31.8.13

उत्तर प्रदेश, बदतर प्रदेश


समाजवादी सरकार सफल हुई| उसके साम्प्रदायिक विभाजन का मंसूबा कामयाब हुआ| शासन की हठधर्मिता के आगे लाचार संतों ने हथियार डाल दिए| किसी ने सच ही कहा है ‘Power tends to corrupt and absolute power corrupts absolutely’ अर्थात सत्ता भ्रष्ट बनाती है और सम्पूर्ण सत्ता समग्र रूप से भ्रष्ट बना देती है| हिंदी में भी कहा गया ‘सत्ता पाई काहि मद नाहीं’| आज समाजवादी पार्टी बहुमत के साथ सत्ता में है, इसीलिए मदांध भी है| मार्च २०१२ से अब तक यह सरकार अपने डेढ़ साल पूरे कर चुकी है| लोगों को यह लगा था की इस बार की समाजवादी पार्टी कुछ अलग होगी, क्योंकि इस बार मुलायम नहीं बल्कि उनके पुत्र के रूप में प्रदेश को एक युवा चेहरा मिलेगा| यह तिलिस्म भी टूट गया| अब युवा कोई मुद्दा ही नहीं रहा| साथ ही यह भी सिद्ध होने लगा है की युवा नेतृत्व दिशाहीन होता है और उद्दंड भी| अखिलेश के डेढ़ साल के नेतृत्व में मुफ्तखोरी, मुनाफाखोरी, घटतौली और बेईमानी को संस्थागत रूप प्रदान किया जा चूका है| इस बात को बकायदा कैमरे के सामने कहा गया| शिवपाल यादव ने कैमरे के सामने कार्यकर्ताओं को राजनैतिक बेईमानी का पाठ पढाते हुए स्पष्ट रूप से कहा ‘अगर मेहनत करोगे तो थोड़ी बहुत चोरी कर सकते हो लेकिन डकैती नहीं डालोगे”| फीचर फिल्म “नायक” के अनिल कपूर की प्रत्याशा में लोगों ने विभेदकारी राजनीति और तुष्टिकरण के खलनायक को चुन लिया| अखिलेश मुसलमानों के मुख्यमंत्री हैं, अखिलेश यादवों के मुख्यमंत्री हैं और यह बात उनके वक्तृत्व और कृतित्व दोनों में ही साफ़ झलकती है| इस सरकार का शपथ ग्रहण भी नहीं हुआ था, केवल मतगणना के परिणाम आये थे और उत्तर प्रदेश के ७५ जिलों में कोहराम मच गया था| इस परिवार की रही सही सदस्य डिंपल यादव भी निर्विरोध लोकसभा के लिए निर्वाचित हो गयी| भारत का सबसे बड़ा राजनैतिक परिवार सत्ता की अकड और हनक को जाया कैसे जाने देती? दुर्गा शक्ति नागपाल के निलम्बन के बाद रामगोपाल यादव ने केन्द्र सरकार को अपने समस्त प्रशासनिक अधिकारियों को वापस बुलाए जाने तक की चेतावनी दे दी और कहा की हम प्रदेश का शासन चला लेंगे| किसके बलबूते पर? स्पष्ट है की दबंगई के क्षेत्र में इस सरकार का कोई मुकाबला ही नहीं है| सुनने में आया है की वाराणसी के जिलाधिकारी शिवपाल यादव के काफी करीबी हैं| बनारस में पंचक्रोशी मार्ग का सुंदरीकरण किया गया| दर्जनों पौराणिक मंदिरों को नेस्तनाबूद कर दिया गया| विकास की बलिवेदी पर हिंदू समाज ने उफ़ भी नहीं किया| दूसरी ओर, मस्जिद की एक जर्जर दीवाल अपने आप गिर गयी, मुस्लिम समुदाय को इस पर कोई आपत्ति नहीं थी, फिर भी नागपाल को निलम्बित कर दिया गया| इसे तुष्टिकरण नहीं कहेंगे तो और क्या कहेंगे? पता चला है की दुर्गा शक्ति नागपाल उत्खनन माफिया के विरुद्ध अपने प्रशासनिक कर्तव्य का पालन कर रही थी| इतना ही नहीं सरकार को कन्यायों में भी हिंदू मुसलमान नजर आते हैं| मुस्लिम छात्राओं को ३० हजार रूपये की आर्थिक सहायता आखिर किसलिए दिया जा रहा है? यह संविधान द्वारा दिए गए समानता और स्वतंत्रता के अधिकार का खुल्लमखुल्ला उल्लंघन है| फिर भी, समाजवादी पार्टी अपने अड़ियल रुख पर कायम है, क्योंकि उसे लगता है की भारत का संविधान उसकी जेब में है और वह जब चाहे संविधान में संशोधन कर सकती है| ऐसा लगने का उसके पास ठोस आधार भी है| प्रदेश सरकार के केन्द्र सरकार के साथ गहरे ताल्लुकात हैं| उसका मैच फिक्स है इसलिए वह मनमानी करने को स्वतंत्र है| गंभीर से गंभीर मुद्दे को साम्प्रदायिक रंग देकर अपना स्वार्थ सिद्ध कर लेना, समाजवादी पार्टी की विशेषता है| MY के समीकरण को ध्यान में रखकर राजनीती की रोटियां सेंकने वाली समाजवादी पार्टी किसी को भी पसंद नहीं| जिन्होंने इसे चुनकर सरकार चलने के लिए भेजा है, वे भी अब इसे नापसंद करने लगे हैं| राजनैतिक अपराधीकरण को संस्थागत रूप देकर उसे लोकतंत्र की मुख्य धारा में लाने का काम समाजवादी पार्टी पहले से ही करती रही है| २०१२ के चुनाव में समाजवादी पार्टी के टिकट पर उम्मीदवार ४०१ लोगों में से लगभग आधे १९९ लोगों पर गंभीर आपराधिक मामले दर्ज थे| २००६ में समाजवादी युवजन सभा के कार्यकर्ताओं ने हूटर लगे जीप से एक पुलिस उपनिरीक्षक को खींच लिया था| यहीं से उत्तर प्रदेश में अराजकतावादी राजनीती का प्रारम्भ होने लगा| लोगों ने “ गाडी पर सपा का झंडा तो समझो अंदर बैठा है गुंडा” कहना प्रारम्भ किया और तत्कालीन समाजवादी सरकार राजनैतिक आतंकवाद का पर्याय बन गयी| उत्तर प्रदेश गुंडागर्दी के मामले में भारत का अव्वल राज्य बन गया और उसके तुरंत बाद हुए चुनावों में तत्कालीन प्रमुख विपक्षी दल बसपा ने नारा दिया “चढ गुंडों की छाती पर, बटन दबाना हाथी पर” जनता मुलायम सरकार की गुंडागर्दी से ऊब चुकी थी, इसलिए उसे नारा समीचीन लगा फलतः बेरोजगारी भत्ता की रेबड़ीयां बाटने के बावजूद समजवादी पार्टी फिसड्डी रही और बसपा का बहुमत के साथ राज्यारोहण हुआ| इस बार नए मतदाता उस अंधेरगर्दी को जानते ही नहीं थे और पुराने मतदाता उसे भूल चुके थे| वर्तमान सरकार अपने पूर्ववर्ती शासन की सत्यापित यथार्थ प्रतिलिपि है| बसपा के स्वामी प्रसाद मौर्य के यह कहने