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31.8.19

चमत्कार है तो नमस्कार है ....!!

चमत्कार है तो  नमस्कार है    ....!!
तारकेश कुमार ओझा
डयूटी के दौरान लोगों के प्रिय - अप्रिय सवालों से सामना तो अमूमन रोज ही होता है। लेकिन उस रोज आंदोलन पर बैठे हताश - निराश लोगों ने कुछ ऐसे अप्रिय सवाल उठाए , जिसे सुन कर मैं बिल्कुल निरूत्तर सा हो  गया। जबकि आंदोलन व सवाल करने वाले न तो पेशेवर राजनेता थे और ​न उनका इस क्षेत्र का कोई अनुभव था। तकरीबन दो सौ की संख्या वाले वे बेचारे तो खुद वक्त के मारे थे। एक सरकारी संस्थान में वे प्राइवेट कर्मचारी के तौर पर कार्य करते हैं जिसे सरकारी भाषा में संविदा , कैजुयल या कांट्रैक्चुयल कर्मचारी भी कहा जाता है।   आंदोलन उनका शौक नहीं बल्कि ऐसा वे  इसलिए कर रहे थे, क्योंकि उन्हें पिछले  नौ महीने से तनख्वाह नहीं मिली थी। मेरे धरनास्थल पर पहुंचते ही उन्होंने जानना चाहा कि मैं किस चैनल से हूं। मेरे यह बताने पर कि मैं किसी चैनल से नहीं बल्कि प्रिंट मीडिया से हूं। उनके मन का गुबार फूट पड़ा। नाराजगी जाहिर करते हुए वे कहने लगे कि चैनलों पर हम रोज देखते हैं कि पड़ोसी मुल्क अपने मुलाजिमों को तनख्वाह नहीं दे पा रहा। हम इसी देश के वासी हैं और हमें भी पिछले नौ महीने से वेतन नहीं मिला है... लेकिन हमारा दुख -दर्द कोई चैनल क्यों नहीं दिखाता। उनके सवालों से मैं निरुत्तर था। वाकई देश में किसी बात की जरूरत से ज्यादा चर्चा होती है तो कुछ बातों को महत्वपूर्ण होते हुए भी नजर अंदाज कर दिया जाता है। पता नहीं आखिर यह कौन तय कर रहा है कि किसे सुर्खियों में लाना है और किसे हाशिये पर रखना है। सोचने - समझने की शक्ति कुंद की जा रही है और चमत्कार को नमस्कार करने की मानवीय कमजोरी को असाध्य रोग में तब्दील किया जा रहा है। यही बीमारी जेएनयू में विवादित नारे लगाने वाले कन्हैया कुमार को राष्ट्रनायक की तरह पेश करने पर मजबूर करती है। 2011 में अन्ना हजारे का लोकपाल आंदोलन सफल रहने पर हम उन्हें गांधी से बड़ा नेता साबित करने लगते हैं। लेकिन कालांतर में यह सोचने की जहमत भी नहीं उठाते कि वही अन्ना आज कहां और किस हाल में हैं और उनके बाद के आंदोलन विफल क्यों हुए। नामी अभिनेता या अभिनेत्री का एक देशभक्तिपूर्ण ट्वीट  उसे महान बना सकता है, लेकिन अपने दायरे में ही पूरी ईमानदारी से कर्तव्यों का पालन करते हुए जान की बाजी लगाने वालों के बलिदान कहां चर्चा में आ पाते है। अक्सर सुनते हैं मेहनतकश मजदूर , रेलवे ट्रैक की निगरानी करने  वाले गैंगमैन या प्राइवेट सिक्योरिटी गार्ड डयूटी के दौरान जान गंवा बैठते हैं। वे भी देश का ही कार्य करते हुए ही मौत के मुंह में चले जाते हैं, लेकिन उनकी ओर किसी का ध्यान नहीं जाता या ध्यान देने की जरूरत भी नहीं समझी जाती।   लोकल ट्रेनों से निकल कर मायानगरी मुंबई के शानदार स्टूडियो में गाने वाली रानू मंडल के जीवन में आए आश्चर्यजनक बदलाव से हमारी आंखें चौंधिया जाती है, लेकिन हम भूल जाते हैं कि 90 के दशक के सवार्धिक सफल पाश्र्व गायक मोहम्मद अजीज करीब दो दशकों तक गुमनामी के अंधेरे में खोए रहे। उनकी चर्चा तभी हुई जब उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया। किसी कथित टैलेंट शो में गाकर प्रसिद्ध हुए गायक हमें अपनी और आकर्षित करते हैं लेकिन उन गुमनाम गायकों की कभी भूल से भी चर्चा नहीं होती जो अपने जमाने के नामी गायकों की संताने हैं । पिता की तरह उन्होंने भी गायन के क्षेत्र में करियर बनाना चाहा, लेकिन सफल नहीं हो सके। हमें कौन बनेगा करोड़पति में चंद सवालों के जवाब देकर करोड़पति बनने वालों पर रीझना सिखाया जा रहा है , लेकिन  लाखों लगा कर डिग्रियां हासिल करने के बावजूद चंद हजार की नौकरी की तलाश में चप्पलें घिसने वाले देश के लाखों नौजवानों की चिंता हमारे चिंतन के केंद्र में नहीं है। क्योंकि इससे बाजार को भला क्या हासिल हो जाएगा। बल्कि ऐसी भयानक सच्चाईयां हताशा और अवसाद को जन्म देती है। लेकिन चमत्कार को नमस्कार करने की यह प्रवृति एक दिन कहां जाकर रुकेगी , सोच कर भी डर लगता है।
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*लेखक पश्चिम बंगाल के खड़गपुर में रहते हैं और वरिष्ठ पत्रकार
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चिन्मयानंद मामला : सुप्रीम कोर्ट में पेश छात्रा नहीं लौटना चाहती यूपी, 4 दिन दिल्ली में रहेगी

जेपी सिंह
उच्चतम न्यायालय ने स्वामी चिन्मयानंद के खिलाफ अपने यौन उत्पीड़न के आरोपों के बाद लापता हुई एलएलएम की छात्रा को 4 दिनों के लिए अखिल भारतीय महिला सम्मेलन में रहने की व्यवस्था करने का निर्देश रजिस्ट्री को दिया है। भाजपा के पूर्व सांसद एवं पूर्व गृहमंत्री  स्वामी चिन्मयानंद पर शोषण के आरोप लगाने वाली पीड़ित लड़की को यूपी पुलिस उच्चतम न्यायालय लेकर पहुंची जहां जस्टिस आर भानुमति और जस्टिस ए.एस.बोपन्ना ने उससे बात की।

बैंकों का विलय कर अर्थव्यवस्था को फिर अस्थिर कर रही है मोदी सरकार!

