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1.11.19

ऑस्ट्रेलिया में डॉ दुर्गाप्रसाद अग्रवाल की दो पुस्तकों का लोकार्पण हुआ





ऑस्ट्रेलिया के खूबसूरत शहर पर्थ की अग्रणी साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्था ‘संस्कृति’ तथा हिन्दी समाज ऑफ पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया (HSWA) के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित एक सुरुचिपूर्ण एवम आत्मीय आयोजन में भारत से आए सुपरिचित लेखक डॉ दुर्गाप्रसाद अग्रवाल की दो सद्य प्रकाशित पुस्तकों ‘समय की पंचायत’ और ‘जो देश हम बना रहे हैं’ का लोकार्पण किया गया. 

दिल्ली के कौटिल्य प्रकाशन द्वारा प्रकाशित इन दोनों किताबों में लेखक-स्तम्भकार डॉ अग्रवाल ने अपने समय, समाज, शिक्षा, विचार, साहित्य, संस्कृति, संचार माध्यमों आदि पर बड़ी बेबाकी से टिप्पणियां की हैं. पर्थ के मैनिंग सीनियर सिटीजन सेण्टर में आयोजित इस लोकार्पण समारोह में इस नगर के लगभग सभी सुपरिचित व नवोदित हिन्दी रचनाकार व अनेक साहित्यानुरागी उपस्थित थे. समारोह के प्रारम्भ में ‘संस्कृति’  के वरिष्ठ  सदस्य और हिन्दी समाज ऑफ वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया के पूर्व अध्यक्ष प्रो. प्रेम स्वरूप माथुर ने अतिथि लेखक डॉ दुर्गाप्रसाद अग्रवाल का संक्षिप्त परिचय  दिया और उसके बाद स्वयं लेखक डॉ अग्रवाल ने अपनी लोकार्पित होने वाली दोनों किताबों की विषय वस्तु की संक्षिप्त जानकारी दी.

पुस्तकों का लोकार्पण हिन्दी समाज के अध्यक्ष अनुराग सक्सेना, हिन्दी समाज की प्रतिनिधि सुश्री रीता कौशल, हिन्दी समाज की ट्रस्टी सुश्री राज्यश्री मालवीय और प्रो. प्रेम स्वरूप माथुर ने किया. श्री सक्सेना ने इस बात पर हर्ष व्यक्त किया कि भारत के एक जाने माने लेखक की दो नव प्रकाशित कृतियों का लोकार्पण उनकी संस्था के तत्वावधान में हुआ है. उन्होंने इस बात की भी जानकारी दी कि यह आयोजन संस्था का इस वर्ष का पहला आयोजन है. इस अवसर पर पर्थ से प्रकाशित प्रथम हिन्दी उपन्यास ‘पड़ाव’ (वाणी प्रकाशन) की रचनाकार लक्ष्मी तिवारी भी उपस्थित थीं. कार्यक्रम का संचालन किया सुश्री राज्यश्री मालवीय ने.

प्रारम्भ में हिन्दी समाज के अध्यक्ष अनुराग सक्सेना ने उनका स्वागत किया और इसी संस्था की प्रतिनिधि और ‘भारत भारती’ पत्रिका की सम्पादक सुश्री रीता कौशल ने पुष्प गुच्छ भेंट कर उनका अभिनंदन किया. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की के जन्म की एक सौ पचासवीं वर्षगांठ को स्मरण करते हुए कार्यक्रम का शुभारम्भ  गुरुदेव रवीन्द्र नाथ ठाकुर रचित उनके प्रिय गीत ‘एकला चालो रे’ के हिन्दी अनुवाद के सुमधुर  गायन से किया गया. गीत को प्रस्तुत किया शरद सी. शर्मा  और उनके साथियों ने.

इस लोकार्पण के तुरंत बाद अतिथि डॉ दुर्गाप्रसाद अग्रवाल ने ‘आज का समाज और साहित्य’ विषय पर एक रोचक व्याख्यान दिया. श्री अग्रवाल ने समाज और साहित्य के पारस्परिक रिश्तों को स्पष्ट करने के बाद हिन्दी साहित्य की नवीनतम प्रवृत्तियों और महत्वपूर्ण कृतियों की दिलचस्प अन्दाज़ में चर्चा की. उन्होंने इस बात का प्रत्याख्यान किया कि आज की पीढ़ी की साहित्य में रुचि घट रही है. अग्रवाल ने इसे एक भ्रामक कथन मानते हुए अनेक उदाहरण देकर यह बात स्थापित की कि असल में आज साहित्य में रुचि बढ़ रही है, खूब लिखा और पढ़ा  जा रहा है.

उन्होंने बलपूर्वक कहा कि साहित्य को समाज का दर्पण मानने की बात भी सहज स्वीकार्य नहीं है और साहित्य को केवल दर्पण मानना उसकी भूमिका को सीमित करके देखना है. डॉ अग्रवाल ने हिन्दी साहित्य की नवीनतम प्रवृत्तियों की चर्चा करते हुए बताया कि आज हिन्दी में कविताएं खूब लिखी जा रही हैं, गद्य के क्षेत्र में काफी कुछ नया और उत्तेजक हो रहा है, खूब नए प्रयोग हो रहे हैं, कथेतर की दुनिया में अनेक महत्वपूर्ण काम हुए हैं, विधाओं में आवाजाही बढ़ी है  और सबसे बड़ी बात यह कि इण्टरनेट व तकनीक के सहज सुलभ हो जाने से लोगों में लिखने का चाव और उत्साह खूब बढ़ा है. वे लोग जिनके बारे में कभी सोचा भी नहीं जाता था कि लिखेंगे, वे भी आज धड़ल्ले से लिख रहे हैं.

लोग सोशल मीडिया से अपने लेखन की शुरुआत कर उसे पुस्तकाकार प्रकाशित करवाने लगे हैं. ब्लॉग्स ने भी बहुत सारे लोगों की सर्जनात्मकता  को  प्रोत्साहित किया है. डॉ अग्रवाल ने अपने वक्तव्य में जिन अत्यंत महत्वपूर्ण और रोचक किताबों की चर्चा की, अनेक उपस्थित श्रोताओं ने उनके नाम नोट किये और बाद में कहा कि वे उन्हें ज़रूर पढ़ेंगे.  डॉ अग्रवाल का विचार था कि आज हिन्दी का अधिकांश लेखन अपने परिवेश की बेहतरी की चिंता में हो रहा है. समाज में जो भी घटित होता है, विशेष रूप से बुरा,  वह लेखक को परेशान करता है और वह अपनी परेशानी को लेखन में व्यक्त करता है.

इस मामले में साहित्य को जो शाश्वत प्रतिपक्ष कहा जाता है, वह सच्चे अर्थों में चरितार्थ हो रहा है. लेकिन ऐसा भी नहीं है कि हिन्दी का सारा ही लेखन परिवेश की चिंता में हो रहा है. सच तो यह है कि हिन्दी का आज का लेखन बहुरंगी और अनेक आयामी है.  डॉ अग्रवाल  का वक्तव्य इतना रोचक था कि उसके ख़त्म होने से पहले उपस्थित श्रोता समुदाय ने प्रश्नों की  झड़ी लगा दी. सुश्री रीता कौशल ने ही इस व्याख्यान सत्र का संचालन भी किया.

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