बहुत ज्यादा तो नहीं लिखना चाहता क्योंकि कोई फायदा होने वाला भी नहीं, लोग शायद ही पढ़े और अगर पढ़े भी तो शायद ही कोई इस बारे में कोई कदम उठाये. सीधे सीधे अपने भड़ास पर आता हूँ. कल से न्यूज़ चैनल पर एक न्यूज़ देख रहा हूँ. एक पुलिस की समय पर सहायता न होने से मौत हो गयी. न्यूज़ को थोडा विस्तार में बता देता हूँ, वैसे आप लोग सब तो इसे जानते ही होंगे. कल रास्ते में कुछ अपराधियों ने एक पुलिस कर्मचारी की टांग काट दी. घायल अवस्था में वो सड़क पर ही पड़ा रहा. कुछ ही देर में दो मंत्रियों का काफिला वहां से गुजरा, साथ में कलक्टर साहब भी थे. पर किसी ने उसे अस्पताल पहुचाने की जहमत नहीं उठाई. हाँ कलक्टर साहब ने जरूर अबुलेंस को फ़ोन किया पर जब बीस मिनट तक अबुलेंस नहीं आई तो लोगों ने पुलिस कर्मचारी को उठा कर अपनी ही गाड़ी में ले गए पर तब तक देर हो चुकी थी और अधिक खून बह जाने के कारण उसकी मौत हो गयी.
मुझे अभी तक समझ में ये बात नह आई कि आखिर दोनों मंत्री महोदय, कलेक्टर साहब, उनके चमचा दल बीस मिनट तक इन्तेजार क्यों करते रहे. उसे वो उसी समय उठा कर अस्पताल ले जा सकते थे. अब हम गरीबों के पैसों से जो गाड़ी उन्हें मिलती है इसका इस्तेमाल तो वो इस नेक कार्य के लिए कर ही सकते थे. शायद वो इंसान बेमौत मरने से बच जाता. खैर जो होना था वो तो हो गया, अब मिल गया मौका न्यूज़ चैनल वालों को. लग गए सारे के सारे दोनों मंत्रियों को इस्तीफा दिलवाने में. मेरे हिसाब से तो उन्हें सजा मिलनी भी चाहिए.. उन सबको मिलनी चाहिए जो वहां मौजूद थे. मंत्री गण को भी, कलेक्टर साहब को भी और उनके चमचो को भी... खून की सजा मलनी चाहिए... खून ही था ये सबके द्वारा मिलकर... न्यूज़ चैनल की दाद देना चाहता हूँ जो इस तरह के न्यूज़ दिखने का भी जोखिम लेती है वरना मैं तो समझता था उन्हें सास, बहु और साजिस, या क्रिकेट या फिर हंसी के फुहारों से ही फुर्सत नहीं... पर मेरे मन में एक सवाल और है... सजा न्यूज़ चैनल के रिपोर्टर्स को भी तो मिलनी चाहिए जो वहां अपने चैनल के लिए फिल्म निर्माण कर रहे थे. उन्होंने जहमत क्यों नहीं उठाई कि पहले उस घायल इंसान की मदद की जाये. बिना फिल्म के ही इस न्यूज़ को बाद में हमें बता देते... लेकिन फिर कौन लोग देखता इस न्यूज़ को.... बच जाता अगर वो पुलिस कर्मचारी तो क्या खाख न्यूज़ होती, न्यूज़ तो है उसके मरने की... अपने देश के प्रधान मंत्री, राष्ट्रपति, और इस देश के क़ानून से क्या आशा कर सकता हूँ कि इन सबको सजा मिलेगी... ओह्ह्ह क्या फालतू का ख्याल पाल लिया मैंने... यहाँ इतना समय कहाँ है लोगों के पास कि इस पर ध्यान दे... अंतिम वर्ष जिन लोगों ने मुंबई को बचाने के लिए अपनी सहादत दी थी उनके नाम तो शायद ही लोगों को याद होंगे, ये तो वैसे भी बिना मौत मारा गया है... अपने देश के लोगों को, नेताओं को, अपने देश के कानून को और इन सबसे बढ़कर अपने देश को मेरा सलाम... जय हिंद... मेरा भारत महान....
SIR you are absolutely right.gone are the days when journalism was for a mission...now it has become a business.it is very painful for us to watch the critical condition of that sub inspector.being a human,humanity is the first priority which was brutally murdered by the one who shot the video.it is really worthless to expect anything from our leaders.
ReplyDeletejai hind
मेरा कहना है, जो काम जिसका है वही ठीक से करले तो कोइ दिक्कत नहीं है, हमेशा नेगटिव तरीके से चीजों को देखना भी ठीक नहीं. एक न्यूज़ रिपोर्टर की जिम्मेदारी क्या है ? यही नां कि समाज मैं जो हो रहा है वह सबके सामने रखे, या कि बन्दूक लेकर देश की रक्षा के लिए सीमा पर चला जाए. या खुद ही नेता बन जाए. मेरे हिसाब से कलम समाज को आईना दिखने के लिए होती है, साहित्य को समाज का आईना ही कहा गया है. वह इस घटना को शूट न करता तो दोषियों को सजा की बात ही कहाँ से उठती, इससे इतना तो हुआ कि आप भी अपनी भड़ास लिखने को उद्यत हुए, इस घटना पर सोचने को मजबूर हुए. अगर भविष्य मैं ऐसा कोई वाक्य हुआ तो सायद कम से कम आप उसे बचाने को उद्यत होंगे, क्या यह उस रिपोर्टर और न्यूज़ चैनल की सफलता नहीं. और क्या इस सफलता के लिए आप उसे फांसी की सजा देना चाहेंगे. वैसे भी शायद यह खबर दिखने वाले टीवी ने साफ़ किया है कि यह खबर उनके रिपोर्टर ने शूट नहीं की, और जिसने की उसने कहा है कि उसके पास इतने संसाधन नहीं थे.
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