जेपी सिंह
आने वाले 5 साल में देश को पांच लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने के लिए नेक्स्ट जेनरेशन बैंकों का होना जरूरी है। ऐसा दावा करते हुए केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने शुक्रवार को सरकारी बैंकों के मेगा कंसॉलिडेशन प्लान की घोषणा की। अब देश में सरकारी बैंकों की संख्या मौजूदा 27 से घटकर 12 रह जाएगी। 6 छोटे सरकारी बैंकों का भारतीय स्टेट बैंक में तथा विजया बैंक, देना बैंक का बैंक ऑफ बड़ौदा में पहले ही विलय हो चुका है। इस तरह, एसबीआई तथा बैंक ऑफ बड़ौदा विलय के बाद 10 सरकारी बैंकों में पहले ही शीर्ष दो बड़े बैंकों में तब्दील हो चुके हैं।

मोदी राज में भारत से सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था का तमगा छिना

जेपी सिंह

आर्थिक विकास दर में गिरावट के बाद भारत से दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था का तमगा छिन गया है। अर्थव्यवस्था की हालत और बदतर हुई, जून तिमाही में जीडीपी विकास दर घटकर 5 फीसद रह गयी है। यह साढ़े छह वर्षों का निचला स्तर है। साल 2013 के बाद जीडीपी ग्रोथ का यह सबसे बुरा दौर है।यह तब है जब जीडीपी की गणना 2014 में केंद्र में मोदी सरकार के आने के बाद बदली प्रणाली से की गयी है जबकि यूपीए सरकार के मानदंडों से यदि गणना की जयकछुआ चाल से इसका समाधान सम्भव नहीं है बल्कि इसके लिए तीव्र गति से प्रयास करना पड़ेगा। तो यह मात्र 2 से 2. 5 फीसद के बीच ही बैठेगी।जीडीपी के  वर्तमान हालात आर्थिक आपातकाल सरीखे हो गए है।  कछुआ चाल से इसका समाधान सम्भव नहीं है बल्कि इसके लिए तीव्र गति से प्रयास करना पड़ेगा। सरकार को समझना होगा कि अब शेखी बघारने से काम नहीं चलेगा क्योंकि जीडीपी का गिरकर 5 फीसदी पर पहुंचना, उसके अब तक के दावों पर गंभीर प्रश्नचिन्ह खड़ा कर रहा है।

अडानी का नाम आते ही कहां चला जाता है मोदी का राष्ट्रवाद?

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश में ऐसा मायाजाल फैला रखा है कि लोग सब कुछ जानते हुए भी अनजान बने घूम रहे हैं। देश में रोजी-रोटी का बड़ा संकट पैदा हो गया है। अर्थव्यवस्था पूरी तरह से गड़बड़ा गई है। बेरोजगारी के मामले में मोदी सरकार ने पिछली सभी सरकारों को पीछे छोड़ दिया है। नौबत यहां तक आ गई है कि सरकार ने रिजर्व बैंक का रिजर्व पैसा 1.76 हजार करोड़ रुपये भी निकाल लिया है। निजीकरण के नाम पर देश के संसाधनों को लूटवाने की तैयारी सरकार ने पूरी कर ली है। रेलवे यहां तक रक्षा विभाग भी संकट में है। आर्डिनेस फैक्टरी में 45 हजार कर्मचारियों ने आंदोलन छेड़ रखा है। निजी कंपनियों में बड़े स्तर पर छंटनी का दौर चल रहा है। प्रधानमंत्री ने लोगों को भावनात्मक मुद्दों में उलझा रखा है। गिने-चुने विरोधियों पर शिकंजा कसकर भ्रष्टाचार को मिटाने की बात की जा रही है। जबकि न केवल सरकार में शामिल बल्कि दूसरी पार्टियों से आकर मोदी और शाह के सामने आत्मसमर्पण करने वाले नेताओं को संरक्षण दे दिया जा रहा है। जनता को देशभक्ति का उपदेश दिया जा रहा है और अपने करीबियों को सरकारी संसाधनों को दोनों हाथों से लूटवाया जा रहा है। वैसे तो प्रधानमंत्री नरेंन्द्र मोदी अपने हर करीबी को संरक्षण दे रहे पर अडानी ग्रुप पर तो जैसे सब कुछ लुटाने को तैयार हैं।

25.8.19

कृष्ण के दृष्टिकोण आज के सामाजिक सन्दर्भ में

डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी
हिन्दू धर्म में हम कृष्ण को गुरु मानते हैं। मेरे अनुसार कृष्ण केवल गुरु ही नहीं हैं, क्योंकि गुरु तो अन्धकार से प्रकाश में ले जाते हैं। कृष्ण ने तो अन्धकार को नजरअंदाज करते हुए भूत-वर्तमान और भविष्य के प्रकाश को स्थापित करने का कार्य किया है। कृष्ण ने इंद्र को छोड़कर प्रकृति पूजन को बताया। यह भी किसी सूर्य के प्रकाश से कहाँ कम है? लेकिन आज के समय के अनुसार गोवर्धन तक ही पूजन समाप्त नहीं होना चाहिए, बल्कि अंधाधुंध प्रकृति दोहन के कल्चर में जब हम कॉलोनी के बागों की स्थापना कर उनका पोषण करते हैं तो भी कृष्ण की याद आती है, जब हम हमारे मोबाइल पर स्क्रीन गार्ड्स और कवर लगाते हैं तब भी वही याद आते हैं कि, "जो चीज़ तुम्हारे लिए फायदेमंद है उसकी सुरक्षा करो उस पर पूरी श्रद्धा रखो। अपनी पॉजिटिव एनर्जी उसे दो।"