पर की “बसपा के चार साल के शासनकाल में एक बार भी साम्प्रदायिक तनाव की घटना सामने नहीं आई” जबाब देते हुए संसदीय कार्यमंत्री आज़म खान ने कहा की “बसपा के शासनकाल में उसके लोग लूट, बलात्कार तथा ऐसे ही अन्य गतिविधियों में शामिल रहे और अब, जब उनके पास कोई काम नहीं बचा है तो वे साम्प्रदायिक माहौल को खराब करने में लगे हैं” ज्ञातव्य है की सपा के १८ महीने के कार्यकाल में अब तक २७ बड़े दंगे और ७२ से अधिक छोटी मोटी साम्प्रदायिक झडपें हो चुकी हैं| इन दंगों में अब तक २०० से अधिक लोग मारे जा चुके हैं और इससे दुगुनी महिलाओं को बलात्कार का दंश झेलना पड़ा है| यह आलम तब है जब चुनाव पूर्व सपा ने बलात्कार पीडिता को सरकारी नौकरी देने का वादा किया था और इस बयान पर काफी हो हल्ला भी मचा| ध्यातव्य है की आज़म खान वही शख्स है जिसने खुलेआम काशिराज को भगोड़ा कहा था और वंदे मातरम पर ऐतराज जताने के बावजूद, हिंदू मान्यताओं के विपरीत कुम्भ २०१३ में मेला प्रभारी का पद भी सुशोभित कर चुका है| इनके संवैधानिक अज्ञानता की कोई मिसाल ही नहीं मिल सकती| चुनाव पूर्व अखिलेश ने टीईटी परीक्षा को रद्द करने की धमकी दी और अनुत्तीर्ण अथवा परीक्षा में कम अंक प्राप्त परीक्षार्थियों का वोट बैंक अपनी ओर आकर्षित करना चाहा और वे उसमे सफल भी हुए| किये गए वाडे को पूरा करने के लिए टीईटी पर झूठे और बेबुनियाद आरोप लगाए गए और परीक्षा की पवित्रता को कलंकित करने के लिए मनगढंत कहानियाँ गढ़ी गयी| शुचिता को भंग करने के सारे हथकंडे अपनाए गए यहाँ तक की आज़म खान द्वारा सार्वजनिक रूप से टीईटी अभ्यर्थियों को चोर कह कर पुकारा गया कंतु तथ्यों के आलोक में सारे असफल रहें| विपदा के मारे टीईटी अभ्यर्थी आज भी न्यायालय के चक्कर काट रहे हैं और सपा सरकार द्वारा बिना मामला पूरी तरह निस्तारित हुए अवैधानिक तरीके से प्राथमिक शिक्षक के रूप में लोगों की नियुक्तियां की जा रही हैं| इस चक्कर में शिक्षक बनने की बाट जोह रहे पता नहीं कितने गरीब छात्रों ने अपना सब कुछ दाव पर लगा दिया| आर्थिक तंगी के मारे लोगों की जमकर जेबें ढीली हुई| तुष्टिकरण के नुमाइंदों ने अब एक नया शिगूफा छोड़ा है| मुस्लिम छात्रों को खुश करने के लिए उर्दू भाषा की योग्यतादायी परीक्षा को ही टीईटी के समकक्ष बना दिया गया| आम जनता के यह समझ में नहीं आ रहा है की हिसाब में कच्चे पर उर्दू में अच्छे उस्तादों के बलबूते अखिलेश सरकार मुसलमानों का कौन सा भला करने जा रही है? इस सरकार के बनते ही मंत्री से लेकर संतरी तक सब बहकने लगते हैं| मंत्री गोंडा के सीएमएस को जान से मारने की धमकी देता है तो संतरी कहता है की अगर मेरी बहन भाग जाती तो मैं उसे गोली मार देता| एक अन्य पुलिस अधिकारी यहाँ तक कह देता है की पुलिस चोरों को पकडे या फिर लड़कियों को ढूंढती फिरे| अभी उत्तर प्रदेश की राज्य महिला आयोग की अध्यक्षा जरीना उस्मानी ने बयान दिया है की लड़कियों को माहौल देखकर कपडे पहनना चाहिए| जनता यह जानना चाहती है की आप बयान क्यों देते हैं, घटनाओं को घटने से रोकते क्यों नहीं? जिया उल हक की बेवा को तन मन धन से लाभान्वित करने वाली सरकार को हिंदू युवा वाहिनी के कार्यकर्ता रामबाबू गुप्ता की विधवा पत्नी का करूँ विलाप क्यों नहीं सुनाई देता? कारन स्पष्ट है, इस हत्याकांड में स्थानीय सपा विधायक के हाँथ होने की संभावना जताई जा रही है या फिर यदि सरकार राष्ट्रवादियों पर नरम होती है तो सिमी में बैठे सरकार के उच्चस्तरीय आकाओं का हाजमा बिगड सकता है| उत्तर प्रदेश को गुजरात नहीं बनने देंगे का उद्घोष करने वाले सपाइयों को वाइब्रेंट गुजरात नहीं दिखाई पड़ता क्योंकि उनके लिए विकास की एकमात्र परिभाषा है – सैफई उत्सव| मायावती कहती रह गयी किन्तु केन्द्र सरकार ने उन्हें उत्तर प्रदेश का विकास करने के नाम पर एक फूटी कौड़ी भी नहीं दी जबकि सपा सरकार बनते ही अखिलेश को ५०० करोड रूपये की धनराशि बिना मांगे ही मिल गयी| राज्य सरकार इस पैसे से एक एक हजार रूपये में उत्तर प्रदेश की जवानी खरीद रही है और शिक्षक पात्रता परीक्षा उत्तीर्ण विपदा के मारों द्वारा एकत्रित धनराशि से इंटर पास युवकों को लैपटॉप का झुनझुना थमा रही है| विधायक निधि से २० लाख रूपये की गाडी ले सकने के फैसले को तुरंत पलटना पड़ा, जिससे सरकार की किरकिरी हुई और मुलायम को भी नाटकीय रूप से अखिलेश को अपने ज़माने के सुशासन की याद दिलानी पड़ी, जब उन्होंने निहत्थे कारसेवकों पर अंधाधुंध गोलियाँ बरसा कर ढाँचे की सुरक्षा को अपनी महानतम उपलब्धियों में शुमार किया था| साम्प्रदायिक विभाजन यहाँ से प्रारम्भ हुआ| अखिलेश मुलायम की परम्परा को समाजवादी तरीके से आगे बाधा रहे हैं, इसीलिए प्रदेश के चुनिन्दा शहरों में समाजवादी एम्बुलेंस सेवा की स्थापना की जा रही है| इस सरकार की आलोचना करना ही व्यर्थ है क्योंकि समाजवाद, साम्यवाद का ही कनिष्ठ भाई है और इतना बिगड़ा हुआ है की सत्ता प्राप्ति के लिए हुक्मे खूनबहा तक को न सिर्फ जायज मानता है बल्कि अपने सम्प्रदाय में दीक्षित एक सभासद तक को “गुंडा भव” के राजनैतिक उपदेश से अनुग्रहीत करने का काम करता है| यही कारण है की असिक्षितों के तथा कम पढ़े लिखे अथवा पढ़े लिखे मूर्खों के मध्य