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28.3.18

दुनिया में शीत युद्ध फिर शुरू

पढ़ें वरिष्ठ पत्रकार वेद प्रताप वैदिक का विश्लेषण....


डॉ. वेदप्रताप वैदिक
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पिछले हफ्ते जब यह घोषणा की कि वे अपने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के पद पर जाॅन बोल्टन को लाएंगे और माइक पोंपियो को विदेश मंत्री बनाएंगे, तभी मैंने लिखा था कि इन दोनों अतिवादियों के कारण अब नए शीतयुद्ध के चल पड़ने की पूरी संभावना है। इस कथन के चरितार्थ होने में एक सप्ताह भी नहीं लगा। अब ट्रंप ने 60 रुसी राजनयिकों को निकाल बाहर करने की घोषणा कर दी है।



अमेरिका अब सिएटल में चल रहे रुसी वाणिज्य दूतावास को बंद कर देगा और वाशिंगटन व न्यूयार्क में कार्यरत राजनयिकों को यह कहकर निकाल रहा है कि वे जासूस हैं। अमेरिका के नक्शे-कदम पर चलते हुए 21 राष्ट्रों ने अब तक लगभग सवा सौ से ज्यादा रुसी राजनयिकों को अपने-अपने देश से निकालने की घोषणा कर दी है। इन देशों में जर्मनी, फ्रांस, डेनमार्क, इटली जैसे यूरोपीय संघ के देश तो हैं ही, कनाडा और उक्रेन जैसे राष्ट्र भी शामिल है। अंतरराष्ट्रीय राजनीति के इतिहास में इस तरह की यह पहली घटना है। किसी एक राष्ट्र का इतने राष्ट्रों ने एक साथ बहिष्कार कभी नहीं किया।
यह कूटनीतिक बहिष्कार इसलिए हो रहा है कि 4 मार्च को ब्रिटेन में रुस के पुराने जासूस कर्नल स्क्रिपाल और उसकी बेटी यूलिया की हत्या की कोशिश हुई। वे दोनों अभी अस्पताल में अचेत पड़े हुए हैं। इस हत्या के प्रयत्न के लिए ब्रिटेन ने रुस पर आरोप लगाया है। रुस ने अपने इस पुराने जासूस की हत्या इस संदेह के कारण करनी चाही होगी कि यह व्यक्ति आजकल ब्रिटेन के लिए रुस के विरुद्ध फिर जासूसी करने लगा था। इस दोहरे जासूस को रुस में 2005 में 13 साल की सजा हुई थी लेकिन 2010 में इसे माफ कर दिया गया था। तब से यह ब्रिटेन के शहर सेलिसबरी में रह रहा था। रुस ने ब्रिटिश आरोप का खंडन किया है और कहा है कि अभी तो इस मामले की जांच भी पूरी नहीं हुई है और रुस को बदनाम करना शुरु कर दिया गया है।
यह सबको पता है कि ब्रिटेन की यूरोपीय राष्ट्रों के साथ आजकल काफी खटपट चल रही है और ट्रंप और इन राष्ट्रों के बीच भी खटास पैदा हो गई है लेकिन मजा देखिए कि रुस के विरुद्ध ये सब देश एक हो गए हैं। जहां तक रुसी कूटनीतिज्ञों के जासूस होने का सवाल है, दुनिया का कौनसा देश ऐसा है, जिसके दूतावास में जासूस नहीं होते ? किसी एक दोहरे जासूस की हत्या कोई इतनी बड़ी घटना नहीं है कि दर्जनों देश मिलकर किसी देश के विरुद्ध कूटनीतिक-युद्ध ही छेड़ दें। रुस के विरुद्ध ट्रंप का अभियान तो इसलिए छिड़ा हो सकता है कि वे अपने आप को पूतिन की काली छाया में से निकालना चाहते हों और रुस के विरुद्ध सीरिया, एराक, ईरान, उ. कोरिया और दक्षिण एशिया में भी अपनी नई टीम को लेकर आक्रामक होना चाहते हों। घर में चौपट हो रही उनकी छवि के यह मुद्रा शायद कुछ टेका लगा दे।
लेखक वेद प्रताप वैदिक वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार हैं.

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