22.8.19

चार मंत्रियों को बाहर करने के बाद योगी ने बाकी नए-पुराने मंत्रियों को पढ़ाया नैतिकता का पाठ

अजय कुमार, लखनऊलखनऊ। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपनी सरकार की इमेज को लेकर काफी सचेत हैं। वह नहीं चाहते हैं कि उनके मंत्री प्रदेश सेवा की बजाए जनता के बीच अपना रूतबा दिखाए। योगी यह भी नहीं चाहते हैं कि किसी मंत्री के परिवार का कोई सदस्य या करीबी मंत्री के काम में हस्तक्षेप करे। मंत्रियों को साफ हिदायत दी गई है कि वह सरकार की छवि के साथ कोई खिलवाड़ नहीं करें। तात्पर्य यह है कि योगी संकेतों में अपने मंत्रियों को समझा रहे थे कि अगर उन्होंने मंत्री के तौर पर अपने कार्य के प्रति लापरवाही या नीति विरूद्ध कोई काम किया तो उन्हें भी बाहर का रास्ता दिखाया जा सकता है।

21.8.19

योगी सरकार की यदुवंशियों को लुभाने की तैयारी, धूमधाम से मनाई जा रही है श्री कृष्ण जन्माष्टमी

अजय कुमार, लखनऊ
लखनऊ। धर्म और राजनीति दो अलग-अगल विषय हैं। संविधान निर्माताओं ने इसी बात को ध्यान में रखते हुए भारत को धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र घोषित किया था ताकि किसी समुदाय की भावनाएं आहत न हो। सब जानते हैं कि भारत विभिन्न धर्मो, भाषाओं-जातियों वाला देश है। अनेकता में एकता भारत की शक्ति है। ऐसे में किसी एक या सभी धर्मो को साथ लेकर राजनीति करना मुश्किल ही नहीं असंभव थी। मगर कड़वी सच्चाई यह भी है कि भले ही हमारे संविधान निर्माताओं ने दूर की सोच रखते हुए देश का तानाबान धर्मरिनपेक्ष के रूप में तैयार किया था,लेकिन सियासतदारों ने अपनी राजनीति चमकाने के लिए समय-समय पर धर्म और राजनीति में घालमेल करने का कभी कोई मौका नहीं छोड़ा।

पीलीभीत में पत्रकार सुधीर पर जानलेवा हमले से पत्रकार यूनियन नाराज

पत्रकारों की हत्या और जानलेवा हमले बर्दाश्त नहीं, पत्रकार ही अगर असुरक्षित हो गए तो लोकतंत्र का क्या होगा, श्रमजीवी पत्रकार यूनियन ने प्रान्तीय बैठक में पत्रकार उत्पीड़न की बढ़ती घटनाओं पर चिंता जताई
लखनऊ। उत्तर प्रदेश श्रमजीवी पत्रकार यूनियन की बैठक सोमवार को गोमतीनगर स्थित प्रांतीय कार्यालय में संपन्न हुई, जिसमें पत्रकार उत्पीड़न की बढ़ती घटनाओं पर चिंता व्यक्त की गई और सरकार से पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की मांग की गई।

बेपटरी होती यूपी की कानून व्यवस्था

अपराध मुक्त प्रदेश के नारे के साथ सत्ता में आई बीजेपी की योगी सरकार ने अपने कार्यकाल का आधा समय पूरा कर लिया है। इस दौरान योगी सरकार अपराधियों पर नकेल कसने की पूरी कोशिश की है। मगर समय-समय पर अपराधी कानून व्यवस्था को बेपटरी करते रहे हैं। पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट यूपी की तर्ज पर कड़ा कानून बनाकर अपराधियों को उखाड़ फेकने का आदेश दिया है। कोर्ट ने कहा है कि छह महीने के भीतर दोनों राज्यों से गैंगेस्टर की सफाई शुरू हो जानी चाहिए। गैंगेस्टर के बीच एरिया में दबदबा बनाने के लिए होने वाला संघर्ष समाज व कानून व्यवस्था दोनों के लिए घातक है। यह सच है कि योगी सरकार अपराधियों पर कहर बन कर टूटी है। ढाई साल के कार्यकाल में उत्तर प्रदेश में पुलिस ने 3599 एनकाउन्टर किये है। जिसमें 73 अपराधी ढेर हुए है जबकि चार पुलिसकर्मी शहीद भी हुए है। इस दौरान पुलिस ने 8251अपराधी गिरफ्तार किये है, इसके अलावा मुठभेड़ में 1059 अपराधी घायल हुये है। आंकड़ों के मुताबिक मुठभेड़ में 1 लाख के तीन और 50 हजार के 28 ईनामी मारे गये है। ऑपरेशन क्लीन के खौफ से कुल 13866 अपराधी अपनी जमानत निरस्त कराकर जेल चले गये। 13602 आरोपियों के खिलाफ गैंगेस्टर एक्ट के तहत कार्रवाई हुई। गैंगेस्टर आरोपियों की 67 करोड़ की सम्पत्ति जब्त की गयी बावजूद इसके पुलिस अभी भी अपराध और अपराधियों की कमर नहीं तोड़ पायी है।

19.8.19

जब जज बनकर फैसले करने लगे कलम के जिगोलो



अमितेश अग्निहोत्री
दैनिक जागरण ने पहलू खान की मॉब लिंचिंग में गिरफ्तार सभी अभियुक्तों के बरी होने की खबर तस्कर पहलू खान हत्याकांड के सभी आरोपित बरी शीर्षक के साथ लगाई है।अगर आप के अंदर संविधान,कानून और पत्रकारिता के मूल्यों की रत्ती भर समझ है तो अपना सर पीट लीजिये। दैनिक जागरण कथित रूप से हिंदी पट्टी का नम्बर 1 अखबार है। यह स्थान इन्हें ऐसे ही नही मिला है। पत्रकारिता को ताक पर रखकर पत्तेचाटी करने के लम्बे और सतत कालखण्ड के बाद आज यह शीर्ष पर पहुचे है।

वीआईपी कल्चर पर बार-बार मोदी-योगी का ‘हथौड़ा’