इस राजनैतिक दल ने अपनी मजबूत पकड़ बना रखी है और चूंकि इनकी तादाद ज्यादा है इसलिए फिलहाल जनजागृति लाकर ही इसके जनाधार को चुनौती दी जा सकती है, अन्यथा इन्हें चुनौती देना पढ़े लिखे अल्पसंख्यकों के बूते की बात नहीं है| ८४ कोसी परिक्रमा का मुद्दा पूरी तरह सामाजिक और आस्था से जुड़ा हुआ मुद्दा था| यह संतों का कार्यक्रम था और सामान्य जनता को इससे दूर रखा गया था| केवल २५० संतों के अयोध्या की परिक्रमा कर लेने से सूबे का अमन चैन बिगड जाता, यह बात किसी को भी समझ में नहीं आ सकती किन्तु अल्पसंख्यक कल्याण के नाम पकार सूबे का २००० करोड रुपया पानी की तरह बहा देने वाली समाजवादी पार्टी के लिए यह एक खुले चैलेन्ज की तरह था| विहिप से यहाँ एक गलती हो गयी| उसे अनुमति के लिए सरकार के पास जाना ही नहीं चाहिए था| रावण के पास सीताजी की वापसी के लिए हनुमान ने भी दूत का कार्य किया और अंगद ने भी यही कार्य किया| हनुमान ने सोने की लंका को जलाकर उसे पानी की तरह पिघला दिया और अंगद ने प्रभु राम का नाम लेकर रावण को भी झुकने को विवश कर दिया| विहिप ने हनुमान का धर्म निभाया किन्तु वह लंका नहीं जला सकी| प्रतिक्रिया स्वरुप उसके ही हाँथ जल गए क्योंकि सपा का चरित्र रावण के भी बराबर नहीं है| इसे कंस की संज्ञा देना उपयुक्त रहेगा| तीन दिन के इस नाटक को देश ने भी देखा और परदेश ने भी| अंतर्राष्ट्रीय मंच पर समाजवादी पार्टी के उत्तम प्रदेश और जनता द्वारा संबोधित बदतर प्रदेश स्थित अयोध्या युद्ध भूमि की तरह नजर आ रही थी| सरकार ने तोपों और टैंकों को छोड़कर संतो को रोकने के हर संभव उपाय कर रखे थे| ऐसा लगता था की जैसे अयोध्या पर कोई बड़ा आतंकी हमला होने वाला हो और कर्तव्यनिष्ठ सरकार को पहले से ही इसकी खुफिया सूचना प्राप्त हो गयी हो| इस तरह की वारदातों से देश का मनोबल गिरता है| अंतर्राष्ट्रीय मंच पर हमें उपहास की दृष्टि से देखा जाता है| अमेरिका ने प्रदेश के काबीना मंत्री को पहचानने में भूल नहीं की| लोगों का कहना है की तलाशी के नाम पर उनके कपडे तक उतार दिए गए थे| वास्तविकता चाहे जो भी रही हो| क्या यह बात संदेह नहीं पैदा करती कि अखिलेश भी उनके साथ अमेरिका प्रवास पर गए थे फिर उनके साथ अभद्रता क्यों नहीं कि गयी| समाजवादी पार्टी के डेढ़ साल के शासनकाल में कुछ हजार लैपटॉप बांटे गए, कुछ लाख लोगों को बेरोजगारी भत्ता दिया गया, सैकड़ों आतंकवादियों को (जिन पर आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त होने के प्रमाण भी हैं) बेगुनाह बना कर उन पर चल रहे मुकदमे को कमजोर करने की साजिश रची गयी, नर्वाच्निक दृष्टि से महज तीन जिलों एटा, इटावा और कन्नौज को २४ घंटे विद्युत आपूर्ति सुनिश्चित की गयी, वर्ग विशेष को संतुष्ट करने के हर संभव प्रयास किये गए, अलविदा के नमाज के बाद सरकार द्वारा प्रायोजित दंगे करवाए गए, लखनऊ में बुद्ध की प्रतिमा को खंडित करने का प्रयास किया गया, स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर वन्देमातरम का उद्घोष कर रहे मासूमों पर आततायियों द्वारा निर्मम लाठियां बरसाई गयी, टीईटी अभ्यर्थियों को जेल में डाला गया, उन्हें शारीरिक, मानसिक और आर्थिक यंत्रणा भोगने को विवश होना पड़ा, टीईटी के ही सन्दर्भ में दुहरे आरक्षण की व्यवस्था की गयी, प्रशासनिक सेवाओं में प्रारम्भिक परीक्षा से लेकर साक्षात्कार तक हर चरण में आरक्षण का प्रावधान किया गया, इसके विधायक शाकिर अली पर सामंतवाद का ऐसा भूत सवार हुआ के वे स्टेशन पर ही घोड़े पर सवार हो गए और रेलगाड़ी से स्पर्धा करने लगे, कब्रिस्तान की दीवार बनाने के लिए जनता के पैसे लुटाए गए, मुसलमानों को प्रदेश की सेवाओं में २० फ़ीसदी आरक्षण का प्रावधान किया गया, विकास का २० फ़ीसदी पैसा अल्पसंख्यक कल्याण के नाम पर केवल एक वर्ग पर खर्च किये जाने हैं, पंथिक आधार पर महिलाओं के साथ अन्याय और बलात्कार की घटनाओं में बेतहाशा वृद्धि हुई, अखिलेश कभी अपना वजन लेने धर्मकांटे पर चढ गए तो कभी सुरक्षाकर्मियों से मिलने टावर पर चढ गए, शुरूआती दिनों में जनता दरबार की नौटंकी आयोजित की गयी, अश्न्तुष्टों का बढ़ता जमावड़ा देख कर तीन महीने बाद ही इसे बंद कर दिया गया, समाजवादी पार्टी भूखे, नंगों की फ़ौज से क्योंकर मिलने लगी? यथा राजा तथा प्रजा| इस शासन पर इतने दाग हैं की उन्हें पृथक पृथक गिनना असंभव हो चला है| मात्र डेढ़ साल में उत्तर प्रदेश, बदतर प्रदेश बन गया है| अभी साढ़े तीन साल इस सरकार को और झेलना होगा यह सोचकर ही लोगों के होश उड़े हुए हैं| मुलायम सिंह यादव प्रधानमन्त्री बनने का सपना पाले हुए हैं| प्रधानमन्त्री बनने का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर जाता है अतः उन्हें विश्वास है की देश के अगले प्रधानमन्त्री वही होने| यदि ऐसा हुआ तो आज सिर्फ हमारा प्रदेश ही बदतर प्रदेश के रूप में जाना जाता है, तब समूचा देश ही बदतर देश के रूप में जाना जाएगा| आज विदेशी निवेशक प्रदेश में निवेश करने से थर्राते हैं, तब देश में निवेश करने से थर्रायेगें और लोकतंत्र का समाजवादी माडल इस देश का कबाडा कर चुका होगा| यह सिद्ध हो चका है की इस सरकार की संवैधानिक मूल्यों में रंच मात्र भी आस्था नहीं है|

