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10.1.18

कहानी : नाम गुम

हल्की फिनाईल की खुशबू से आँख खुल गई। बहुत से लोगों की आवाजें आ रही थी जिसे समझ पाना मुश्किल था। चार-पाँच लोग ऐसी भाषा बोल रहे थे कि उनकी भाषा बस सुन ही पा रहा था परंतु उसका अर्थ निकाल पाना मुश्किल था। आँख खुलने के पश्चात अपने आस-पास देखा तो कुछ लोग लेटे हुए दिखाई दिये। पड़ोस बाले पलंग पर एक 16-17 साल का लड़का लेटा हुआ था जिसका एक पैर प्लास्तर चड़े होने की वजह से आधा हवा में लटका हुआ था। आधी दिबारों पर टाइल और पास में ही रखे आक्सीजन सिलेंडर से मुझे यह तो ज्ञात हो गया कि मैं एक अस्पताल में हूँ । अचानक नजर गंदी चादर पर पड़ी जो कि पड़ोस वाले लड़के के पलंग पर बिछी हुई थी , जिससे यह साफ हो गया कि मैं एक सरकारी  अस्पताल में हूँ ।
मुझे होश में देखकर नर्स ने डाॅक्टर साहब को बुलाया। डाक्टर साहब ने मुझसे पूछा कि अब आपको कैसा लग रहा है । उन्होंने मुझसे मेरा नाम पूछा लेकिन मुछे कुछ भी याद नहीं आ रहा था । मैं अपने मन में अनेक प्रश्नों के उत्तरों को खोजने लगा । जैसे कि मेरा नाम क्या है , मेरी उम्र क्या है, मेरा मजहब क्या है - मैं (मंदिर, मस्जिद, चर्च, गुरुद्वारा ) आखिर किस जगह पूजा-अर्चना करता हूँ। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था । मेरा मन बहुत व्यतिथ हो रहा था मन में अनेक अच्छे-बुरे ख्याल आ रहे थे। 

तभी डाॅक्टर साहब ने मुझे बताया कि मेरा एक्सीडेंन्ट हुआ था और उस बैन्च पर बैठी हुई खूबसूरत सी लड़की ही आपको अस्पताल लेकर आई थी और वह पिछले चार दिनों से आपका हाल-चाल लेने आ रही है। तभी मुझे उस लड़की पर कुछ संदेह हुआ कि आखिर क्या वजह  है जो यह लड़की मेरा इतना ख्याल रख रही है। मुझे उस लड़की पर शंका होेने लगी कहीं इसी कि वजह से तो मेरी गाड़ी दुर्घटनाग्रस्त नहीं हो गई। तभी अचानक से डाक्टर साहब ने मुझसे कहा कि फैसल घबराने कि कोई बात नहीं है आप जल्दी ही स्वस्थ हो जाओगे। फैसल नाम सुनते ही मेरे कान खड़े हो गये तभी मैनंे तुरन्त डाॅक्टर से पूछा क्या मेरा नाम फैसल है?

मेरे प्रश्न का उत्तर देते हुए डाॅक्टर साहब ने कहा कि आपके पास से हमें कोई भी पहचान-पत्र नहीं प्राप्त हुआ इसीलिए हमनें आपको यह नाम प्रदान किया । तभी उस लड़की ने मेरे हाल-चाल लिये । मैनें उस लड़की से पूछा क्या आप मुझे जानती हो तो उसने मना कर दिया कि मैं आपको नहीं जानती हूँ। उसके पश्चात मैनें उससे दूसरा प्रश्न किया कि आखिर आपने मेरी इतनी सहायता क्यों की तो उसने मुझे जबाब दिया कि मैंने आपकी मदद सिर्फ इंसानियत के खातिर की। 

एक तरफ तो उस लड़की ने इंसानियत के लिये मेरी इतनी साहयता की परंतु आज कुछ मीडिया मित्रों के हिसाव से महाराष्ट्र में दलित और हिन्दु आपस में भिड़ रहे हैं। अच्छा हुआ इन लोगों ने मेरी आँखें खोल दी मैं तो सभी को हिन्दू ही समझ रहा था  मैंने तो सुना था कि ईश्वर एक है। आज जो लोग आपस में लड़ रहे हैं अगर किसी भी वजह से उन लोगों की याददाशत चली जाये तो क्या याद रहेगा उन्हें क्या करेंगे वे लोग एसी जिंदगी का सिर्फ उन्हीं का नहीं बल्की जो लोग  जाती , समुदाय के नाम पर सामने वाले व्यक्ति पर हेकड़ी जमाते हैं एवं उनको नीचा दिखाना चाहते हैं।

क्या फायदा इन सब बातों का यदि हमारे घरबालों ने हमें यह बताया ही नहीं होता कि हमारा धर्म क्या है तो सोचिये आखिर कैसा होता हमारा जीवन क्या हम खाना नहीं खाते , बोलना नहीं सीख पाते या हमें चलना नहीं आता परंतु जैसी भी होती आज के जीवन से तो अतिउत्तम ही होती ।

आज  जिसे देखो अपने धर्म पर मर मिटने को तैयार है अरे भाई पहले अपने घर में बैठे अपने माता-पिता की तो सेवा कर लो । धर्म को जिंदा रखने के लिए अभी तुम्हारी जरुरत नहीं । किसी के भी परिवार ने यह नहीं सिखाया कि दूसरे के धर्म को बुरा-भला कहो, जबकि परिवार बालों ने तो यह सिखाया कि ईश्वर एक है , सभी के साथ प्रेम भावना से रहना चाहिए ए सभी समुदायों के लोगों की मदद करना चाहिये और सभी धर्मों की इज्जत करना चाहिये।

हमारा धर्म हमें यह सिखाता है कि सामने बाले व्यक्ति में भगवान को देखो क्योंकि ईश्वर सभी के अंदर विराजमान हैं। फिर क्यों हम सामने बाले व्यक्ति को अपमानित करते हैं। विश्व के सभी धर्म इंसानियत का ही पाठ पढ़ाते हैं परंतु यह हमारे पर निर्भर करता है कि हम एक अच्छे इंसान बनते हैं या फिर हैवान। 

-प्रवीण शर्मा
shramapraveen0@gmail.com

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