अजय कुमार, लखनऊ
नरेन्द्र मोदी सरकार ने अपने पहले कार्यकाल के दौरान वीआईपी कल्चर पर ‘हथौड़ा’ चलाते हुए वर्ष 2017 में मंत्रियों और अफसरों की गाड़ी पर लाल-नीली बत्ती(जो स्टे्टस सिम्बल हुआ करता था) लगाए जाने पर रोक लगाई थी तो इसकी चैतरफा प्रशंसा के साथ-साथ इस पर खूब सियासत भी हुई थी। गैर भाजपाई राज्य सरकारों ने मोदी सरकार के फैसले को अपने राज्यों में लागू करने से मना कर दिया था। उस समय उत्तर प्रदेश में नई-नई योगी सरकार बनी थी। अन्य राज्यों से इत्तर योगी सरकार ने सबसे पहले लाल-नीली बत्ती कल्चर को खत्म करने के लिए इसे प्रदेश में लागू कर दिया। गौरतलब हो, मोदी सरकार ने पहली मई 2017 से लाल बत्ती हटाने के लिए मोटर व्हीकल एक्ट से वो नियम ही हटा दिया था, जिसके तहत केंद्र और राज्य सरकारें वीआईपी लोगों को लाल बत्ती लगाने की इजाजत देती थीं। लाल बत्ती हटाने के आदेश के साथ ही 28 साल पुरानी परंपरा खत्म हो गई थी। वैसे, उत्तर प्रदेश की योगी सरकार सख्त फैसले लेने के लिए जाने जाती है। पहले उसने मोदी सरकार की पहल पर मंत्रियों और अधिकारियों की गाड़ी पर लगने वाली लाल-नीली बत्ती कल्चर को खत्म किया तो उसके बाद मंत्रियों और नेताओं से सम्पति का ब्योरा मांग लिया। इसी प्रकार प्रदेश में अपराध नियंत्रण के लिए बदमाशों के एनकांउटर का रास्ता भी चुना।

आखिर आजादी के सही मायने क्या हैं.....

वर्तमान में आजादी के मायने बदल गए हैं. अब कोई भी हमारी राजनैतिक शक्तियां जल, अनाज, आवास, रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़कों पर बात नहीं करती हैं. यह बड़ी विडम्बना है कि आजादी के मायने को बदल कर राजनैतिक पार्टियां खुद देश की जनता को बहका रही हैं और राष्ट्र, धर्म, संप्रदाय, मंदिर- मस्जिद, जात- पात के नाम पर आपस में लड़ा कर स्वयं राजनीतिक रोटियां सेक रही हैं.  वास्तव में क्या यही आजादी के मायने है कि स्वातंत्रता दिवस एवं गणतंत्र दिवस पर झण्डा लहराना, परेड देखना, लाउडस्पीकर लगाकर देशभक्ति गानों पर थिरकना, सांस्कृतिक कार्यक्रमों में शामिल होना और देश के जयकारे लगाना ही महज आजादी है.

370 व 35 ए हटाना कितना सही, कितना गलत और कितना सफल

पिछले कई दिनों से जम्मू- कश्मीर राष्ट्रीय नहीं बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बना हुआ है. बना भी क्यों न रहे, जो जम्मू- कश्मीर से अनुच्छेद 370 और 35-ए हटा दिया गया. हालाकि भारत की शान व अभिन्न हिस्सा कहा जाने वाला कश्मीर आजादी के बाद से ही विवादित रहा और चर्चा का विषय बना रहा.

15.8.19

करणी दान सिंह राजपूत बीकानेर संभााग के 'राजस्थान सेवा गौरव पत्रकारिता' पुरस्कार से सम्मानित




बीकानेर के रवीन्द्र मंच पर आयोजित समारोह में यह सम्मान करणीदानसिंह राजपूत की माता हीरा और पिता रतनसिंह की सीख एवं पत्रकारिता के इतिहास का वर्णन करने के बाद प्रोफेसर चतुर्वेदी स्मृति संस्थान जयपुर की ओर से रविवार 4 अगस्त 2019 को प्रदान किया गया।  समारोह में स्वामी श्री समवित सोम गिरी जी महाराज (महंत श्री लालेश्वर महादेव मंदिर बीकानेर) श्री गुलाबचंद कटारिया (नेता प्रतिपक्ष राजस्थान विधानसभा व पूर्व गृह मंत्री राजस्थान सरकार) श्री अरुण चतुर्वेदी (पूर्व कैबिनेट मंत्री राजस्थान सरकार) के द्वारा प्रदान किया गया। श्री राजपूत को शाल और पीताम्बर व साफा ओढा कर मढे हुए सुनहरे सम्मान प्रशस्ति पत्र को प्रदान कर सम्मानित किया गया।

हिंदुओं के साथ ही आजादी के बाद मुसलमानों ने भी गांधी को नहीं समझा : प्रियंदव




बनारस : बीएचयू में एनी बेसेंट हाल में कला संकाय एवं प्रगतिशील लेखक संघ द्वारा प्रख्यात कथाकार प्रेमचंद की याद में हिंदी के प्रसिद्ध कथाकार एवं इतिहासविद प्रियंवद का एकल व्याख्यान आयोजित किया गया। अपने व्याख्यान में इतिहास और दर्शन के सम्बंधों पर चर्चा करते हुए प्रियंवद ने कहा कि यह इतिहास पर निर्भर करता है कि वह किसे कितना स्थान देता है. उन्होंने इतिहास पर अपनी बात रखते हुए कि वह बौद्धिकता के रसायन से बना हुआ सबसे खतरनाक उत्पाद है जो राष्ट्रों को अहंकारी और निरर्थक बनाता है। इसके उदाहरण भारत विभाजन की घटना में देखे जा सकते हैं।

