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30.10.17

सोचने का तरीका बदल गया

आजकल सोचने के तरीका बदल गया है, मुझे अपना ही लगता है- या सबका ऐसा ही. तय है सभी का हाल ही यही है।  मेरी उम्र के जो नौजवान है ,  उनका तो हाल भी यही है. पीएम मोदी ने देश की दशा और दिशा बदल दी है।  लेकिन आज तक उनका ब्यान नहीं बदला है 'मेरे देश के सवा सौ करोड़ देश वासियों' केदारनाथ यात्रा पर गए पीएम मोदी का आज भी वही ज्ञान था वही आकंड़े थे जो आज से कई साल पहले थे - मेरे शब्दों में उसपर विचार कुछ महीने पहले भी यहीं ही थे।  खैर उम्मीद है मेरे देश की जनसंख्या के आंकड़े भी पीएम मोदी के अल्फ़ाज़ों में जल्द बदल जाएंगे। 

अभी हम सब का सोचने का तरीका बदल गया है। आजकल हम न जाने क्यों उँगलियों के सहारे सोचते है ,मना की दिमाग से हमारे अंगूठे की नाश जुडी होती है. लेकिन कम्प्यूटर के की-बोर्ड के स्पेस को दबाने के अलावा बाकि जगह तो हम उँगलियों का ही इस्तेमाल करते है।  वैसे भी अब उँगलियों के सहारे से ही सारा काम है। 
उँगलियों से ही हम सोचते है -इसलिए हमारे सोचने का तरीका बदल गया।  किसी ने कुछ बोल दिया -तब उँगलियों के सहारे सोचना ! किसी का ख्याल - तब उँगलियों के सहारे सोचना ! कोई काम, कोई आदेश, कुछ भीजो भी आपका दिल करे -आपका दिल कहे! दिमाग सुने क्यूंकि स्थति ऐसी है कि आजकल सोचने का तरीका बदला है तो हमे साथ वालों की बात भी पहली बार में समझ नहीं आती. इतना ही नहीं कई बार हमारे इस सोचने के तरिके से सामने वाले या दूसरे व्यक्ति को गुस्सा भी आता है। 

मेरा तो तरीका सोचने के बदला ही है ,आपका भी निश्चय ही बदला होगा- आजकल हम जब भी कुछ सोचते है तो सिर्फ हाथ से मोबाईल का ऊँगली से स्क्रॉल डाउन करते हुए सोचते है।  कुछ करते है : वक्त-वे-वक्त ऊँगली से ही मोबाइल की हर मूवमेंट करते है। वर्तमान में हमारे हालत ऐसे हो गए है कि हर स्थिति में हम मोबाइल पर ऊँगली घूमते रहते है, कुछ भी हमारे दिनचर्या में हो रहा हो -वस स्क्रीन पर ऊँगली चलती रहती है, ध्यान कहीं और होता है. हमारी सोच- फेसबुक, व्हाट्सएप्प, इंस्टाग्राम, ट्विटर अन्य सोशल एप्प  चलते हुए न जाने कौन से सातवें आस्मां पर पहुंची हुई होती है।  बाकि ही सोच बदलो - तभी देश बदलेगा , और मुझे अब यही लगता है कि सोच बदलने का तरीका ही हम लोग बदलते जा रहे है ऐसे में क्या - क्या बदलेगा इसका अंदाजा लगाना भी मुश्किल है. अभी सिर्फ व्यक्तिगत तौर पर ही नतीजे सामने आ रहे है, भविष्य में न जाने क्या और सामने आएगा।  क्यूंकि अब सोचने  का तरीका बदल गया है।  ऐसे में दिल-ओ-दिमाग की जद्दोजहद में फैसला क्या होगा तय करना मुश्किल है - क्यूंकि इस सोच की शुरुआत कहीं से और अंत कहीं और से होता है। 
sunil k himachali
mediasunil1@gmail.com

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