एक गली कानपुर की (उपन्यास) - सुधीर मौर्य

मुक्कमल ख़ामोशी रही थी। कुछ देर शांत बैठे रहने के बाद संदीप उठा अपने हाथो से  उसने बच्चे के चेहरे से कपडा हटाया, सिर्फ  कुछ पल निहारा था उसे और फिर  के कमरे से वो बहार चला गया।                                                                                                                                                                                           कुदरत, श्रृष्टि सबसे बड़े शाहकार  हैं उसने अजूबे को  दिया था। में जो पल्लवी के साथ जिस्मानी तौर पर कभी  सोया था। जिसने कभी उसे सम्पूर्ण   देखा था उससे पैदा हुए बच्चे की शक्ल मेरी  थी।                                                                                                                                                                                              -क्या यही आत्मा का प्यार था।                                                                                                                     -इश्क रूहों  का।                                                                                                                                           -मिलन  के  मन के हिलोरों का।                                                                                                                                                                                                                                                                           उपन्यास 'एक गली कानपुर की ' का अंश                                                                                                                    सुधीर मौर्य                                 
                                                                                                          

झूठे,धोखेबाज और ढोंगी भी हैं मनमोहन-ब्रज की दुनिया

मित्रों,जब वर्ष 2004 में लोकसभा चुनावों के बाद इटली से आयातित कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी ने परम-त्यागमयी महिला होने का परिचय देते हुए तब तक ईमानदार,सज्जन और गैरराजनैतिक माने जाने वाले अर्थशास्त्री डॉ. मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाया तब पूरे भारत की जनता को लगा कि अब भारतीय अर्थव्यवस्था को पंख लगने के दिन आ गए हैं। वर्ष 2004 से वर्ष 2009 तक उनकी पहली पारी में देश की जीडीपी लगातार तेज रफ्तार में दौड़ती रही लेकिन जैसे ही दूसरी पारी शुरू हुई देश के विकास को न केवल ब्रेक लग गया बल्कि वो रिवर्स गियर में द्रुत गति से चलने लगा। धीरे-धीरे जैसे-जैसे वक्त गुजरा एक-एक करके एक से बढ़कर एक महाघोटाले सामने आने लगे और माननीय मनमोहन सिंह के चेहरे पर की गई ईमानदारी और सज्जनता की सुनहरी कलई उतरने लगी और आज स्थिति यह है कि उनका चेहरा जनता की नजरों में पूरी तरह से स्याह पड़ चुका है।
                       मित्रों,भारतीय रुपये की तरह मात्र चार वर्षों में मनमोहन सिंह की छवि का भारी और तीव्र गति से अवमूल्यन हुआ है और अब कुछ भी पर्दे में नहीं रह गया है। सबकुछ दुनिया के सामने आ गया है। आज की तारीख में हमारे देश के कथित प्रधानमंत्री जी काफी दुःखी हैं। उनको देश की बदहाल हालत बिल्कुल भी परेशान नहीं कर रही है वे तो सिर्फ इसलिए दुःखी हैं कि संसद में विपक्ष उनको चोर क्यों कह रहा है? उधर विपक्ष भी उनके ऐतराज पर ऐतराज जताते हुए उनसे पूछ रहा है कि चोर को चोर न कहें तो क्या कहें? गलती दोनों तरफ से बराबर की हो रही है। मनमोहन को तो परेशान होने के बदले खुश होना चाहिए कि उनको विपक्ष द्वारा चोर के साथ-साथ झूठा,मक्कार,भ्रष्ट,ढोंगी,धोखेबाज,गैरजिम्मेदार इत्यादि नहीं कहा जा रहा है जबकि कायदे से वे इन विशेषणों से विभूषित हो सकने की योग्यता बहुत समय पहले ही अर्जित कर चुके हैं।
                          मित्रों,वहीं विपक्ष को भी मनमोहन सिंह जी को कम करके नहीं आँकना चाहिए और सिर्फ चोर नहीं कहना चाहिए। आखिर उन्होंने काफी मेहनत करके दर्जनों घोटाले करवाए। फिर फाइलें गायब करवाईं या जलवाईं और बिडंबना यह है कि उनके इन महान कार्यों में पानी की तरह पसीना बहाने के बाद भी उनकी महानता को विपक्ष कम करके बता रहा है। क्या विपक्ष भूल गया है कि अब मनमोहन सिंह कितनी खूबसूरती से झूठ बोल लेते हैं और मिनटभर में बेझिझक ए.राजा,अश्विनी कुमार,बंसल और कलमाड़ी को पाक-साफ बता देते हैं? क्या विपक्ष को यह भी याद नहीं कि मनमोहन सिंह आज भी किस तरह चेहरे पर उदासी ओढ़कर खुद के देश और अपने कर्त्तव्यों के प्रति ईमानदार होने का ढोंग कर लेते हैं?
                                       मित्रों,कई बार इन्सान से गलतियाँ हो जाया करती हैं। फिर भी विपक्ष का यह अपराध तो अक्षम्य है कि उसने नारे लगाते समय महान मनमोहन के इस गुण को पूरी तरह से अनदेखा कर दिया कि वे किस अदा और बेशर्मी से सर्वोच्च न्यायालय,सीएजी,आरबीआई इत्यादि महत्त्वपूर्ण संस्थाओं पर अपनी संवैधानिक जिम्मेदारी नहीं निभाने और लक्ष्मण-रेखा पार करने का आरोप लगाते रहे हैं। मानो उनकी सरकार की विफलता के लिए वे नहीं ये संस्थाएँ ही जिम्मेदार हों। मनमोहन सिंह की गैर-जिम्मेदारी का इससे बड़ा प्रमाण और क्या हो सकता है कि उनके मंत्रालय से फाइलें गायब हो जाती हैं और वे संसद में फरमाते हैं कि मैंने फाइलों की सुरक्षा का ठेका नहीं ले रखा है? अगर वे ऐसा कहते हैं तो इसमें कोई आश्चर्य की बात भी नहीं है क्योंकि जहाँ तक मैं समझता हूँ कि श्री मनमोहन सिंह जी ने सपने में भी कभी खुद को भारत का प्रधानमंत्री समझा ही नहीं है बल्कि उन्होंने तो खुद को सिर्फ सोनिया गांधी का प्रधानमंत्री समझा और लगातार अपने भाषणों में बस यही दोहराते रहे कि देश में यह होना चाहिए और ऐसे होना चाहिए। अगर वे खुद को भारत का प्रधानमंत्री समझते तो उनकी भाषा कुछ इस तरह होती कि मैं यह करूंगा और ऐसे करूंगा,मैंने यह किया और ऐसे किया। मनमोहन कहते रहे कि अच्छा होना चाहिए और स्वयं करते रहे बुरा। मनमोहन के जहाँ तक चोर होने का सवाल है तो वे चोर तो हैं ही और कोई मामूली चोर नहीं हैं। उन्होंने भारत के सभी देशप्रेमियों की नींद और चैन एकसाथ चुरा ली है। मैं चुनौती देता हूँ कि है दुनिया की किसी भी खुफिया एजेंसी में दम तो उनके द्वारा दिनदहाड़े चोरी की गई इन अमूल्य वस्तुओं को बरामद करके बताए।
                       मित्रों,मैं अंत में विपक्ष से निवेदन करता हूँ कि उनको मनमोहन सिंह से तहेदिल से माफी मांगनी चाहिए क्योंकि उसने हमारे हरफनमौला कथित पीएम को सिर्फ चोर कहने का गंभीर अपराध किया है। जबकि देश की जनता उनको चोर के साथ-साथ झूठा,भ्रष्ट,ढोंगी,धोखेबाज,मक्कार और गैरजिम्मेदार भी मान चुकी है तो फिर विपक्ष को किसने यह अधिकार दे दिया कि वो महान शैतानावतार मनमोहन सिंह को अंडरस्टीमेट करे और ऐसा करके अपमानित करे? दुनिया में कृत्रिम बुद्धि से युक्त पहले यंत्र-मानव मनमोहन सिंह जी को यह शिकायत भी है कि संसार में सिर्फ भारत में भी संसद के बेल में आकर विपक्ष प्रधानमंत्री चोर है का नारा लगाता है। मैं उनसे अर्ज करता हूँ कि प्यारे मनमोहन आपको तो खुश होना चाहिए कि आप भारत जैसे मुर्दादिल और नपुंसक देश के प्रधानमंत्री हैं वरना अगर आप किसी यूरोपीय देश के प्रधानमंत्री होते और आपने वहाँ वैसे ही और उतने ही महान कार्य किए होते जितने कि भारत में किए हैं तो उस देश की जनता अपने घरों में बैठी नहीं रहती और सड़कों पर उतरकर आपके घर समेत पूरी दिल्ली को कई साल पहले घेर चुकी होती और फिर आप चार साल तो क्या चार दिन के लिए भी प्रधानमंत्री की कुर्सी पर नहीं रह पाते और पिछले कई सालों से अपने प्रायोजक गांधी परिवार और अपने अधिकांश मंत्रिमंडल के साथ तिहाड़ जेल में अपने करकमलों से मुलायम-मुलायम रोटियाँ तोड़ रहे होते।

28.8.13

गलत उपाय से राष्ट्र का बदहाल

गलत उपाय से राष्ट्र का बदहाल 

आचार्य चाणक्य ने सूत्र दिया था कि-" जैसे भूख मिटाने के लिए बालुका रेत को
उबालना निरर्थक होता है उसी प्रकार गलत उपायों से राष्ट्र की उन्नती का
सपना सच नहीं होता है।"

"राजा का कर्तव्य है कि वह राजलक्ष्मी की सुरक्षा चोरो और राजसेवकों से करता
रहे।"

अगर देश की सरकार ने इन सूत्रों का पालन किया होता तो आज हमारे राष्ट्र की
यह आर्थिक दुर्दशा नहीं हुई होती ,मगर राष्ट्र की जगह राजा अपने समूह का हित
साधने लग जाए तो स्थिति विकट होनी ही थी और हुई भी। …

पिछले सालों में अर्थशास्त्री गलत नीतियाँ लाते ही गए ,उधारवाद की कुनीति से
सब बंटाधार हो गया ,हम उधार के पैसों से अपने को चमकता हुआ दिखलाना
चाहते थे ,चाणक्य ने ऋण,शत्रु और रोग को पूर्णतया खत्म करने की नीति बताई
और हमने ऋण लेकर उसको चोरों के, लुटेरों के हवाले कर दिया ,नतीजा देश का
धन विदेशी बैंको में काला होकर सड़ रहा है और हम बेबस हैं।

