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19.8.19

जब जज बनकर फैसले करने लगे कलम के जिगोलो



अमितेश अग्निहोत्री
दैनिक जागरण ने पहलू खान की मॉब लिंचिंग में गिरफ्तार सभी अभियुक्तों के बरी होने की खबर तस्कर पहलू खान हत्याकांड के सभी आरोपित बरी शीर्षक के साथ लगाई है।अगर आप के अंदर संविधान,कानून और पत्रकारिता के मूल्यों की रत्ती भर समझ है तो अपना सर पीट लीजिये। दैनिक जागरण कथित रूप से हिंदी पट्टी का नम्बर 1 अखबार है। यह स्थान इन्हें ऐसे ही नही मिला है। पत्रकारिता को ताक पर रखकर पत्तेचाटी करने के लम्बे और सतत कालखण्ड के बाद आज यह शीर्ष पर पहुचे है।

पहलू खान की हत्या में निरुद्ध सारे के सारे अभियुक्त बरी हो गये। पहलू खान गौ तस्कर था या नही यह तय करना कोर्ट का काम है। न्याय करने के लिये न्यायपालिका है। भारत अफ़ग़ानिस्तान या पाकिस्तान नही है। यहां संविधान द्वारा स्थापित व्यवस्था है। देश विधि के शासन से चल रहा है जंगल के कानून, मनु स्मृति या शरीया से नही। पहलू खान गौ हत्या में संलग्न था या नही ये अलग मामला है। अगर वह गौवंश की तस्करी का अपराधी था तो इसके लिये कानून है जिसमे सजा का प्रावधान है। लेकिन गाय गोबर और गोमूत्र की राजनीति करने वालो के लिये संवैधानिक तंत्र में कोई आस्था नही है। वह उन्माद खड़ा कर के भीड़ इकट्ठा करते है जिसे वोट में परिवर्तित करना उन्हें बखूबी आता है।

लोकतंत्र को भीड़तंत्र में बदलने की कला ही आज की राजनीति का मैनेजमेंट स्किल है। पहलू खान के मामले में अदालत का फैसला दुखद है। अदालत सबूतों की रोशनी में फैसले देती है। सबूत इकठ्ठा करना और गुनहगारों को उनके किये की सजा मिले यह सुनिश्चित करना पुलिस का काम है। अदालत के फैसले से साफ है कि पुलिस ने अपना काम सही तरह से नही किया और जो सबूत इकठ्ठे किये वो अदालत की कार्यवाही में टिक नही सके। हालांकि पहलू खान की हत्या से पहले उसे पीटते हुए लोगो का वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था। पुलिस ने इस मामले में जिन लोगो को गिरफ्तार किया वो सभी संदेह का लाभ पाकर बरी हो चुके है।

पहलू खान की हत्या कर विधि द्वारा स्थापित व्यवस्था का विध्वंस करने वाले हाथ किन लोगों के थे इस सवाल का जवाब अभी तक नही मिला। जिन्हें न्याय करना था वह अपना काम नही कर सके लेकिन इस अखबार के लिये यह मुद्दा खबर नही है। पहलू खान का कथित रूप से तस्कर होना न्याय की हत्या होने से अधिक महत्वपूर्ण है। उन्मादी भीड़ के जरिये ध्रुवीकरण कर सत्ता हासिल करने के राजनैतिक मैनेजमेंट में इस तरह की पत्रकारिता करने वालो का बड़ा रोल है।

वैसे यह वही अखबार है जिसने जज का चोंगा पहन कर कठुआ गैंगरेप को फ़र्ज़ी मामला बताया था। वह खबर इस अखबार के सभी संस्करणों में पहले पेज पर छपी थी और खबर का शीर्षक था - कठुआ में बच्ची से नही हुआ था दुष्कर्म। हालांकि इस खबर पर दैनिक जागरण की काफी आलोचना भी हुई लेकिन जिल्ले इलाही खुश थे तो अखबार को क्या फर्क पड़ना था। इसी साल जून में जम्मू के पठानकोट की अदालत ने इस जघन्य गैंगरेप और हत्या के मामले में तीन अभियुक्तों को दोषी मानते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई है।

इन सबके बावजूद इस कथित नंबर 1 अखबार ने कोई सबक नही सीखा। कलम के जिगोलो बने इन कथित पत्रकारों के लिये जज बन कर खबर लिखना नया शगल बन गया है। इन्हें भारतीय न्यायिक व्यवस्था और अदालतों का सम्मान करने से कोई मतलब नही बस जिल्ले इलाही की खुशी ही इनके लिये सर्वोपरि है। सत्ता की रेवड़ियां बंट रही हो तो पात्रता साबित करने के लिये ऐसे ही कुकर्मो की जरूरत पड़ती है।

अमितेश अग्निहोत्री
9455711877
amit.agnihotri8@gmail.com

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