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10.8.18

डीपीआर ने मिमियाना सिखा दिया

सत्ता से लोहा लेकर मीडिया सच को परोसेगा यह सोचना मात्र भी मूर्खता ही होगी । सोचने... समझने...समझाने... देखने.... दिखाने की जगह मीडिया ने मिमियाना शुरू कर दिया है... राग वो ही बजता है जो सरकार सुनना पसंद करें... राग वो ही बचता है जो TRP दे.. राग वो ही बचता है जो DPR लाने मे मदद करें.. ओर इस P और R से बाहर निकलकर कोई कुछ कहने की जुर्रत करता है तो वो सरकार विरोधी नहीं देश विरोधी हो चलता है.... ऐसे में सत्ता की डपली बजाते हुए उसे सिर पर बैठाने की गलत परंपरा मीडिया के लिए ही घातक हो गई है या यूं कहें कि DPR का दांव गले फांस बन गई है जो कुछ ज्यादा ही दर्द कर रही है और समय के साथ-साथ इसका दर्द और भी तेज होता रहेगा जैसा अभी हो भी रहा है । शायद हलाली लेकर सोए मीडिया पर यह संकट समय से कुछ पहले ही आ गया...

ऐसा नहीं है कि मीडिया पर यह संकट इससे पहले नहीं आया हो... लेकिन इस बार का संकट विकराल और बड़ा है । पत्रकारिता जमात के कुछ ही तो लोग बचे है जो बिना घूरे, चीखे-चिल्लाए केवल पत्रकारिता के कुछ ही नियमों का पालन कर रहे थे.... जी हां कुछ ही नियम और कुछ हद तक बिका हुआ मैनेजमेंट भी जैसे-तैसे कुछ सच दिखने की हामी दे रहा था ओर इसमंे ही सत्ता नाराज हो गई... अगर सामान्य पत्रकारिता और जरा सी आलोचना में सरकार विचलित हो जाती है तो यह बेहद शर्मनाक है.... क्योकि अगर पत्रकार ही सरकार की आलोचना नहीं करेगा तो कौन करेगा ? कई संस्थानों में मैंने हमारे माननीय एमपी सीएम शिवराज और छत्तीसगढ़ सीएम रमन सिंह के खिलाफ ख़बर आने पर उसकी हत्या होते हुए देखा है।

मैनेजमेंट की एक ना आपकी लिखी लिखाई ख़बर को कचरे के डब्बे में डालने को मजबूर कर देती है और घर का खर्च... पापा की दवाई.... जैसे पुराने डायलॉग आपको बांध देते है... एक अफसोस है कि मैं मप्र में हूं और नेशनल चैनल पर कभी कबार पीएम मोदी की नेगेटिव ख़बरों का गला घोटने की ख़बरों को सुन लेता हूं.... लेकिन कौन से फोन की घंटी ने खबरों को रोक दिया ये देख नहीं पता शायद मैंने जिन घंटियों को सुना है ये घंटियां वैसी ही होती होंगी.... खैर ये लाचारगी ही है जिसको रोना बेवकूफी ही होगी । मोदी सरकार में कुछ दिखाने से पहले पीएमओ से परमिशन लेना होता है... और अगर ऐसा नहीं होता तो सेटेलाइट के ही सिग्नल गुल कर दिए जाते है... मोदी सरकार का राग गाने मंे पूरा मीडिया जगत इतना गले तक डूब गया कि अब उसके अस्तित्व को बचाने के लिए एक गोताखोर की तलाश है... सरकार को अपना राग सुनना इतना पसंद है कि लोकसभा से लेकर राज्यसभा में विपक्ष को ना दिखाने की एक नई परंपरा शुरू कर दी गई है । लोकसभा मे स्पीकर सुमित्रा महाजन ने तो मल्लिकाअर्जुन खड़गे को यह कह कर चुप कर दिया कि ये मामला प्राइवेट चैनल का है और इस बात को सदन में करने का कोई मतलब नहीं है....

ऐसे में यदि कह दिया जाए कि लोकतंत्र खतरे में है तो कुछ लोगों के जुमले और एक्टिंग इतनी हावी हो जाएगी कि सब कुछ मिथ्या ही लगेगा बिल्कुल फिल्म भागमति के इश्वर प्रसाद की तरह । अब ये समझाना बेहद जरूरी है कि आखिर मीडिया अब अपने ही अस्तित्व से लड़ाई क्यों लड़ रहा है... दरअसल मोदी से जनता को काफी उम्मीदें थी और जनता सिर्फ मोदी को देखना और सुनना चाहती थी ओर मोदी के खिलाफ दिखाना यानी डीपीआर का सत्यानाश करना और ऐसे में मीडिया ने भी अपनी अकल लगाई ओर टीआरपी के लिए भी ठीक वैसा ही किया जैसा जनता देखना चाहती थी... इस रेस मे एक दूसरे से आगे निकल जाने के चक्कर में अपने मूलभूत सिद्धांतों की हमने बलि चढ़ा दी.... डीपीआर ने हमंे अच्छा... ओर मधुमक्खी के छत्ते के रस की तरह वाह वाही करने पर मजबूर कर दिया है.... थोड़ी शर्म हमने तोड़ दी और बची कूची कड़वा लिखने की हिम्मत को सत्ता ने रोंद दिया.... मीडिया को नतमस्तक देख.... सरकार भी तानाशाह हो गई।

मीडिया सत्य की सुरक्षा का ढाल बनाने में पीछे रह गया । सत्य को कुचल कुचल कर वो सब दिखाया गया जो जनता देखना चाहती थी ऐसेे में अब सच दिख रहा है या दिखाया जा रहा है तो उन्हें नौकरी से निकाल नई परिभाषा पेश की जा रही है । शायद ये बड़ा संकट ही है जिसे मीडिया के धुरंधर डिबेट में चीखने चिल्लाने वाले या वाली समझ नहीं पा रहे है । बस नौकरी बचाई जा रही है और इसके लिए जो करना पड़े उसके लिए सब तैयार है सत्ता से लड़ने वाली मीडिया आज मेमना बन गई है.... प्रसूनजी ने आजतक न्यूज़ में रामदेव को घेरा तो बाहर एबीपी न्यूज़ मे मोदी को घेरा तो बाहर अब नया ठिकान वहां भी पता नहीं कब बाहर का रास्ता नापने का कह दिया जाए.. ये हाल एक पत्रकार का नहीं है समूचे देश के कई राज्यों के पत्रकारों का जो दिल्ली तक पहुंच नहीं पता क्योंकि दिल्ली दूर है । फिलहाल चाटूकारिता को ही पसंद कर अपनाया जा रहा है क्योंकि वो ही बेस्ट आईडिया है इस फिल्ड में जमे रहने का । ऐसे में सच कभी कभी कबार दिखाकर हम वा वाही तो लूट ही सकते हैं ।

हेमंत मालवीय 
malviyah7@gmail.com

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