हमने अपने ही सरकारी उद्योगों को ठन्डे कलेजे से नीजी हाथों में बेचा और अपनी
पीठ ठोकते रहे ,अब जब सब कुछ कोडियों के मोल बिक गया तो असल तस्वीर
नंगी हो गयी और हम फकीर नजर आने लगे ,जिन महापुरुषों ने जो सम्पति बनायी
उसे बेचकर हम राष्ट्र निर्माण का सपना देखने लगे ! अजीब मुर्खता थी यह  …

हमने गुलाम रहकर उसके दुष्परिणाम भोग कर भी कुछ नहीं सिखा ,जिस ईस्ट इण्डिया
कम्पनी के कारण हम गुलाम हुए ,हमने उसके पुरे कबिले को न्योता दे दिया कि
वह भारत में आयें वे निवेशक के रूप में आये भी और भारतीय कम्पनियों के शेयरों
को सस्ते में खरीद कर रख लिया ,हमने उस समय कहा की देखो ,देश की तिजोरी
डॉलर से छलका दी है … हम अपनी मुर्खता का ढोल पीट कर गुणगान करते रहे
और देशवासियों को बरगलाते रहे। कुछ साल बाद वे विदेशी निवेशक कम दाम में
ख़रीदे शेयर ऊँचे दाम में हमको ही बेचकर उड़ने लगे और हम वापिस वहीँ आ गये 
जहाँ थे और जेब कब खाली हो गई ,पता ही नहीं चला।

हमने रिटेल में भी विदेशी लुटेरों को निवेशक बनाकर न्योता दिया ,वो अभी नहीं आ रहे
हैं क्योंकि वो जानते हैं कंगाल से दोस्ती करने पर बुरा हश्र होता है मगर वो उस
समय जरुर आयेंगे जब हम भारतीय पसीना बहा कर सम्पन्न हो जायेंगे और वो हमें
पुन: लूट कर चल पड़ेंगे।

हमने मुक्त व्यापार की नीति को अपनाया जबकि हमने अपनी ताकत और कमजोरियों
को नहीं जाँचा और नतीजा ये हुआ कि हम जिनको निर्यात करना चाहते थे वे देश
हमें निर्यात करके चले गए ,नतीजा देश का कुटीर ,लघु,मध्यम उद्योग लकवाग्रस्त
हो गया, सब कुछ ढेर  … और हम कहते हैं कि इसे ही प्रतिस्पर्धा कहते हैं ।

हमने वितरण क्षेत्र में लीकेज वाली नीतियाँ बनायी ,जानबूझ कर।  तब के प्रधान
कहते थे दिल्ली से चला रुपया गरीब के पास दो आन्ने बन कर पहुँचता है ,जब यह
सब जानते थे तो क्यों लीकेज बंद नहीं किये गए ,शायद गरीबों के नाम को आगे
रख कर कुछ स्वार्थी तत्वों के पेट भरने का मकसद रहा होगा ,और उन नीतियों का
परिणाम यह रहा कि गरीब और गरीब हो गया और धन को जोंक और साँपों ने डस
लिया।

सरकार भूखी, लाचार, निराश, महंगाई से त्रस्त जनता के सामने भारत निर्माण के
सपने परोस रही है। जनता यह समझ ही नहीं पा रही है कि निर्माण किसका हो रहा
है ,उसकी थाली में रोटी की संख्या हर दिन कम होती जा रही है  …। 

सरकार अपनी गलत नीतियों का दोष दुसरो पर थोपना चाहती है ताकि भेड़ें उसका
अनुकरण करती रहे और जो दोषी नहीं है उसे ही अपराधी मानती रहे  …. मगर
त्रस्त प्रजा का रोष कितना भयंकर होगा यह भविष्य में छिपा है …।  

