12.1.08

देखती आठो पहरिया हो नजरिया भर के ना

गीत संगीत की दुनिया में कितनी मस्ती है, उसका अंदाजा इसमें डूबने वालों को अच्छे से है। दो चार दिन से मैं ठुमरी ब्लाग पर जाकर वहां पड़े अच्छे अच्छे गीत सुन रहा हूं। भिखारी ठाकुर लिखित गीत भी मिला है। अविनाश जी के सौजन्य से। देखती आठो पहरिया हो नजरिया भर के...। लैपटाप आन करते ही यह गीत आन कर देता हूं।

शनिवार है। वीकेंड है। दारू मुर्गा है। म्यूजिक है। मस्ती है। बच्चे हैं। बीवी है। दुनिया है। दिल्ली है। यादें है। संवेदना है। गरीबी है। कारें है। वाइल्ड हूं। सेंसेटिव हूं। नार्मल हूं। एबनार्मल हूं। होशियार हूं। बेवकूफ हूं। कारपोरेट हूं। किसान हूं। रात है। बात है। साथ है। चूतियापा है। आनंद है। सपने हैं। हकीकत है। फंतासी है। फजीहत है।

अंत में
पाल ले इक रोग नादां, ज़िंदगी के वास्ते
सिर्फ सेहत के सहारे, ज़िंदगी कटती नहीं।


जय भड़ास
यशवंत

2 comments:

  1. दादा,आपका सादापन इसी तरह कायम रहे। आपके लेखन में बनावटीपन नहीं आता है चाहे दारू पिएं या भगवान शिव की तरह आसपास मौजूद लोगों के वैचारिक षंढत्व का हलाहल ।

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  2. mai bhadas ka naya rangruut hu.apki lekhani ka mureed ho gaya hun. vichar itne belaag aur nirmal hain ki apse katai navakif mai apki shakhsiyat aaine ki mafiq dekh raha hun. saadhuvad. aur ha, ye xhadim kai-lekhak aur kalasameekshak hai. abhi gumshuda hun...magar ab khol se bahar ane ko jee chahta hai.
    thanx for the motivation.

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