31.8.13
उत्तर प्रदेश, बदतर प्रदेश
एक गली कानपुर की (उपन्यास) - सुधीर मौर्य
मुक्कमल ख़ामोशी रही थी।
कुछ देर शांत
बैठे रहने के
बाद संदीप उठा
अपने हाथो से उसने
बच्चे के चेहरे
से कपडा हटाया,
सिर्फ कुछ
पल निहारा था
उसे और फिर के
कमरे से वो
बहार चला गया। कुदरत, श्रृष्टि सबसे
बड़े शाहकार हैं उसने
अजूबे को दिया था।
में जो पल्लवी
के साथ जिस्मानी
तौर पर कभी सोया
था। जिसने कभी
उसे सम्पूर्ण देखा था
उससे पैदा हुए
बच्चे की शक्ल
मेरी थी। -क्या यही आत्मा
का प्यार था। -इश्क रूहों का। -मिलन के मन
के हिलोरों का। उपन्यास 'एक गली
कानपुर की ' का
अंश सुधीर मौर्य
झूठे,धोखेबाज और ढोंगी भी हैं मनमोहन-ब्रज की दुनिया
मित्रों,जब वर्ष 2004 में लोकसभा चुनावों के बाद इटली से आयातित
कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी ने परम-त्यागमयी महिला होने का परिचय देते
हुए तब तक ईमानदार,सज्जन और गैरराजनैतिक माने जाने वाले अर्थशास्त्री डॉ.
मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाया तब पूरे भारत की जनता को लगा कि अब
भारतीय अर्थव्यवस्था को पंख लगने के दिन आ गए हैं। वर्ष 2004 से वर्ष 2009
तक उनकी पहली पारी में देश की जीडीपी लगातार तेज रफ्तार में दौड़ती रही
लेकिन जैसे ही दूसरी पारी शुरू हुई देश के विकास को न केवल ब्रेक लग गया
बल्कि वो रिवर्स गियर में द्रुत गति से चलने लगा। धीरे-धीरे जैसे-जैसे वक्त
गुजरा एक-एक करके एक से बढ़कर एक महाघोटाले सामने आने लगे और माननीय
मनमोहन सिंह के चेहरे पर की गई ईमानदारी और सज्जनता की सुनहरी कलई उतरने
लगी और आज स्थिति यह है कि उनका चेहरा जनता की नजरों में पूरी तरह से स्याह
पड़ चुका है।
मित्रों,भारतीय रुपये की तरह मात्र चार वर्षों में मनमोहन सिंह की छवि का भारी और तीव्र गति से अवमूल्यन हुआ है और अब कुछ भी पर्दे में नहीं रह गया है। सबकुछ दुनिया के सामने आ गया है। आज की तारीख में हमारे देश के कथित प्रधानमंत्री जी काफी दुःखी हैं। उनको देश की बदहाल हालत बिल्कुल भी परेशान नहीं कर रही है वे तो सिर्फ इसलिए दुःखी हैं कि संसद में विपक्ष उनको चोर क्यों कह रहा है? उधर विपक्ष भी उनके ऐतराज पर ऐतराज जताते हुए उनसे पूछ रहा है कि चोर को चोर न कहें तो क्या कहें? गलती दोनों तरफ से बराबर की हो रही है। मनमोहन को तो परेशान होने के बदले खुश होना चाहिए कि उनको विपक्ष द्वारा चोर के साथ-साथ झूठा,मक्कार,भ्रष्ट,ढोंगी,धोखेबाज,गैरजिम्मेदार इत्यादि नहीं कहा जा रहा है जबकि कायदे से वे इन विशेषणों से विभूषित हो सकने की योग्यता बहुत समय पहले ही अर्जित कर चुके हैं।
मित्रों,वहीं विपक्ष को भी मनमोहन सिंह जी को कम करके नहीं आँकना चाहिए और सिर्फ चोर नहीं कहना चाहिए। आखिर उन्होंने काफी मेहनत करके दर्जनों घोटाले करवाए। फिर फाइलें गायब करवाईं या जलवाईं और बिडंबना यह है कि उनके इन महान कार्यों में पानी की तरह पसीना बहाने के बाद भी उनकी महानता को विपक्ष कम करके बता रहा है। क्या विपक्ष भूल गया है कि अब मनमोहन सिंह कितनी खूबसूरती से झूठ बोल लेते हैं और मिनटभर में बेझिझक ए.राजा,अश्विनी कुमार,बंसल और कलमाड़ी को पाक-साफ बता देते हैं? क्या विपक्ष को यह भी याद नहीं कि मनमोहन सिंह आज भी किस तरह चेहरे पर उदासी ओढ़कर खुद के देश और अपने कर्त्तव्यों के प्रति ईमानदार होने का ढोंग कर लेते हैं?
