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6.7.19

हरेन पांड्या हत्याकांड का सच अब कभी सामने नहीं आएगा

जे.पी.सिंह
हरेन पांड्या हत्याकांड का सच अब कभी सामने नहीं आएगा क्योंकि उच्चतम न्यायालय ने एनजीओ 'सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन' (सीपीआइएल) की जनहित याचिका खारिज कर दी, जिसमें इस हत्या की उच्चतम न्यायालय की निगरानी में फिर से जांच कराने की मांग की गई थी।उच्चतम न्यायालय ने एनजीओ पर 50 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया है। साथ ही यह भी कहा है कोर्ट की निगरानी में नए सिरे से जांच नहीं होगी, ट्रायल कोर्ट का आदेश बरकरार रहेगा।

 इस हाईप्रोफइल हत्याकांड में हरेन पंड्या  के पिता विठ्ठलभाई पंड्या ने अपने बेटे की हत्या के लिए नरेन्द्र मोदी और अमित शाह को दोषी बताया था। कई साल तक इस मामले में शांत रहने के बाद हरेन की पत्नी जागृति पंड्या ने 2007-08 में अपने ससुर विठ्ठलभाई की तरह मोदी और शाह को अपने पति की हत्या के लिए ज़िम्मेदार बताया था।हालांकि, वो खुद बाद में भाजपा  में शामिल हो गई थीं।

 उच्चतम न्यायालय ने सीबीआई और गुजरात सरकार की अपीलों पर अपना फैसला सुना दिया है। उच्चतम न्यायालय ने गुजरात के पूर्व गृह मंत्री हरेन पांड्या हत्याकांड में 12 आरोपियों को दोषी ठहराया है। गुजरात के पूर्व गृह मंत्री हरेन पांड्या की साल 2003 में हत्या करने के आरोपों का सामना कर रहे 12 लोगों को बरी करने के फैसले को सीबीआई और गुजरात सरकार ने चुनौती दी थी।सीबीआई और राज्य पुलिस ने गुजरात उच्च न्यायालय के 29 अगस्त 2011 के फैसले को गलत बताते हुए अपील दायर की। उच्च न्यायालय ने 12 लोगों को हत्या के आरोपों से बरी करते हुए निचली अदालत के उस फैसले को बरकरार रखा था जिसमें उन्हें आपराधिक साजिश, हत्या की कोशिश और आतंकवाद रोधी कानून (पोटा) के तहत अपराधों में दोषी ठहराया गया। उच्चतम न्यायालय ने इस साल 31 जनवरी को अपीलों पर फैसला सुरक्षित रख लिया था।

गौरतलब है कि  27 फरवरी 2002 को गोधरा स्टेशन पर साबरमती एक्सप्रेस के एक डिब्बे में आग लगी जिसमे 59 लोग मारे गए | मृत लोगों में ज्यादातर कारसेवक थे जो अयोध्या से लौट रहे थे।  उसी दिन शाम को  मुख्यमंत्री आवास पर एक  बैठक हुयी जिसमे नरेंद्र मोदी भी शामिल हुए। इस बैठक में क्या हुआ ये आज तक जांच का विषय बना हुआ है। गुजरात में बतौर आईपीएस तैनात संजीव भट्ट के मुताबिक़  बैठक में नरेंद्र मोदी ने कहा था कि ‘अगर हिन्दुओं में प्रतिक्रिया होती है, तो होने दिया जाए।’ इसी  27 तारीख की बैठक में एक और बड़ा फैसला हुआ था । फैसला था गोधरा से मरे हुए लोगों की लाशें  अहमदाबाद ले जाने का।  पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों ने इसका विरोध किया था। मोदी सरकार में मंत्री हरेन पंड्या ने भी इसका विरोध किया था।

