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10.7.18

सुनो सुशासन बाबू,आपके सुशासन वाले बिहार में पत्रकार और पत्रकारिता सुरक्षित नही

इन दिनों एक बार फिर लगता है कि बिहार में वही 90 के दशक वाला जंगलराज शुरू हो चुका है। बिहार में पहली बार जब नीतीश कुमार की सरकार बनी तो काफी बदलाव हुआ। सबसे ज्यादा लचर कानून प्रणाली में सुधार हुआ। लेकिन जैसे-जैसे नीतीश कुमार की सरकार दूसरी और तीसरी बार सत्ता में आई।वैसे वैसे कानून प्रणाली लचर होती जा रही। बिहार में हालात इन दिनों ऐसी है कि  मीडिया जो समाज को सच से रूबरू कराता है उन पत्रकारों को भी अपनी जान गवानी पर रही। एक दो नही कई नाम हैं जो नीतीश कुमार के कार्यकाल में पत्रकारिता करते हुए पत्रकार की मौत हुई।


इतना ही नही बिहार में पत्रकार अब राजनेता और पुलिस से भी अपने आप को असुरक्षित महसूस कर रहे। अगर राजनेता और पुलिस के खिलाफ खबर लिखकर उनकी गलती को आपने समाज के सामने लाया तो वैसे पुलिस वाले आपको अपने टारगेट में लेंगे। इन मामलों के कई ताजा उदाहरण भी हैं। इन दिनों बिहार की पुलिस खासकर कुछ थानेदार पत्रकारों के साथ अपराधी जैसा व्यबहार करती है। उन पुलिस वालों को संवाददाता,संवादसूत्र और पत्रकार में अंतर ही समझ में नही आता। और ना भी आए तो क्या वास्ता? खाकी हमेशा से दागदार रही है।हाल ही में बिहार की राजधानी पटना में खाकी ने अपने रॉब में एक नावालिग बच्चा को केवल इसलिए जेल भेज दिया कि उसने उन पुलिस वालों को मुफ्त में सब्जी नही दिए था। इतना ही नहीं पुलिस ने उस नावालिग सब्जी बिक्रेता को कई झूठे मुकदमे में जेल भेज दिया।बाद में मामले की मीडिया ट्रायल में एक दर्जन पुलिस वाले सस्पेंड हुए।

मैं 6 वर्षों से पत्रकारिता कर रहा हूँ। शुरूआत में प्रभात खबर में क्राइम बीट मिला। तो क्राइम रिपोर्टिंग ही करने लगा। 6 वर्षो में पत्रकारिता में काफी उतार चढ़ाव देखा।ब्यूरो चीफ से संपादक तक तो सड़क पर आते देखा। तो हमने अपना एक नया रास्ता बनाया। जिसमे तीन वर्षों पहले तत्कलीन तिरहुत IG श्री पारसनाथ सर् से 2 अप्रैल को लोकार्पित "दी आशी पोस्ट" नामक द्विभाषी मासिक पत्रिका का प्रकाशन शुरू किए। आज एक अच्छी और कर्मठ टीम हमारे साथ काम कर रही।

बीती रात करीब 12.28 में एक नंबर से हमे कॉल आया।फ़ोन करने वाले ने अपना परिचय बताए बिना ही बोल की बहुत लिखते हो। सारा धंधा चौपट हो गया। उसने एक बार नही लगातार 3 बार कॉल किया। हमने सभी कॉल रिसीव भी किए। अंत मे उसने बोला की अब तुम्हारी हत्या ही होगी। हमने उसका घर का पता पूछा कि बताओ मैं ही आ जाता। लेकिन उसने कॉल काट दिया। हालांकि ऐसे चवन्नी छाप गुंडों के फ़ोन कॉल से मैं घबराने वाला नही। और अगर डर लगता तो पत्रकार नहीं बनता। पूरे परिवार की तरह शिक्षक ही बन जाता। अगर मेरे द्वारा सच लिखना किसी को अच्छा नही लगता तो मैं क्या करूँ? मैं तो सच लिखूंगा। गलत करने वाले अपना धंधा बदल लें।

राहुल अमृत राज "संपादक"
दी आशी पोस्ट "मासिक पत्रिका"
हेडलाइंस इंडिया डॉट लाइव "न्यूज़ पोर्टल"

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