। 4 पेज के लिए दो प्ले लगेगी। सामन्यत: मशीन 1 घंटे में 30 यूनिट बिजली बिल खाती है। और अपनी क्षमता अनुसार कॉपी छापती है। एक घंटे में 20 हजार से एक लाख तक कॉपी छप सकती है।

अब जीएसटी से होगा मैच
भले ही सरकार 2019 तक प्रिंटिंग प्रेसों को कुछ ना बोले लेकिन यह साफ पता चलेगा कि किस प्रेस ने कितने कागज, प्लेट्स, श्याही, बिजली बिल का उपयोग किया। हर माह कितने का प्राइवेट विज्ञापन छापा। और आप फ्राडगिरी करते हैं तो आपका बिल कई जगह फंस सकता है। जैसे आपने उपभोक्ता को विज्ञापन बिल बिना जीएसटी काटे दे दिया और उस कस्टमर ने आईटी में यह खर्च दिखाया तो आयकर विभाग का वेबसाइट इस खर्च को बिना जीएसटी नंबर के स्वीकार ही नहीं करेगा। और किसी पेपर ने विज्ञापन का बिल तो काट दिया लेकिन इसे आपनी आय में नहीं दिखाया तो भी वेबसाइट में बिल रुक जाएगा। क्योंकि सभी बिल एक दूसरे से लिंक रहेंगे। एक ने यदि चेन तोड़ी तो सभी प्रभावित होंगे।

पहले भी चोरी पता चलती थी
हालांकि आडिट ब्यूरो की टीम जब सर्कुलेशन का सर्वे करने जाती है तो उसे साफ पता चल जाता है कि कौन सा पेपर कितना प्रिंट हो रहा है। फिर भी व प्रेस मालिकों की धांधली में साथ देती है। जैसे आडिट टीम पहले बिजली मीटर की रीडिंग देखता है। और यह पता करता है कि इतने पेपर प्रिंट करने में कितने यूनिट बिल का खपत हुआ उसके बाद हर माह का बिल मिलाती है तो साफ पता चल जाता है कि इस पेपर का वास्तविक सर्कुलेशन क्या है? लेकिन धांधली। अब यह खेल जीएसटी के बाद नहीं चलने वाला। कोई भी आरटीआई से जानकारी मांग सकता है।

उद्योगपतियों पर शिकंजा?
मीडिया जगत में जुड़े कर्मचारियों के बुरे दिन की भविष्यवाणी तो पहले ही की जा चुकी है। मोदी सरकार उद्योगपतियों पर इस तरह शिकंजा कस चुकी है कि किसी के मुंह से चू तक नहीं निकल सकती। क्योंकि अधिकांशत: चोर हैं। जनता का पैसा बैंक से लोन लेकर लेते हैं। फिर उसी क्षेत्र में लगाते हैं, टैक्स की चोरी करते हैं, सरकार से अनुदान लेते हैं। सरकार इनके लिए बिजली, सड़क, पानी की व्यवस्था कराकर देती है और जब बैंक लोन मांगने को तैयार होती है तो कंपनी पर आर्थिक संकट गहरा जाता है। कर्मचारियों को वेतन के लाले पड़ जाते हैं, कर्मचारियों की छंटनी होने लगती है। बैंक का कर्ज एनपीए के रूप में फंस जाता है। अब बैंक कुर्की करे तो क्या? जमीन सरकार की अनुदान में, मशीन के कुलपुर्जे गायब हैं, सिर्फ खाका पर बचा है। ऐसे में बैंक को, सरकार को और जनता को जबरदस्त घाटा होता है।

सरकार रोजगार पर भी ध्यान दें
जाहिर सी बात है इसका सीधा असर कर्मचारियों के रोजगार पर पड़ेगा। कई कंपनियां ताला लगाकर भाग जाएगी और कर्मचारी सड़कों पर आ जाएगा। लेकिन भारत सरकार इसे लेकर जरा भी गंभीर नहीं है। उसे लगता है कि इससे देश को कोई नुकसान नहीं है। यदि हम सरकारी कर्मचारी के पास जाएंगे तो वह यही सलाह देगा कि आप कोर्ट जाए। वकील का फीस, कोर्ट का फीस देकर सरकार की कुछ सेवा करे। इस सेवा के चक्कर में सरकार को एक आम नागरिक से जो अप्रत्यक्ष कर ( जीएसटी) मिलता है वह खत्म हो जाता है और सरकार को भारी नुकसान होने के साथ ही प्रति व्यक्ति आर्थिक भार बढ़ जाता है। लेकिन इस नुकसान की तरफ किसी का ध्यान नहीं जाता। ऐसे में सरकार को बंद होने वाली कंपनी का संचालन खुद करना चहिए। यदि नो प्रॉफिट ना लास का भी गेम है तो भी सरकार को लोगों के रोजगार के मद्देनजर ऐसी कंपनियों को टेकओवर कर लेना चहिए। कभी वेतन भुगतान की शिकायत भी आए तो सरकार को ऐसे कंपनियों में 6 माह के लिए बोर्ड ऑफ डायरेक्टर को भंग कर अपना बंदा बैठा देना चहिए। सभी चोर अपने आप सुधर जाएंगे।

कैसे होता है घोटाला
सामान्यत: एक कंपनी का पैसा मालिक अनाप-सनाप खर्च नहीं कर सकता लेकिन इनका दिमाग कुछ इस तरह चलता है। ये खुद को ही फर्जी फर्म/ या निजी खाता खोलकर लोन ले लेते हैं। और बाद में यह लोन माफ ले लेते हैं। इस तरह एक कंपनी का पैसा पार हो जाता है। दूसरी बीमारी यह है कि कंपनी मालिक खुद का वेतन अत्यधिक रखता है। और उसके परिवार का हर सदस्य अमूनन कुत्ता बिल्ली भी कंपनी का कर्मचारी होता है। जिसका वेतन अत्याधिक होता है। घर का पूरा खर्च और निजी खर्च भी कंपनी वहन करती है। मरता तो बेचारा कर्मचारी है। इसलिए सरकार निजी कंपनियों के बजाए सरकार कंपनियां खोलने पर ध्यान दे तो देश की तरक्की निश्चित है।

महेश्वरी प्रसाद मिश्र
पत्रकार


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