27.8.13

ek nayee kavita

आधी रात को दिखते हैं बाबूजी
बिलकुल बाबूजी की तरह
पट्टे के पाजामे और कई छेदों वाली
पीली सी बनियान में
हाथ कमर के पीछे बांधे
वो तेज तेज नापते
छोटे से बरामदे की सरहद बुदबुदाते हुए
मुन्ना क्यों नहीं लौटा अब तक ?
आज मांगना ही है शादी के लिए गहना-रूपया
आखिर वही तो है बडकी का इकलौता भैया ....
...अम्मा तो अक्सर दिखती है
बाबूजी के पैर दबाती
दीदी की शादी की बात चलाती
सहसा किसी बात पर
दोनों के बीच पसरता सन्नाटा
सीलिंग फैन की चिचियाती आवाज़
ढँक लेती सिसकियाँ
फिर आँखें पोंछती अम्मा
ठाकुरजी की ओर जाती दिखती है
और मेरी आँखों के कोरों से
कोई टीस पिघलती है ....
आधी रातों के खाबों की
यही बात एक अखरती है
भूलने वाली मामूली यादें
बार-बार उभरती हैं
-विवेक मृदुल
जिला मुख्यालय की सीट से टिकिट के लिये इंका और भाजपा में मची भारी घमासान से राजनैतिक हल्कों में  सरगर्मी बढ़ी
 जिला मुख्यालय की राजनैतिक रूप से सर्वाधिक मूहत्वपूर्ण सिवनी विधानसभा सीट के लिये टिकिट की मारामारी कांग्रेस और भाजपा में तेज हो गया हैं। पिछले पांच चुनावों से भाजपा इस सीट से जीत रही है। इसलिये भाजपा नेताओं का मानना है कि सिर्फ टिकिट मिल जाये जीतना तो सुनिश्चित है ही। जिले की कांग्रेसी राजनीति में केन्द्रीय मंत्री कमलनाथ का सीधा हस्तक्षेप बढ़ गया है इसीलिये राजनैतिक जानकारों का मानना है कि जिले में कांग्रेस की चुनावी रणनीति में होने ंवाला आमूल चूल परिवर्तन भाजपा की डगर आसान नहीं रहने देगा और जिले चारों विस क्षेत्रों में बिना कठिन परिश्रम किये जीतना संभव नहीं होगा। कांग्रेस भी टिकिट की लड़ायी में उलझी हुयी हैं। राहुल गांधी के नेतृत्व में टिकटार्थियों के लिये बनाये गये मानदंड़ और टिकिट का आवेदन लगाने वालों से मांगी गयी जानकारियों के कारण समीकरण काफी उलझ गये है। वैसे कांग्रेस इस द्वोत्र से 1990 से चुनाव हार रही हैं। लेकिन यह भी राजनैतिक रूप से कम महत्वपूर्ण बात नहीं है कि इस क्षेत्र से टिकिट मांगने वालों की संख्या में कोई कमी नहीं आ रही है। इस बार कांग्रेस और भाजपा के आलाकमान ने टिकिट देने की प्रक्रिया निर्धारित की है उससे एक बात तो हुयी है कि चुनाव लड़नें इच्छुक नेता जो मंड़ल या ब्लाक के पदाधिकारियों को अपने आधीन समझते थे उन्हें अपनी ही टिकिट ले लिये उनके दर पर पहुंचना पड़ रहा है। 
आयती जीत की संभावना नहीं फिर भी मची भाजपा में होड़ -जिला मुख्यालय की राजनैतिक रूप से सर्वाधिक मूहत्वपूर्ण सिवनी विधानसभा सीट के लिये टिकिट की मारामारी कांग्रेस और भाजपा में तेज हो गया हैं। पिछले पांच चुनावों से भाजपा इस सीट से जीत रही है। इसलिये भाजपा नेताओं का मानना है कि सिर्फ टिकिट मिल जाये जीतना तो सुनिश्चित है ही।इस क्षेत्र से दो बार स्व. महेश शुक्ला, दो बार नरेश दिवाकर चुने गये और वर्तमान में नीता पटेरिया भाजपा से विधायक है। भाजपा में टिकिट के लिये इस बार नीता और नरेश के अलावा पालिका अध्यक्ष राजेश त्रिवेदी भी दावेदार के रूप में उभर कर सामने आयें है।लेकिन कार्यकर्त्ताओं एक वर्ग ने ब्राम्हण बनिया विरोधी मोर्चा खोल रखा है। क्षेत्र के कार्यकर्त्ता सम्मेलन में यह मुहिम जोरदार तरीके से चली भी थी। इसके बाद भाजपा में अब यह चर्चित हे गया है कि चौथा कौन? चौथा कौन की चर्चा चालू होते ही पूर्व मंत्री स्व. महेश शुक्ला कि पुत्र अखिलेश शुक्ला एवं पूर्व जिला भाजपा अध्यक्ष द्वय प्रमोद कुमार जैन कंवर साहब,सुदर्शन बाझल एवं सुजीत जैन के नामों की चर्चा भी चाले हो गयी हैं। लेकिन ये सभी संभावित नाम भी ब्राम्हण एवं बनिया वर्ग से ही हैं। इन वर्गों के विरोध में मुहिम चलाने वाला तबका अपनी ओर से किसी सशक्त दावेदार का नाम आम सहमति से सामने नहीं ला पाया है। वैसे राजेन्द्रसिंह बघेल,नरेन्द्र टांक, घासीराम सनोड़िया, राजेश उपाध्याय,ज्ञानचंद सनोड़िया आदि नेताओं के नाम भी दावेदारों के रूप में सामने आ रहें है। इनमें से कौन बाजी मार लेगा? इस पर कुछ कहा नहीं जा सकता है लेकिन इस बार का चुनाव पिछले चुनावों जैसा नहीं होगा यह बात भाजपा आलाकमान भी जानता है कि सिवनी क्षेत्र में भाजपा को बिना कमर कस कर चुनाव लड़े आयती जीत नहीं मिलने वाली हैं। जिले के कांग्रेस के पुरोधा हरवंश सिंह के आकस्मिक निधन के बाद जिले की कांग्रेसी राजनीति में केन्द्रीय मंत्री कमलनाथ का सीधा हस्तक्षेप बढ़ गया है इसीलिये राजनैतिक जानकारों का मानना है कि जिले में कांग्रेस की चुनावी रणनीति में होने ंवाला आमूल चूल परिवर्तन भाजपा की डगर आसान नहीं रहने देगा और जिले चारों विस क्षेत्रों में बिना कठिन परिश्रम किये जीतना संभव नहीं होगा। 
