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6.7.19

IPS संजीव भट्ट के साथ जो हुआ, उसे लेकर पूर्व नौकरशाहों में बेचैनी है पर सब चुप हैं!

Parmod Pahwa : कोई भी सिविल सर्वेंट किसी भी दृष्टिकोण से गली के गुंडे, मवाली या अपराधी से तो लाख दर्ज़े बेहतर होता है। पुलिस या अन्य किसी सुरक्षा बल में शक्ति का प्रयोग तथा हथियार प्रशिक्षण का हिस्सा होते हैं और जीना-मरना एक सामान्य प्रक्रिया।
1984 में हम अमृतसर में थे, ऑपरेशन समाप्त हो चुका था। बाहरी घेरे में अभी रुक-रुक कर कर्फ्यू लगा दिया जाता था। उसे मद्रास रेजीमेंट सिक्योर कर रही थी जिससे कोई बहस ही न करे। एक संदिग्ध व्यक्ति कंटीली तारों के बेरिकेट्स को पार करने की कोशिश करने लगा तो ड्यूटी पर तैनात गॉर्ड ने गोली मार दी।

ऐसा ही हादसा श्रीनगर में हुआ था तो मोदीजी ने सेना के विरुद्ध एफआईआर दर्ज करा दी तथा साथ ही इसे अपनी उपलब्धि बताते हुए भाषण दिया। आज संजीव भट्ट IPS के साथ जो हो रहा है या हुआ है, उसे लेकर पूर्व नौकरशाहों में बेचैनी जरूर है लेकिन चुप है।

प्रगतिशील विचारकों में चर्चा का विषय है लेकिन कोई शुरुआत नही करना चाहता। पत्रकारिता की उच्च स्तरीयता पर तो कुछ कहना ही नहीं चाहिए। कल सीबीआई कोर्ट ने किसी हत्यारोपी नेता को निर्दोष साबित कर दिया तो उसके पक्ष-विपक्ष में बहुत कुछ कहा गया। लेकिन संजीव भट्ट के विषय पर चुप्पी क्यों? यदि सज़ा देने को सही समझते हो तो सज़ा का समर्थन ही कर दो।

प्रमोद पाहवा की एफबी वॉल से.

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