मित्रों,कई बार इन्सान से गलतियाँ हो जाया करती हैं। फिर भी विपक्ष का यह अपराध तो अक्षम्य है कि उसने नारे लगाते समय महान मनमोहन के इस गुण को पूरी तरह से अनदेखा कर दिया कि वे किस अदा और बेशर्मी से सर्वोच्च न्यायालय,सीएजी,आरबीआई इत्यादि महत्त्वपूर्ण संस्थाओं पर अपनी संवैधानिक जिम्मेदारी नहीं निभाने और लक्ष्मण-रेखा पार करने का आरोप लगाते रहे हैं। मानो उनकी सरकार की विफलता के लिए वे नहीं ये संस्थाएँ ही जिम्मेदार हों। मनमोहन सिंह की गैर-जिम्मेदारी का इससे बड़ा प्रमाण और क्या हो सकता है कि उनके मंत्रालय से फाइलें गायब हो जाती हैं और वे संसद में फरमाते हैं कि मैंने फाइलों की सुरक्षा का ठेका नहीं ले रखा है? अगर वे ऐसा कहते हैं तो इसमें कोई आश्चर्य की बात भी नहीं है क्योंकि जहाँ तक मैं समझता हूँ कि श्री मनमोहन सिंह जी ने सपने में भी कभी खुद को भारत का प्रधानमंत्री समझा ही नहीं है बल्कि उन्होंने तो खुद को सिर्फ सोनिया गांधी का प्रधानमंत्री समझा और लगातार अपने भाषणों में बस यही दोहराते रहे कि देश में यह होना चाहिए और ऐसे होना चाहिए। अगर वे खुद को भारत का प्रधानमंत्री समझते तो उनकी भाषा कुछ इस तरह होती कि मैं यह करूंगा और ऐसे करूंगा,मैंने यह किया और ऐसे किया। मनमोहन कहते रहे कि अच्छा होना चाहिए और स्वयं करते रहे बुरा। मनमोहन के जहाँ तक चोर होने का सवाल है तो वे चोर तो हैं ही और कोई मामूली चोर नहीं हैं। उन्होंने भारत के सभी देशप्रेमियों की नींद और चैन एकसाथ चुरा ली है। मैं चुनौती देता हूँ कि है दुनिया की किसी भी खुफिया एजेंसी में दम तो उनके द्वारा दिनदहाड़े चोरी की गई इन अमूल्य वस्तुओं को बरामद करके बताए।
मित्रों,मैं अंत में विपक्ष से निवेदन करता हूँ कि उनको मनमोहन सिंह से तहेदिल से माफी मांगनी चाहिए क्योंकि उसने हमारे हरफनमौला कथित पीएम को सिर्फ चोर कहने का गंभीर अपराध किया है। जबकि देश की जनता उनको चोर के साथ-साथ झूठा,भ्रष्ट,ढोंगी,धोखेबाज,मक्कार और गैरजिम्मेदार भी मान चुकी है तो फिर विपक्ष को किसने यह अधिकार दे दिया कि वो महान शैतानावतार मनमोहन सिंह को अंडरस्टीमेट करे और ऐसा करके अपमानित करे? दुनिया में कृत्रिम बुद्धि से युक्त पहले यंत्र-मानव मनमोहन सिंह जी को यह शिकायत भी है कि संसार में सिर्फ भारत में भी संसद के बेल में आकर विपक्ष प्रधानमंत्री चोर है का नारा लगाता