सिवनी क्षेत्र से कांग्रेस में भी मची है घमासान-कांग्रेस भी टिकिट की लड़ायी में उलझी हुयी हैं। एक तरफ तो राहुल गांधी के नाम पर राजा बघेल की टिकिट काफी पहले से सुनिश्चित मानी जा रही थी। लेकिन टिकिट की कवायत चालू होने के बाद बहुत सारा पानी बैनगंगा के पुल के नीचे से बह चुका है। राहुल गांधी के नेतृत्व में टिकटार्थियों के लिये बनाये गये मानदंड़ और टिकिट का आवेदन लगाने वालों से मांगी गयी जानकारियों के कारण समीकरण काफी उलझ गयें हैं। वैसंे तो कांग्रेस में 38 लोगों ने टिकिट मांगी थी लेकिन अनुशासनहीनता के आरोपों के चलते जिले के उपाध्यक्ष खुमान सिंह के निष्कासन के बाद यह संख्या अब 37 रह गयी है। कांग्रेस के प्रमुख दावेदारों में राजकुमार खुराना,नेहा सिंह,दिलीप बघेल,रमेश जैन, मोहन चंदेल, चंद्रभान सिंह बघेल,ठा. धमेन्द्र सिंह के अलावा अल्पसंख्यक नेताओं में जकी अनवर, सुहेल पाशा, असलम भाई,आरिफ पटेल,साबिर अंसारी प्रमुख हैं। वैसे कांग्रेस इस द्वोत्र से 1990 से चुनाव हार रही हैं। लेकिन यह भी राजनैतिक रूप से कम महत्वपूर्ण बात नहीं है कि इस क्षेत्र से टिकिट मांगने वालों की संख्या में कोई कमी नहीं आ रही है। हाल ही में प्रदेश कांग्रेस के निर्देश पर इस क्षेत्र में कांग्रेस संदेश यात्रा भी प्रारंभ हो गयी हैं। 24 अगस्त से प्ररंभ यह यात्रा 30 अगस्त चलेगी। इस यात्रा में सभी संबंधित ब्लाक कांग्रेस के पदाधिकारी एवं टिकटार्थी शामिल हो रहें हैं। इस यात्रा के दौरान कांग्रेस नेता एक फोल्डर के माध्यम से कांग्रेस की केन्द्र सरकार की उपलब्धि और भाजपा की प्रदेश सरकार की पोल भी खोल रहें है। कांग्रेस में एक यह मांग भी जबरदस्त तरीके से उठ रही है कि इस बार सिवनी या केवलारी क्षेत्र से मुस्लिम नेता को टिकिट दी जाये। राहुल गांधी की गाइड लाइन,कांग्रेस के पर्यवेक्षकों की कवायत एवं नव नियुक्त प्रदेश प्रभारी मोहनप्रकाश के सख्त निर्देशों के चलते किसे टिकिट मिली है यह तो अभी नहीं कहा जा सकता लेकिन इतना जरूर है कि अच्छे उम्मीदवार को टिकिट और कांग्रेसी यदि एक रहे तो भाजपा के लियें सीट गंवाने का खतरा भी हो सकता है। 
तो कांग्रेस और भाजपा में उत्साह का संचार तो हो ही जायेगा-इस बार कांग्रेस और भाजपा के आलाकमान ने टिकिट देने की प्रक्रिया निर्धारित की है उससे एक बात तो हुयी है कि चुनाव लड़नें इच्छुक नेता जो मंड़ल या ब्लाक के पदाधिकारियों को अपने आधीन समझते थे उन्हें अपनी ही टिकिट ले लिये उनके दर पर पहुंचना पड़ रहा है। राहुल गांधी के भोपाल प्रवास के दौरान अधिकांश पदाधिकारियों ने उन्हें महत्व ना मिलने की बात की थी। राहुल गांधी के निर्देश पर कांग्रेस पर्यवेक्षकों ने इस बार ब्लाक कांग्रेस कमेटी से भी सुझाव मांगे तथा तीन तीन नाम प्रस्तावित करने को कहा। इससे यह हुआ कि अपने आप को बहुत बड़ा नेता मानकर टिकिट मांगने वालों को अपनी मनुहार लेकर उनके दर तक जाना पड़ा। इसी तरह भाजपा में भी रायशुमारी देने का जिन कार्यकर्त्ताओं को अधिकार दिये गये हैं उनके पास अपनी जुगाड़ जमाने के लिये वर्तमान और भावी विधायक पहुंच रहें हैं।दोनों ही पार्टियों द्वारा इस प्रक्रिया को अपनाने से पार्टी के कार्यकर्त्ताओं की प्रतिक्रिया संतोषजनक देखी जा रही हैं। यदि वास्तव में इसी के आधार पर टिकटें बंटतीं हैं तो इससे कार्यकर्त्ताओं में उत्साह का संचार तो हों ही जायेगा। 
“मुसाफिर“ 
सा. दर्पण झूठ ना बोले, सिवनी से साभार
27 अगस्त 2013   