आजादी के विरोधी और अंग्रेजी हुकूमत के पैरोकार देशभक्त नहीं गद्दार हैं

नई दिल्ली। आज की तारीख में उन क्रांतकारियों की आत्मा रो रही होगी, जिन्होंने देश की आजादी के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर कर दिया। कांग्रेस की नीतियों के खिलाफ मोर्चा खोलने वाले उन समाजवादियों की आत्मा भी आहत होगी, जिन्होंने देश में स्वराज का सपना देखा था। आज की तारीख में जब खुशहाली के रास्ते जाना चाहिए था ऐसे में भावनात्मक मुद्दे समाज पर हावी हैं। जो लोग आजादी की लड़ाई और आजादी के विरोधी, जिन्हें अंग्रेजी हुकूमत भाती थी वे आज न केवल आजाद भारत की सत्ता पर काबिज हैं बल्कि देश के संसाधनों के मजे भी लूट रहे हैं। आजादी के लिए सब कुछ लुटा दिये क्रांतिकारियों कर परिजन फतेहाल में गुरबत की जिंदगी काट रहे हैं। स्वतंत्रता दिवस पर इन दिखावे के राष्ट्रवादियों का ढकोसला देखने को मिलेगा। देखना कैसे देश के सबसे बड़े देशभक्त होने का दावा किया जाएगा। 370 धारा खत्म करने के बाद इस स्वतंत्रता दिवस पर कैसे श्यामा प्रसाद मुखर्जी को देश के सबसे बड़े नायक के रूप में स्थापित करने का प्रयास किया जाएगा।

चौपाल के मोहनकृष्ण बोहरा पर केंद्रित विशेषांक का लोकार्पण


जोधपुर।  पढ़ो तो पूरा पढ़ो, तल तक जाओ। आगे बढ़ो तो उत्स तक जाओ।' हिंदी के वयोवृद्ध आलोचक  प्रो. मोहनकृष्ण बोहरा ने उकत विचार अपने अस्सीवें जन्मदिन पर चौपाल द्वारा आयोजित समारोह में व्यक्त किये। जोधपुर के इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियर्स के सभागार में आत्मीय जन को सम्बोधित करते हुए प्रो बोहरा ने अपने वक्तव्य की शुरुआत एक पंजाबी कथन से की: तुस्सी साड्डा जुलूस करना चांदे हो, यानि आप लोग मेरा जुलूस निकालना चाहते हो।

अब कैसे कृष्ण, कैसे राम निकलेगा (ग़ज़ल)

तेरा न बोलना बहुत देर तक खलेगा
एक न एक दिन तेरा घर भी जलेगा

नज़र बंद हो अपनी बोई नफरतों में
फिर रहीम और कबीर कहाँ मिलेगा

चाँद को चुराके रात को दोष देते हो
इंतज़ार करो , आसमाँ भी पिघलेगा

जाति,धरम,नाम सबसे तो खेल लिया
अब कैसे कृष्ण , कैसे राम निकलेगा

पानी,हवा,मिटटी सब तो बँट गए हैं
किस आँगन में अब गुलाब खिलेगा

सब को बदल दिया खुद को छोड़के
सच को झूठ से और कितना बदलोगे

सलिल सरोज
कार्यकारी अधिकारी
लोक सभा सचिवालय
संसद भवन, नई दिल्ली


14.8.19

जब यादगार बन जाए अनचाही यात्राएं ....!!

