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7.12.19

तो फिर राम रहीम, आशाराम, चिमन्यानंद स्वामी और सेंगर जैसे आरोपियों का भी करो एनकाउंटर!

CHARAN SINGH RAJPUT

हैदराबाद में पशु चिकित्सक के साथ गैंगरेप और जलाकर मार डालने घटना को लेकर जिस पुलिस को हम कोसते-कोसते थकते नहीं रहे थे। जिस पुलिस के चलते ही हम अपराध होने की घटना बताते हैं। जिस पुलिस पर हम भ्रष्टतम होने का आरोप लगाते हैं वही पुलिस न्यायिक हिरासत लिये गये हैदराबाद गैंगरेप मामले के आरोपियों का एनकाउंटर करने पर नायक की भूमिका में आ गई है। हैदराबाद के लोग उन पर फूल बरसा रहे हैं। महिलाएं राखी बांध रही हैं। आज पैदा हुए इस अराजक हालात में आम लोगों के साथ ही पीड़िताओं के सगे संबंधियों का इस एनकाउंटर खुश होना बनता भी है।

पर क्या देश के जिम्मेदार लोग भी इस एनकाउंटर सही करार दे सकते हैं ? यदि हां तो फिर न्यायपालिका जैसी सर्वोच्च संस्था का देश में कोई औचित्य नहीं रह गया है ? निश्चित रूप से न्याय न मिलने और न्याय में हो रही देरी के चलते लोगों का न्यायपालिका से विश्वास उठ जा रहा है पर यदि पहले से ही भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी पुलिस को इस तरह से एनकाउंटर करने की छूट मिल जाएगी तो इसकी क्या गारंटी है कि पुलिस इस माहौल का दुरुपयोग नहीं करेगी ? वैसे भी एनकाउंटर स्पेशलिस्टों पर झूठे एनकाउंटर करने के आरोप लगातार लगते रहे हैं। हां यदि देश इस एनकाउंटर से सहमत है तो फिर राम रहीम, आशाराम, चिमन्यानंद स्वामी, कुलदीप सेंगर जैसे प्रभावशाली दङ्क्षरदों के भी एनकाउंटर होने चाहिए। यदि देश में अब ऐसे हालात बन चुके हैं कि हैदराबाद गैंगरेप मामले में पुलिस ने जो किया है लोग ऐसा ही न्याय अब चाहते हैं तो फिर राज्यसभा में सपा सांसद जय बच्चन द्वारा सुझाया गया न्याय आज की तारीख में सबसे बेहतर है।

यदि सरकारें, कानून और दूसरी जिम्मेदार संस्थाएं अब कुछ करने की स्थिति में नही है तो फिर इस तरह के आरोपियों को अब जनता को सौंप देना चाहिए। या फिर चौराहे पर फांसी दे देनी चाहिए। यदि हम अब इस तरह के न्याय के लिए तैयार हो गये हैं तो फिर खाप पंचायतों के न्याय पर क्यों उंगली उठती है ? नेताओं, नौकरशाह और प्रभावशाली लोगों के  बेबस और कमजोर महिलाओं के साथ यौन शौषण, रेप और गैंगरेप करने के मामले रोज सुनने को मिलते हैं। क्यों इन लोगों को सुरक्षा प्रदान की जाती है। क्या हुआ भंवरी देवी मामले में ? क्या हुआ गोपाल कांडा का ? क्या हुआ बाबा आशाराम का? क्या हुआ राम रहीम का? 

क्या हुआ रेप के दूसरे बाबाओं, नेताओं, नौकरशाह और पूंजीपति आरोपियों का ? देश के कितने प्रभावशाली लोग रेप, यौन शाषण और न जाने कितने बड़े-बड़े अपराध लिये समाज में अपना रुतबा दिखा रहे हैं। यही पुलिस इन लोगों की चाटुकारिता करती दिखाई देती है। यदि पुलिस के हाथों ही इस तरह से देश की गंदगी साफ होनी है तो अब इन प्रभावशाली लोगों के भी एनकाउंटर हो जाने चाहिए। जितने भी रेप, गैंगरेप और यौन शोषण के आरोपी हैं उन सबके एनकाउंटर करने की मांग अब देश की जनता करे।

दरअसल राजनेता और नौकरशाह गर्म हुए मामले को दबाने के लिए इस तरह की चाल चलते हैं। क्योंकि देश अब रेप, गैंगरेप मामले में उबला हुआ है। हैदराबाद सरकार को मामले का दबाने के लिए इससे बढ़िया दूसरा कोई उपाय नहीं दिखाई दिया। यदि मामला ऐसे ही दबाना है तो उबाल तो पूरे देश में है । क्यों न अब यह गंदगी पूरे देश से दूर कर दी जाए ? हां देश में चल रहे स्तरहीन और प्रतिशोध की राजनीति में इस अभियान में कितने निर्दोष निपटेंगे। इसके लिए भी देश को तैयार रहना चाहिए।