26.8.13

पाक की नापाक हरकतों का जवाब देने की वजहे - सुधीर मौर्य

पाकिस्तान के अवामी लीग के नेता का भारत को धमकी देना, उनका कहना की अगर भारत ने जंग छेड़ी तो फिर ना तो भारत के मंदिरों में कभी घंटियाँ बजेंगी और ना ही वहाँ  (भारत) के मैदानों में कभी घास उगेगी। उनकी नापाक फितरत की सोच है।    भारत को  यकीनन उनके इस वक्तव्य को गंभीरता से लेना चाहिए। इतिहास गवाह है मुस्लिम सेनाओं ने इसी तरह के अपवित्र उदॆशय को लेकर हम पर कई हमले किये और कुछ काल के लिए उन्होंने अपनी धूर्तता से हमे हरा भी दिया। पर मंदिरों में घंटियाँ सतत बजती रहीं और भारत के मैदान घास से ही नहीं वरन फसलों से भी लहलहाते रहें।                                                                                                                                                                         -                                                                                                                                                                                 पाकिस्तान अपने नापाक उद्देश्य में कभी कामयाब नहीं होगा, इसका हमें यकीन है पर फिर भी उसके नेता की इस धमकी को कोरी धमकी मान  कर भारत को दुष्ट पकिस्तान की नाक में नकेल तुरंत कसनी ही चाहिए, उसे छठी का दूध याद दिलाना ही चाहिए। असल में तो भारत को पाकिस्तान की इस धमकी पर  इस्लामाबाद में अपनी  सेना भेजकर उचित प्रतुत्तर देना चाहिए  था                                                                                                                                         -                                                                                                                                                                                 सरहद पर घात लगाकर पाकिस्तानी सैनिकभारतीय सैनिको की कायरतापूर्वक हत्या कर रह हैं, उनके सर काट रहे हैं। इन हालातों में भारत को डंके की चोट पर पाकिस्तान में घुसकर उसकी नापाक करतूतों के लिए उसे फ़ौरन   सबक सिखाना चाहिए।                                                                                                                                                                -                                                                                                                                                                         पाकिस्तान में रह रहे हिन्दुओ पर अत्याचार  दिनोदिन बढते जा रहें हैं।  उनकी लड़कियों को  जबरन उठाकर मुस्लिम बनाया जा रहा है, उनका बलात्कार किया जा रहा है। उन्हें जबरन मुस्लिम  मर्दों की रखेल/बीवी बनाया जा रहा है।    कट्टरपंथियों  की इन हरकतों पर  वहां की सरकार और  न्यायपालिका   आँखे मूंद कर बैठी है। पिछले साल एक हिन्दू लड़की   रिंकल कुमारी को जबरन उठाकर उसके साथ बलात्कार किया  गया और उसे उसकी बिना मर्ज़ी के मुस्लिम बना कर एक मुस्लिम गुंडे की बीवी/रखेल बना दिया गया। रिंकल वहां की सुप्रीम कोर्ट    में चीख - चीख कर कहती रही की वो अपने मांबाप के पास जाना चाहती है, उसे जबरन मुस्लिम बनाया   जा रहा है पर वहां के चीफ जस्टिस ने भी उसकी आवाज़ नहीं सुनी और उसे बलात्कारियों के  हाथों में सौंप दिया। जहाँ वो नारकीय जीवन जीने को आज भी मजबूर है। रिंकल तो एक बानगी भर है ऐसी कितनी ही हिन्दू लड़कियां का  वहां जबरन  बलात्कार किया जा रहा है उसका कुछ हिसाब नहीं है।                                                                                                                                                     -                                                                                                                                                                                  पाकिस्तान की इन हरकतों अब भारत को नज़रंदाज़ नहीं करना चाहिए। उस  पर हमला करके उसकी धूर्तता की उचित - उचित सजा देनी चाहिए। रिंकल, सरहद पर मरते भारतीय सैनिकों की आत्मायो के साथ न्याय  होगा जब अब पाकिस्तान में भारतीय सैनिकों के बूटों का संगीत गूंजेगा।                                                                                                                                                       -                                                                                                                                                                                            सुधीर मौर्य 'सुधीर'                                                                                                                                                                     गंज जलालाबाद, उन्नाव -