है। मैं उनसे अर्ज करता हूँ कि प्यारे मनमोहन आपको तो खुश होना चाहिए कि आप भारत जैसे मुर्दादिल और नपुंसक देश के प्रधानमंत्री हैं वरना अगर आप किसी यूरोपीय देश के प्रधानमंत्री होते और आपने वहाँ वैसे ही और उतने ही महान कार्य किए होते जितने कि भारत में किए हैं तो उस देश की जनता अपने घरों में बैठी नहीं रहती और सड़कों पर उतरकर आपके घर समेत पूरी दिल्ली को कई साल पहले घेर चुकी होती और फिर आप चार साल तो क्या चार दिन के लिए भी प्रधानमंत्री की कुर्सी पर नहीं रह पाते और पिछले कई सालों से अपने प्रायोजक गांधी परिवार और अपने अधिकांश मंत्रिमंडल के साथ तिहाड़ जेल में अपने करकमलों से मुलायम-मुलायम रोटियाँ तोड़ रहे होते।
मित्रों,भारतीय रुपये की तरह मात्र चार वर्षों में मनमोहन सिंह की छवि का भारी और तीव्र गति से अवमूल्यन हुआ है और अब कुछ भी पर्दे में नहीं रह गया है। सबकुछ दुनिया के सामने आ गया है। आज की तारीख में हमारे देश के कथित प्रधानमंत्री जी काफी दुःखी हैं। उनको देश की बदहाल हालत बिल्कुल भी परेशान नहीं कर रही है वे तो सिर्फ इसलिए दुःखी हैं कि संसद में विपक्ष उनको चोर क्यों कह रहा है? उधर विपक्ष भी उनके ऐतराज पर ऐतराज जताते हुए उनसे पूछ रहा है कि चोर को चोर न कहें तो क्या कहें? गलती दोनों तरफ से बराबर की हो रही है। मनमोहन को तो परेशान होने के बदले खुश होना चाहिए कि उनको विपक्ष द्वारा चोर के साथ-साथ झूठा,मक्कार,भ्रष्ट,ढोंगी,धोखेबाज,गैरजिम्मेदार इत्यादि नहीं कहा जा रहा है जबकि कायदे से वे इन विशेषणों से विभूषित हो सकने की योग्यता बहुत समय पहले ही अर्जित कर चुके हैं।
मित्रों,वहीं विपक्ष को भी मनमोहन सिंह जी को कम करके नहीं आँकना चाहिए और सिर्फ चोर नहीं कहना चाहिए। आखिर उन्होंने काफी मेहनत करके दर्जनों घोटाले करवाए। फिर फाइलें गायब करवाईं या जलवाईं और बिडंबना यह है कि उनके इन महान कार्यों में पानी की तरह पसीना बहाने के बाद भी उनकी महानता को विपक्ष कम करके बता रहा है। क्या विपक्ष भूल गया है कि अब मनमोहन सिंह कितनी खूबसूरती से झूठ बोल लेते हैं और मिनटभर में बेझिझक ए.राजा,अश्विनी कुमार,बंसल और कलमाड़ी को पाक-साफ बता देते हैं? क्या विपक्ष को यह भी याद नहीं कि मनमोहन सिंह आज भी किस तरह चेहरे पर उदासी ओढ़कर खुद के देश और अपने कर्त्तव्यों के प्रति ईमानदार होने का ढोंग कर लेते हैं?