जब यादगार बन जाए अनचाही यात्राएं    ....!!
तारकेश कुमार ओझा
जीवन के खेल वाकई निराले होते हैं। कई बार ऐसा होता है कि ना - ना करते आप वहां पहुंच जाते हैं जहां जाने को आपका जी नहीं चाहता जबकि अनायास की गई ऐसी यात्राएं न सिर्फ सार्थक सिद्ध होती हैं बल्कि यादगार भी। जीवन की अनगिनत घटनाओं में ऐसी दो यात्राएं अक्सर मेरे जेहन में उमड़ती - घुमड़ती रहती है। पहली घटना मेरे किशोरावस्था की है। पत्रकारिता का ककहरा सीखते हुए उस दौर में रविवार, धर्मयुग , दिनमान और साप्ताहिक हिंदुस्तान जैसी तमाम लब्ध प्रतिष्ठित पत्रिकाएं बंद हो चुकी थी। लेकिन आर्थिक उदारीकरण के इस काल - खंड में साप्ताहिक समाचार पत्र के तौर पर कुछ नए अखबारों का प्रकाशन शुरू हुआ। कम कीमत वाले इन पत्रों के साथ चार रंगीन पृष्ठों का सप्लीमेंट और एक छोटी सी पत्रिका भी रहती थी। लिहाजा देखते ही देखते ऐसे साप्ताहिक पत्रों ने अच्छा - खासा पाठक वर्ग तैयार कर लिया। देश के चार महानगरों से हिंदी व अंग्रेजी में निकलने वाले एक साप्ताहिक पत्र का एक पन्ना आंचलिक खबरों के लिए था। शुरूआती दौर में मुझे ऐसे किसी मंच की बेताबी से जरूरत थी, लिहाजा बगैर किसी औपचारिक बातचीत के मैने उस समाचार पत्र के क्षेत्रीय कार्यालय को डाक से खबरें भेजना शुरू कर दिया।  अमूमन हर हफ्ते प्रकाशित होने वाली  बाइ लाइन खबरों  ने मुझे क्षेत्र का चर्चित पत्रकार बना दिया था। हालांकि मेरी प्राथमिकता पहचान के साथ पारिश्रमिक भी थी। क्योंकि यह मेरे करियर के शुरूआती दौर के लिए प्राण वायु साबित हो सकती थी। बेरोजगारी का कलंक मेरे सिर से मिट सकता था। लेकिन उस दौर के दो ऐसे समाचार पत्रों ने लिखित घोषणा के बावजूद एक चवन्नी भी कभी पारिश्रमिक के तौर पर नहीं दी तो मैं निराशा के गर्त में डूबने लगा।  क्योंकि अंतहीन प्रतीक्षा के बाद भी कभी कोई मनीआर्डर तो आया नहीं, उलटे ज्यादा तगादा करने पर खबरें छपना भी बंद हो जाती थी। इस बीच शहर में एक वित्तीय कंपनी का कार्यालय खुला। इसके कई कर्मचारी मेरे परिचित थे। तब फोन आदि नहीं बल्कि सीधे घर पहुंचने का जमाना था। लिहाजा इसके कुछ कर्मचारी कई बार मेरे घर यह कहते हुए आ पहुंचे कि आपको महाप्रबंधक बुला रहे हैं। मैं असहज हो गया। क्योंकि मैं जानता था कि अखबारों में समाचार छपवाने  के लिए मुझे बुलाया जा रहा है, जबकि तात्कालीन परिस्थितियों में यह मुश्किल था। लिहाजा मैने कन्नी काटने की भरसक कोशिश की। लेकिन काफी अनुनय - विनय के बाद मुझे उनके दफ्तर जाना ही पड़ा। महाप्रबंधक काफी भद्र आदमी था। उन्होंने मुझसे अनुरोध किया कि उनकी कंपनी का विज्ञापन किसी समाचार पत्र में छपवा दूं। इसके लिए कोलकाता जाना पड़े तो चले जाएं, कंपनी के आदमी साथ होंगे। आपको केवल साथ जाना पड़ेगा। मन से राजी न होते हुए भी आखिरकार मुझे कोलकाता निकलना पड़ा। कंपनी के दो मुलाजिम मेरे साथ थे, जिनमें से एक मेरा सहपाठी रह चुका था। ट्रेन से कोलकाता का रुख करते हुए भी कई बार लगा कि ऐसा कुछ हो जाए, जिससे मैं इस अनचाही यात्रा से बच सकूं। रेल अवरोध या तकनीकी समस्या। लेकिन मेरी एक न चली। उधेड़बुन के बीच हम हावड़ा स्टेशन पर थे। पूछते - पाछते बस से उसी साप्ताहिक समाचार पत्र के दफ्तर जा पहुंचे। जहां भविष्य की तलाश में पहले भी दो - एक बार जाना हुआ था। मुझे याद है कोलकाता के एजेसी बोस रोड पर उस अखबार का दफ्तर था।  आफिस के कर्मचारी अचानक मुझे अपने बीच पाकर हैरान थे। मैने अनमने भाव से मकसद बताया। कुछ देर में ही 3450 रुपये का विज्ञापन फाइनल हो गया। रसीद बनाते समय कुछ कर्मचारियों ने जब मुझसे कमीशन लेने को कहा तो मैं पशोपोश में पड़ गया। क्योंकि साथ गए लोगों के सामने मेरी इमेज खराब हो सकती थी। दूसरी तरफ दफ्तर के लोगों का कहना था कि एजेंसियों को हम 15 फीसद देते हैं। आप हमारे सहयोगी हैं। इसलिए हम आपको केवल 10 फीसद कमीशन दे सकते हैं। इस लिहाज से यह 345 रुपये बन रहा था। लड़कपन के उस दौर में यह मेरे लिए 3 लाख  से कम न था। , या कहें इससे भी ज्यादा । ये रुपये मुझे बगैर मांगे या उम्मीद के मिल रहे थे। मैं जिस  क्षेत ्र में  हाथ पांव मार रहा था, उसमें कमाई भी हो सकती है यह तब कल्पना भी नहीं की जा सकती थी।  उधेड़बुन के बीच साथ गए लोगों ने यह कहते हुए मुझे धर्मसंकट से उबारा कि अखबार से अगर आपको कुछ मिल रहा है तो इसमें भला हमें क्या ऐतराज हो सकता है। कमीशन के पैसे बैग में रख कर दफ्तर से बाहर निकला तो मैं जिंदगी की पहेली पर हैरान था। क्योंकि लंबी प्रतीक्षा के बाद भी जहां से मुझे कभी अठन्नी भी नहीं मिली, वहीं से बगैर मांगे इतने पैसे मिल गए कि दशहरा - दिवाली मन जाए।
अनचाही और आकस्मिक यात्रा की एक और मजेदार घटना युवावस्था में हुई। जब मैं अप्रत्याशित रूप से पत्रकारिता से रोजी - रोटी कमाने में सक्षम हो चुका था। तब पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस बिल्कुल नई बनी थी। इसकी नेत्री ममता बनर्जी  राजनैतिक तनातनी के लिए तब खासे चर्चित चमकाईतला आने वाली थी। जो मेरे ही जिले की सीमा क्षेत्र में है। एक रोज सुबह अखबार का काम निपटाने के बाद स्टेशन से बाहर निकला तो चमचमाती टाटा सुमो खड़ी नजर आई। तब इस गाड़ी में चढ़ना बड़े फक्र की बात मानी जाती थी।  पता लगा  कुछ परिचित  नेता वहां जा रहे हैं। कुछ देर बाद सभी सुमो के नजदीक खड़े मिले । मुझे देखते ही बोल पड़े, आपको लिए बगैर नहीं जाएंगे। मेरे लिए यह काफी आकर्षक प्रस्ताव था, क्योंकि चमकाईतला जाने के लिए हमें केशपुर होकर जाना था, जो उन दिनों राजनैतिक हिंसा के लिए अंतर राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में था। लेकिन दुविधा यह कि मेरी प्राथमिकता शहर की खबरें होती थी। मुझे लगा कि मैं बाहर रहा और शहर में कोई बड़ी घटना हो गई तो... इसके साथ तब दोपहर के भोजन के बाद मुझे हल्की झपकी लेने की भी बुरी आदत थी। लिहाजा मैं वहां जाने से आना - कानी करने लगा। लेकिन नेताओं ने एक झटके से सुमो की अगली सीट का दरवाजा खोला और आग्रहपूर्वक मुझे ड्राइवर के बगल वाली सीट पर बैठा दिया। इस तरह जीवन की एक और आकस्मिक यात्रा यादगार बन गई। हम हंस पड़े जब सुमो का चालक लगभग रूआंसा हो गया जब उसे पता चला कि गाड़ी केशपुर होकर गुजरेगी। लगभग रोते हुए ड्राइवर बोल पड़ा... बाल - बच्चेदार हूं सर... और वाहन में बैठे सब लोग हंसने लगे।

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*लेखक पश्चिम बंगाल के खड़गपुर में रहते हैं और वरिष्ठ पत्रकार
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13.8.19

हमे ऐसा हिंदुस्तान बनाना है...ईद-उल-अज़हा की मुबारकबाद

इस वीडियो की मार्फत ईद-उल-अज़हा की एहले हिंदुस्तान को दिली मुबारक पेश करता हूँ।वज़ीर-ए-आज़म आली जनाब नरेंद्र मोदी जी,वज़ीर-ए-दाखला आली जनाब अमित शाह जी की सरपरस्ती में हमें किस तरह के हिंदुस्तान की तशकील करनी है...इस वीडियो के मार्फत गौर फरमाएं...
जय-हिंद
लिंक---
https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=396796227856291&id=100025777510340

