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21.9.18

मजीठिया वेज बोर्ड की लड़ाई लड़ने वाले साथी देश के सबसे बड़े पत्रकार कहलाने लायक हैं, इन्हें सलाम

यह माना जाता है कि देश में सुप्रीम कोर्ट सर्वोच्च संस्था है। देश की सुप्रीम पॉवर है। पर जिस तरह से राजनीतिक दलों ने सुप्रीम कोर्ट के एससीएसटी कानून में किये संसोधन को विधेयक लाकर बदल दिया। जिस तरह से सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद प्रिंट मीडिया में मजीठिया वेज बोर्ड लागू नहीं हो पा रहा है। उल्टे जिन साथियों ने सुप्रीम कोर्ट का हवाला देकर मजीठिया वेज बोर्ड़ मांगा, उनको टर्मिनेट कर दिया गया। ऐसे में यदि किसी संस्था की प्रतिष्ठा कम हुई है तो वह सुप्रीम कोर्ट ही है।


विभिन्न समाचार पत्रों से सैकड़ों मीडिया कर्मी मजीठिया वेज बोर्ड के लिए संघर्षरत हैं। विभिन्न परिस्थितियों से जूझते हुए बेरोजगार होकर भी सुप्रीम कोर्ट के आदेश का सम्मान कराने के लिए बुलंद आवाज किये हुए हैं। वे हैं देश के असली पत्रकार।

     जो साथी अपनी लड़ाई नहीं लड़ सकते वे देश और समाज की क्या खाक लड़ेंगे। मेरा मानना है कि आज देश में जिन परिस्थितियों में ये मीडियाकर्मी मीडिया मालिकानों के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं। ये देश की सबसे बड़ी लड़ाई है।

मेरा सुप्रीम कोर्ट से प्रश्न है कि जिन साथियों ने हिम्मत करके प्रिंट मीडिया के मालिकानों से आपके आदेश का सम्मान करने के लिए दबाव बनाया, आपने उन्हें क्या सुरक्षा दी। यदि इन साथियों को आपसे सुरक्षा मिल जाती तो विभिन्न समाचार पत्रों में काम कर साथियों की हिम्मत भी बढ़ती और वे साथी भी सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करने के लिए मालिकानों पर दबाव बनाते। इससे सुप्रीम कोर्ट पर लोगों का विश्वास बढ़ता।

    यह मीडियाकर्मियों का दुर्भाग्य ही है कि मजीठिया वेज बोर्ड मिला तो नहीं उल्टे इसके नाम पर प्रिंट मीडिया में उत्पीड़न और शोषण का खेल तेज हो गया। गिने चुने मीडियाकर्मी इस बेशर्म प्रिंट मीडिया के सम्मान के लिए संघर्ष कर रहे हैं और सत्ता पक्ष, विपक्ष और न्यायपालिका तमाशबीन बने हुए हैं। मेरा अपना मानना है कि समय से न्याय न मिलना भी अन्याय ही होता है। पत्रकारिता की बड़ी बड़ी बातें करने वाले देश के पत्रकार, पत्रकार यूनियनें धंधेबाज बन गए हैं। यहां तक कि रविश कुमार और प्रसून वाजपेयी जैसे व्यवस्था के खिलाफ लड़ने का दम्भ भरने वाले पत्रकार भी इस मुद्दे पर चुप्पी साधे बैठे हैं।

   जो साथी मजीठिया वेज बोर्ड और टर्मिनेशन के खिलाफ लड़ रहे हैं। वे हैं आज के असली पत्रकार। मेरा उन्हें सलाम। साथियों हम हर हाल में जीतेंगे। कोई साथ दे या न दे। देश में पत्रकारिता के क्षेत्र में इतिहास रचा जाएगा। तब हम इन पूंजीपतियों की जेब के संपादकों की आंखों में आंखें डाल कर पूछेंगे कि आप लोगों ने पत्रकारिता के लिए क्या किया।

मीडिया का ईमानदार होना बहुत जरूरी

आजकल पत्रकारिता की बड़ी बड़ी बातें हो रही हैं। काफी साथी अपने को बड़ा पत्रकार दर्शाने में लगे हैं। मेरा अपना मानना है कि किसी मीडिया हाउस में काम करने वाला व्यक्ति पत्रकार है ही नहीं । धंधेबाज लोगों ने मीडिया हाउस खोलकर धंधेबाज पत्रकारों को अपनी ढाल के रूप में लगा दिया है। जिन लोगों को हम बड़ा पत्रकार मान रहे हैं वे अपने मालिक का व्यापार बढ़ाने और उसकी गर्दन बचाने के लिए काम कर रहे हैं। अधिकतर मीडिया हाउस सरकार के प्रवक्ता बने हुए हैं। कुछ सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलकर विपक्ष के बड़े नेताओं के संपर्क में हैं। जिस पत्रकार को हम बड़ा क्रांतिकारी पत्रकार माने बैठे हैं। उस पत्रकार का जब एक फोटो मैंने एक जाति विशेष के क्षेत्रीय दल के अध्यक्ष के साथ सेल्फी लेते देखा तो मैंने उसमें पत्रकारिता कम और राजनीति ज्यादा दिखाई दी। कुल मिलाकर कुछ मीडिया हाउस सत्तापक्ष के लिए काम कर रहे हैं तो कुछ विपक्ष के लिए। देश और समाज के लिए कोई काम करने को तैयार नहीं।

  हां मजीठिया वेज बोर्ड की लड़ाई लड़ने वाले और कुछ पोर्टल खोलकर सोशल मीडिया के माध्यम से व्यवस्था से लड़ने वाले मीडियाकर्मी जरूर पत्रकारिता के लिए लड़ रहे हैं। मीडिया का ईमानदार होना बहुत जरूरी है। क्योंकि सभी मुद्दों पर मीडिया के माध्यम से चर्चा होती है।

चरण सिंह राजपूत
वरिष्ठ पत्रकार एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष फाइट फ़ॉर राइट
charansraj12@gmail.com

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