दंगो की शुरुआत के तीन महीनें बाद मई 2002 के दौरान जस्टिस वीआर कृष्ण अय्यर के नेतृत्व में एक नागरिक ट्रिब्यूनल का गठन किया गया।  यह एक संवैधानिक निकाय नहीं था। यह एक स्वतंत्र खोजी पैनल था जो कि सच सामने लाने के लिए गुजरात दंगों के कारकों की पड़ताल कर रहा था। इसी के समक्ष  कैबिनेट के एक  मंत्री ने  अहमदाबाद में मानवाधिकार संगठन के दफ्तर  जाकर गुप्त रूप से अपना बयान दर्ज कराया था। यह बयान  बाद में मीडिया में लीक हो गया। मंत्री ने ट्रिब्यूनल को बताया कि 27 फरवरी की रात को हुयी यह बैठक दो घंटे तक चली।  मीटिंग में  मुख्यमंत्री  ने स्पष्ट किया था कि  विहिप ने अगले दिन जो बंद बुलाया है उसमे गोधरा के लिए न्याय होगा। उन्होंने पुलिस को भी आदेश दिया था कि उन्हें क‘हिंदू प्रतिक्रियावादियों’ के रास्ते में नहीं आना चाहिए। इस अनाम मंत्री ने ट्रिब्यूनल को यह भी बताया कि पुलिस कंट्रोल  रूम में 28 फरवरी को दो कैबिनेट मंत्री भी मौजूद थे। वह न सिर्फ कण्ट्रोल रूम संभाल रहे थे बल्कि व्यक्तिगत रूप से कार्यवाही की निगरानी भी कर रहे थे। बाद में सरकार को यह पता चल गया  था कि ट्रिब्यूनल के समक्ष बयान देने वाले यह मंत्री हरेन पंड्या थे | राज्य खुफिया विभाग के महानिदेशक बी.श्रीकुमार के मुताबिक यह जानने के लिए नरेंद्र मोदी द्वारा हरेन का फोन टैप करने के लिए कहा गया था।

‘कारण बताओ नोटिस’ के बाद  6 अगस्त 2002 को हरेन पंड्या ने गुजरात मंत्रालय से इस्तीफा दे दिया बल्कि कहा जाता है कि उन्हें ऐसा करने  के लिए कहा गया था।  दिसंबर 2002 में होने वाले विधानसभा चुनावों में, पंड्या ने जिस निर्वाचन क्षेत्र का 10 साल से प्रतिनिधित्व किया था, वहाँ से उन्हें टिकट देने से मना कर दिया गया। पंड्या को पार्टी के लिए मूल्यवान मानने वाले बीजेपी नेताओं ने उन्हें राष्ट्रीय कार्यकारिणी में भेजने का फैसला लिया। पार्टी अध्यक्ष ने 25 मार्च 2003 को दिल्ली बुलाने और आधिकारिक रूप से राष्ट्रीय कार्यकारिणी में शामिल करने के लिए  हरेन पंड्या को एक फैक्स  भेजा | हरेन पंडया कभी दिल्ली नहीं जा पाए क्योंकि फैक्स मिलने के ठीक एक दिन बाद 26 मार्च 2003 को, हरेन पंड्या की अहमदाबाद में दिनदहाड़े हत्या कर दी गयी। हत्या के बाद सीबीआई ने इसकी जांच की और 12 लोगों को चार्जशीट में दोषी माना।पोटा अदालत ने उन्हें दोषी माना था लेकिन गुजरात उच्च न्यायालय ने उन्हें बरी कर दिया था।

इस बीच 9 दिसम्बर2004 को पता चला कि हरेन पंड्या की हत्या के मुख्य साजिशकर्ता  बताये गये मुफ़्ती मोहम्मद पतंगियाँ की पत्नी रुकिय बानो दरियापुर स्थित अपने घर से ‘गायब’ हो गईं। मुफ़्ती मोहम्मद को तब तक सिटी के दो अपराधियों, सोहेल खान पठान और रसूल खान पार्ती  सहित फरार घोषित किया जा चुका था।मुफ्ती सुफियान भी हत्या के एक सप्ताह के भीतर, जबकि वह जाहिर तौर पर अभी भी पुलिस की निगरानी में  था,  देश से बाहर निकल गया। वह कहां गया? ये कोई नहीं जानता।

इस मामले की जांच में सबसे बड़ा सवाल क्राइम सीन को लेकरहै।  आज तक यह पता नहीं चल पाया कि हरेन पंड्या की हत्या ठीक किस जगह पर की गई थी। पुलिस द्वारा बताये गये क्राइम सीन और पोस्टमार्टम रिपोर्ट की तमाम बातें विरोधाभासी थीं।पोस्टमार्टम रिपोर्ट में चोट नंबर 5, जिस गोली की वजह से हरेन की हत्या हुई, वह पंड्या के अंडकोष के निचले हिस्से से शरीर में घुसी, और ऊपर की तरफ गयी। क्या कार में बैठे एक आदमी को इस तरह मारना संभव है, वो भी  एक छोटी सी मारुति 800 में, पंड्या जैसे छह फुट लम्बे भारी भरकम आदमी को मारना।पंड्या को गर्दन, अंडकोष की थैली, बांह और सीने पर गोलियाँ मारी गयीं थीं। कार और कम से कम उनकी आगे वाली सीट को खून से भीग कर एकदम लहू-लुहान हो जाना चाहिए था। फिर भी फोरेंसिक रिपोर्ट में कार में खून के निशान का कोई सबूत नहीं मिला।

प्रयागराज के वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट.

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