10.8.19

संगठन पर्व सदस्यता अभियान-2019

उत्तर प्रदेश के ज़िला बदायूं में आयोजित सदस्यता अभियान कार्यक्रम मे सैकड़ो की तादात में मुस्लिम मोअशरे के लोगों को भारतीय जनता पार्टी की सदस्यता ग्रहण कराई! इस अवसर पर मुझे प्रखर राष्ट्रवादी चिंतक एवं मुख्य वक्ता के तौर पर रहने का सौभाग्य प्राप्त हुया,विधायक बदायूं सदर जनाब महेश चंद्र गुप्ता जी गरिमामई उपस्थित, प्रदेश मंत्री भारतीय जनता पार्टी(अल्पसंख्यक मोर्चा) DrNazia Alam जी की क़यादत और अल्पसंख्यक मोर्चा(BJP) जनाब Atif Nizami जी की निज़ामत ने इस इजलास को ज़ीनत अफ़रोज़ कर दिया...मुख्य वक्ता के तौर पर इजलास में मदु करने के लिये ज़िला बदायूं की अवाम,विधायक जी और आतिफ़ निज़ामी जी का दिल की गहराईयों से शुक्रिया...
#संगठन_पर्व_2019
#साथ_आएं_देश_बनायें
जय हिंद-जय भारत
जय राष्ट्रवाद
मोबाइल no- 9837357723














6.8.19

galgotia के पाप का घड़ा फूटा, धोखाधड़ी में ध्रुव गलगोटिया और पद्मिनी गलगोटिया गिरफ्तार


कई वर्षों से और कई तरह के फर्जीवाड़ा, धोखाधड़ी और बेईमानी करने करने वाले ‘गलगोटियाज’ के पाप का घड़ा भर गया दिखता है. खबर है कि तगड़ा विज्ञापन देकर मीडिया का मुंह बंद रखने वाले गलगोटिया पर 122 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी के मामले में कार्रवाई हुई और galgotia university के निदेशक ध्रुव गलगोटिया और पद्मिनी गलगोटिया को गिरफ्तार कर लिया गया. गलगोटिया यूनिवर्सिटी के चेयरमैन का पुत्र है ध्रुव गलगोटिया और पत्नी हैं पद्यमिनी गलगोटिया. गिरफ्तारी की कार्रवाई आगरा पुलिस ने की. आगरा के थाना हरीपर्वत की पुलिस ने गलगोटिया विश्वविद्यालय के दोनों निदेशकों मां-बेटे पद्मिनी और ध्रुव को गुड़गांव से गिरफ्तार किया. शंकुतला एजूकेशनल सोसाइटी के चेयरमैन सुनील गलगोटिया की पत्नी हैं पद्मिनी. उनके खिलाफ आगरा के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की कोर्ट ने गैर जमानती वारंट जारी किया था.

मायावती की सियासत में मोदी-योगी विरोध के साथ राष्ट्रवाद का भी चटख रंग

अजय कुमार, लखनऊ
बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमों मायावती ने काफी सोच-समझकर धारा 370 के खिलाफ मतदान किया है। ऐसा करते समय उन्होंने यह भी नहीं सोचा की उनके इस फैसले से उनका मुस्लिम वोट बैंक खिसक सकता है। संभवता माया को मुस्लिम वोटों से अधिक दलित वोट बैंक की चिंता तो रही ही होगी,इसके अलावा वह यह भी नहीं चाहती होंगी कि कोई उनके ऊपर कोई अम्बेडकर विरोधी होने का ठप्पा लगाए। क्योंकि मायावती की पूरी सियासत संविधान निर्माता और दलितों के मसीहा बाबा साहब डा. भीमराव अम्बेडकर के इर्दगिर्द ही चलती रही है। अम्बेडकर के नाम को जितना मायावती ने भुनाया उतना शायद ही किसी ने भुनाया होगा।

5.8.19

डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी को मिला ब्लॉगर ऑफ द ईयर 2019 सम्मान


उदयपुर। आईब्लॉगर द्वारा राष्ट्रीय स्तर का वर्ष 2019 का ब्लॉगर ऑफ द ईयर सम्मान उदयपुर के डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी को प्रदान किया गया है। डॉ. छतलानी जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ, उदयपुर में कार्यरत हैं।

2.8.19

तारकेश्वर : गरीबों का अमरनाथ ....!!

