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25.3.18

इतिहास की सही जानकारी ही एकता और बचाव का स्रोत है

इतिहास की सही जानकारी ही एकता और बचाव का स्रोत है।मुंडा वर्ग के सभी आदिवासी पहले खुद को ‘होड़’ कहते थे। लेकिन अब यह सिर्फ मुंडा लोगों के लिए प्रयुक्त हो रहा है। हमें होड़ लोगों की व्यापकता पर ध्यान देने की जरूरत है। ये बात आज जाने-माने मुंडारी साहित्यकार और सिदो कान्हू मुर्मू विश्वविद्यालय के पूर्व प्रो-वाइस चांसलर डा. सत्यनारायण मुंडा ने कही। वे गोस्सनर कॉलेज सेमिनार हॉल, रांची में कुशलमय मुंडू द्वारा लिखित मुंडारी इतिहास की पुस्तक ‘होड़ो होन कोअः इतिहास ओड़ोः किलि को’ के लोकार्पण पर मुख्य अतिथि के रूप में बोल रहे थे। लोकार्पण समारोह का आयोजन मुंडा सभा, रांची और झारखंडी भाषा साहित्य संस्कृति अखड़ा ने संयुक्त रूप से किया था।


मुख्य अतिथि डा. सत्यनारायण मुंडा ने अपने वक्तव्य में कहा कि मुंडा समूह के लोग एशिया उपमहाद्वीप के प्राचीनतम निवासी हैं। पत्थलगड़ी की परंपरा मुंडाओं की है जो आदिवासी पहचान, अस्तित्व, संस्कृति और इतिहास की बुनियाद है। झारखंड मुंडाओं का इलाका है। हरमू नदी, स्वर्णरेखा, दामोदर आदि यहां के हर इलाके में पत्थलगड़ी और ससनदिरि का होना इसी बात का सबूत है। लेकिन अब हरमू नदी की तरह ही ससनदिरि भी विलुप्त हो गया है। इसलिए जरूरी है कि समुदाय को बचाने के लिए कलम उठाया जाए।

प्रख्यात साहित्यकार डा. रोज केरकेट्टा ने कहा कि मुंडा लेखक द्वारा मुंडा इतिहास पर लिखी गई यह तीसरी महत्वपूर्ण किताब है। पुस्तक मिथ से लेकर समाज की सामुदायिक संरचना पर प्रकाश डालती है। इतिहास लिखते हुए वर्तमान को भी व्याख्यायित करने की आवश्यकता है। साथ ही ऐतिहासिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से लैस होकर मुंडा, मानकी और बुद्धिजीवियों को भी मोर्चा संभालने की जरूरत है।

रेव. सिरिल हंस ने पुस्तक पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने कहा कि 316 पृष्ठों की यह पुस्तक दो खंडों में है। इसकी विशेषता यह भी है कि इसमें मुंडारी के साथ-साथ कुछ जरूरी लेख हिंदी में भी दिए गए हैं। मौजूदा समाज और नई पीढ़ी को इतिहास से जोड़ने में सक्षम है यह पुस्तक। मुंडारी कार्यकर्ता दुर्गावती ओड़ेया ने इतिहास को संजोने के लिए ऐसे पुस्तकों के प्रकाशन को महत्वपूर्ण बताया। वरिष्ठ मुंडारी साहित्यकार और आलोचक जोवाकिम तोपनो ने पुस्तक पर बोलते हुए कहा कि लेखक ने बहुत श्रम, अध्ययन और शोध के बाद इसकी रचना की है। मुंडाओं के इतिहास पर यह बेमिसाल पुस्तक है। आज के मुश्किल समय से गुजर रहे आदिवासी समाज के लिए यह एक मशाल है।

सुप्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता दयामनी बारला ने कहा कि समाज का ये दायित्व बनता है कि  वह लेखक के श्रम को उचित सम्मान दे। यह किताब ऐसे समय में आई है जब हमारे इतिहास पर हमला हो रहा है। जंगल, जमीन, भाषा, परंपराओं को मिटाने का षड्यंत्र जोरों पर है। मुंडा समाज के वरिष्ठ आलोचक और मुंडारी पत्रिका ‘सेंड़ा सेतेंग’ के प्रकाशक नवीन मुुंडू ने किताब को ज्ञान और बदलाव का औजार बताया। उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में इतिहास की इस पुस्तक से समाज को अपने इतिहास और वर्तमान दोनों को समझने में मदद मिलेगी।

लोकार्पण समारोह में अतिथियों का स्वागत मुंडा सभा, रांची के सचिव विल्कन डांग ने किया। और संचालन झारखंडी भाषा साहित्य संस्कृति अखड़ा की महासचिव वंदना टेटे और धन्यवाद ज्ञापन डा. खातिर हेमरोम ने किया। आयोजन में विल्कन डांग एवं सिलास हेमरोम ने मुंडारी गीतों की मार्मिक प्रस्तुति दी। जिसमें वर्तमान समय में आदिवासी समाज के संघर्ष का वर्णन था।

केएम सिंह मुंडा
केंद्रीय प्रवक्ता
झारखंडी भाषा साहित्य संस्कृति अखड़ा


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