इसे कानून की धज्जिया उड़ाना ही कहा जाएगा कि कि तेलंगाना के कानून मंत्री ने इस एनकाउंटर को भगवान का न्याय ही करार दे दिया। पीड़िता के पिता का  बनता है क्येंकि उन्होंने जो झेला है वह हम लोग महसूस भी नहीं कर सकते। दिल्ली गैंगरेप पीड़िता निर्भया की मां का भी हैदराबाद पुलिस का धन्यवाद करना बनता है। क्योंकि अभी तक उन्हें अपनी बेटी के साथ हुई दङ्क्षरदगी का इंसाफ नहीं मिला है। उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती और अखिलेश यादव तो इस मामले में भी वोटबैंक टटोलने लगे वे अभी भी उत्तर प्रदेश से बाहर नहीं जा पा रहे हैं। उत्तर प्रदेश में किसान, मजदूर और दूसरी तमाम समस्याओं पर चुप्पी साधने वाले मायावती हैदराबाद एनकाउंटर मामले में एकदम मुखर हो गई हैं। उन्होंने कहा है कि यूपी और दिल्ली पुलिस को हैदराबाद पुलिस से सीखना चाहिए। उन्हें अब जाकर यूपी में जंगलराज  दिखाई दिया है। पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को भी हैदराबाद एनकाउंटर के बाद न्याय पर भरोसा जगा है। इस एनकाउंटर पर उन्होंने अपनी सहमति जताते हुए कहा है कि आखिर कानून से भागने वाले इंसाफ से कितनी दूर भागते।

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने अपने स्वभाव के अनुसार मामला लोगों पर टालते हुए कहा है कि एनकाउंटर पर लोग खुशी और संतोष जाहिर कर रहे हैं। हां उन्होंने क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम पर चिंता जाहिर की है।  उन्होंने सभी सरकारों को मिलकर चिंतन करने की बात कही है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शशि थरूर ने न्यायिक व्यवस्था से परे इस तरह के एनकाउंटर स्वीकार करने के इनकार कर दिया है। उन्होंने कहा है कि हमें और जानने की जरूरत है। यदि क्रिमिनल्स के पास हथियार थे तो पुलिस अपनी कार्रवाई को सही ठहरा सकती है। वामपंथी दल सीपीएम के नेता सीताराम येचुरी ने बड़ी सधी हुई बात कही है उन्होंने कहा है कि बदला कभी न्याय नहीं हो सकता। इसके साथ ही उन्होंने सवाल उठाया कि आखिर 2012 में दिल्ली में हुए निर्भया गैंगरेप कांड के बाद लागू हुए कड़े कानून को हम सही से लागू क्यों नहीं कर पा रहे हैं ?

योगगुरु रामदेव पुलिस के इस कारनामे को साहसपूर्ण करार दे रहे हैं। वे इसे न्याय मान रहे हैं।  उमा भारती के सुर भी कुछ इसी तरह के हैं।  वह कह रही हैं कि इस सदी के 19 वें साल में महिलाओं को सुरक्षा की गारंटी देने वाली यह सबसे बड़ी घटना है। इस घटना को अंजाम देने वाले सभी पुलिस अधिकारी एवं पुलिसकर्मी अभिनंदन के पात्र हैं।

यदि देश के जिम्मेदार लोग हैदराबाद एनकाउंटर को सही करार दे रहे हैं तो फिर न्यायपालिका, जांज एजेंसियों, मीडिया, मानवाधिकार आयोग जैसी संस्थाओं पर उंगली उठना स्वभाविक है। जो राजनीतिक दल इस एनकाउंटर को सही ठहरा रहे हैं उनके द्वारा बनाए गए कानून का फिर क्या मतलब रह गया है ? क्या हमारे देश के संविधान में इस तरह से न्यायिक हिरासत में इस तरह से एनकाउंटर करने की छूट है ? यदि नहीं तो हम यह कह सकते हैं कि आज हैदराबाद एनकाउंटर को लोग इसलिए सही ठहरा रह हैं कि उन्हें संविधान की सुरक्षा के लिए बनाये गये स्तंभों न्यायपालिका, विधायिका, कार्यपालिका और मीडिया पर अब भरोसा नहीं रह गया है वह सड़क पर न्याय देखना चाहते हैं।

लेखक चरण सिंह राजपूत सोशल एक्टिविस्ट हैं. 


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