तारकेश्वर : गरीबों का अमरनाथ   ....!!
तारकेश कुमार ओझा
पांच, दस, पंद्रह या इससे भी ज्यादा ...। हर साल श्रावण मास की शुरूआत के साथ ही मेरे जेहन में यह सवाल सहजता से कौंधने लगता है। संख्या का सवाल श्रावण में  कंधे पर कांवड़ लेकर अब तक की गई मेरी तारकेश्वर की पैदल यात्रा को लेकर होती है। आज भी शिव भक्तों  को कांवड़ लेकर तारकेश्वर की ओर जाता देख रोमांच से भर कर मैं  उन्हें हसरत भरी नजरों से देर तक उसी तरह  देखता रहता हूं मानो गुजरे जमाने का कोई फुटबॉल खिलाड़ी नए लड़कों को फुटबॉल खेलता देख रहा हो।  पहले श्रावण शुरू होते ही मेरे पांव सेवड़ाफुल्ली से तारकेश्वर धाम की ओर जाने को बेचैन हो उठते थे।  सोच रखा था जब तक शरीर साथ देगी हर श्रावण में कंधे पर कांवड़ लटका कर सेवड़ाफुल्ली से तारकेश्वर तक की पैदल यात्रा अवश्य करुंगा। हालांकि कई कारणों से मेरी यह कांवड़ यात्रा पिछले कई सालों से बंद है। लेकिन इस यात्रा के प्रति मेरा लगाव अब भी जस का तस कायम है। हालांकि यह सच है कि  पिछले दो दशकों की अवधि में कांवड़ यात्रा में बड़ा परिवर्तन आया है। क्योंकि पहले यह यात्रा नितांत व्यक्तिगत आस्था का विषय थी। तब कांवड़ यात्रा को न तो  इतना प्रचार मिलता था और न ये राजनीतिकों की रडार पर रहती थी।  भोले की भक्ति मुझे संस्कार में मिली , लेकिन तारकेश्वर की कांवड़ यात्रा के प्रति मेरी दो कारणों से आसक्ति हुई। पहला कांवड़ लेकर पैदल चलते समय शिव से सीधे  साक्षात्कार से हासिल आध्यात्मिक अनुभव से मिलने वाली असीम शांति और दूसरा सेवड़ाफुल्ली से तारकेश्वर तक पग - पग पर नजर आने वाला  स्वयंसेवी संस्थाओं का अनन्य सेवा भाव। जिसे प्रत्यक्ष देखे बिना महसूस करना मुश्किल है। पता नहीं स्वयंसेवकों में यह कैसी श्रद्धा जाग उठती है जो  महंगी से महंगी चीजें कांवड़ियों को खिलाने के लिए उन्हें बेचैन किए रहती है। बगैर मौसम की मार या दिन - रात की चिंता किए। कांवड़िए के कीचड़ से सने पांवों को भी सहलाने और जख्मों पर मरहम लगाने से भी उन्हें गुरेज नहीं। वाकई बाबा भोले की गजब महिमा है। कहते हैं जब तक बाबा बुलाए नहीं कोई उनके दरबार में नहीं पहुंच सकता। आप बनाते रहिए योजना पर योजना। लेकिन बदा नहीं होगा तो सारी प्लानिंग धरी की धरी रह जाएगी। वहीं कोई ऐसा बंदा भी कांवड़ लेकर बाबा के दरबार पहुंच जाता है, जिसने कभी इस बारे में सोचा तक नहीं था। अपनी  कांवड़ यात्रा के दौरान मैने ऐसे कई लोगों को पैदल चलते देखा जिनकी भाव भंगिमा और देह भाषा बताती है कि वे बगैर एयरकंडीशंड के शायद नहीं रह पाते होंगे, नंगे पांव जमीन पर चलना तो बहुत दूर की बात है। लेकिन भक्ति के वशीभूत वे भी कांवड़ लिए चले जा रहे हैं।  पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता से 58 किलोमीटर की दूरी पर बसा तारकेश्वर हुगली जिले का प्रमुख शहर है। इस शहर का नाम भी तारकेश्वर मंदिर के ऊपर ही पड़ा। इस मंदिर के निर्माण और आस्था का रोचक इतिहास है। पूर्व रेलवे के हावड़ा - सेवड़ाफुल्ली - तारकेश्वर रेल खंड का यह आखिरी स्टेशन है। वाकई तारकेश्वर धाम की कांवड़ यात्रा को यदि गरीबों का अमरनाथ कहा जाए तो गलत नहीं होगा। क्योंकि आस्थावान ऐसे लोगों का बड़ा समूह जिनके लिए तीर्थ , रोमांच या भ्रमण आदि पर खर्च करना संभव नहीं है  श्रावण में  तारकेश्वर की कांवड़ यात्रा वे भी हंसते - हंसते कर जाते हैं। दीघा या अन्य किसी स्थान का बस का किराया भी जितनी  रकम से संभव न हो उससे भी कम पैसे में तारकेश्वर की यात्रा मुमकिन थी। यह सब स्वयंसेवी संस्थाओं की उदारता से संभव हो पाता है। कांवड़ यात्रा के दौर में मैने खुद अनुभव किया और दूसरे श्रद्धालुओं से भी पता लगा कि दूसरे तीर्थ या भ्रमण स्थल के विपरीत तारकेश्वर की कांवड़ यात्रा में पैसे कभी बाधक नहीं बनते। क्योंकि रास्ते में खान - पान से लेकर दवा तक का निश्शुल्क इंतजाम बहुतायत में रहता है। सेवड़ाफुल्सी से जल लेकर चलने पर पहला पड़ाव डकैत काली होती है, जो पांच किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। अब तो डकैत काली से पहले ही कई  स्वयंसेवी संस्थाओं के शिविर नजर आने लगे हैं। इसके बाद तो थोड़ी - थोड़ी दूर पर सड़क के  दोनों ओर शिविर ही शिविर दिखाई देते हैं, जो कांवड़ियों की सेवा को हमेशा तत्पर नजर आते हैं। सेवड़ाफुल्ली से तारकेश्वर के बींचोबीच काशी विश्वनाथ नाम का बड़ा बड़ा शिविर हैं, जहां पहुंच कर कांवड़ियों को खुद के वीआइपी होने का भ्रम होता है।  गर्म पानी के टब में थके पांवों   को डुबों कर राहत पाने का सुख निराला होता है। इसके बाद भी कई शिविरों से होते हुए कांवड़िए जब लोकनाथ पहुंचते हैं तो उन्हें अहसास हो जाता है कि वे बाबा के मंदिर पहुंच चुके हैं। यहां जल चढ़ाने  के बाद कांवड़िये बाबा के मंदिर की ओर रवाना होते हैं। कहते हैं बाबा इस  चार किलोमीटर की दूरी पर भक्त की की कड़ी परीक्षा लेते हैं, क्योंकि नजदीक पहुंच कर भी भक्तों को लगता है उनसे अब नहीं चला जाएगा। लेकिन रोते - कराहते भक्त बाबा के दरबार में पहुंच ही जाते हैं।     दो दशक पहले तक की गई अपनी कांवड़ यात्राओं में मैने अनेक ऐसे श्रद्धालुओं को देखा जिनके लिए किसी तीर्थ पर सौ रुपये खर्च कर पाना भी संभव नहीं , लेकिन उनकी यात्रा भी हर साल बेखटके पूरी होती रही। वाकई तारकेश्वर की कांवड़ यात्रा को गरीबों का अमरनाथ कहा जाए तो शायद  गलत नहीं होगा।
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*लेखक पश्चिम बंगाल के खड़गपुर में रहते हैं और वरिष्ठ पत्रकार
हैं।------------------------------**------------------------------*