मित्रों,कई बार इन्सान से गलतियाँ हो जाया करती हैं। फिर भी विपक्ष का यह अपराध तो अक्षम्य है कि उसने नारे लगाते समय महान मनमोहन के इस गुण को पूरी तरह से अनदेखा कर दिया कि वे किस अदा और बेशर्मी से सर्वोच्च न्यायालय,सीएजी,आरबीआई इत्यादि महत्त्वपूर्ण संस्थाओं पर अपनी संवैधानिक जिम्मेदारी नहीं निभाने और लक्ष्मण-रेखा पार करने का आरोप लगाते रहे हैं। मानो उनकी सरकार की विफलता के लिए वे नहीं ये संस्थाएँ ही जिम्मेदार हों। मनमोहन सिंह की गैर-जिम्मेदारी का इससे बड़ा प्रमाण और क्या हो सकता है कि उनके मंत्रालय से फाइलें गायब हो जाती हैं और वे संसद में फरमाते हैं कि मैंने फाइलों की सुरक्षा का ठेका नहीं ले रखा है? अगर वे ऐसा कहते हैं तो इसमें कोई आश्चर्य की बात भी नहीं है क्योंकि जहाँ तक मैं समझता हूँ कि श्री मनमोहन सिंह जी ने सपने में भी कभी खुद को भारत का प्रधानमंत्री समझा ही नहीं है बल्कि उन्होंने तो खुद को सिर्फ सोनिया गांधी का प्रधानमंत्री समझा और लगातार अपने भाषणों में बस यही दोहराते रहे कि देश में यह होना चाहिए और ऐसे होना चाहिए। अगर वे खुद को भारत का प्रधानमंत्री समझते तो उनकी भाषा कुछ इस तरह होती कि मैं यह करूंगा और ऐसे करूंगा,मैंने यह किया और ऐसे किया। मनमोहन कहते रहे कि अच्छा होना चाहिए और स्वयं करते रहे बुरा। मनमोहन के जहाँ तक चोर होने का सवाल है तो वे चोर तो हैं ही और कोई मामूली चोर नहीं हैं। उन्होंने भारत के सभी देशप्रेमियों की नींद और चैन एकसाथ चुरा ली है। मैं चुनौती देता हूँ कि है दुनिया की किसी भी खुफिया एजेंसी में दम तो उनके द्वारा दिनदहाड़े चोरी की गई इन अमूल्य वस्तुओं को बरामद करके बताए।
मित्रों,मैं अंत में विपक्ष से निवेदन करता हूँ कि उनको मनमोहन सिंह से तहेदिल से माफी मांगनी चाहिए क्योंकि उसने हमारे हरफनमौला कथित पीएम को सिर्फ चोर कहने का गंभीर अपराध किया है। जबकि देश की जनता उनको चोर के साथ-साथ झूठा,भ्रष्ट,ढोंगी,धोखेबाज,मक्कार और गैरजिम्मेदार भी मान चुकी है तो फिर विपक्ष को किसने यह अधिकार दे दिया कि वो महान शैतानावतार मनमोहन सिंह को अंडरस्टीमेट करे और ऐसा करके अपमानित करे? दुनिया में कृत्रिम बुद्धि से युक्त पहले यंत्र-मानव मनमोहन सिंह जी को यह शिकायत भी है कि संसार में सिर्फ भारत में भी संसद के बेल में आकर विपक्ष प्रधानमंत्री चोर है का नारा लगाता है। मैं उनसे अर्ज करता हूँ कि प्यारे मनमोहन आपको तो खुश होना चाहिए कि आप भारत जैसे मुर्दादिल और नपुंसक देश के प्रधानमंत्री हैं वरना अगर आप किसी यूरोपीय देश के प्रधानमंत्री होते और आपने वहाँ वैसे ही और उतने ही महान कार्य किए होते जितने कि भारत में किए हैं तो उस देश की जनता अपने घरों में बैठी नहीं रहती और सड़कों पर उतरकर आपके घर समेत पूरी दिल्ली को कई साल पहले घेर चुकी होती और फिर आप चार साल तो क्या चार दिन के लिए भी प्रधानमंत्री की कुर्सी पर नहीं रह पाते और पिछले कई सालों से अपने प्रायोजक गांधी परिवार और अपने अधिकांश मंत्रिमंडल के साथ तिहाड़ जेल में अपने करकमलों से मुलायम-मुलायम रोटियाँ तोड़ रहे होते।
28.8.13
गलत उपाय से राष्ट्र का बदहाल
गलत उपाय से राष्ट्र का बदहाल
आचार्य चाणक्य ने सूत्र दिया था कि-" जैसे भूख मिटाने के लिए बालुका रेत को
उबालना निरर्थक होता है उसी प्रकार गलत उपायों से राष्ट्र की उन्नती का
सपना सच नहीं होता है।"
"राजा का कर्तव्य है कि वह राजलक्ष्मी की सुरक्षा चोरो और राजसेवकों से करता
रहे।"
अगर देश की सरकार ने इन सूत्रों का पालन किया होता तो आज हमारे राष्ट्र की
यह आर्थिक दुर्दशा नहीं हुई होती ,मगर राष्ट्र की जगह राजा अपने समूह का हित
साधने लग जाए तो स्थिति विकट होनी ही थी और हुई भी। …
पिछले सालों में अर्थशास्त्री गलत नीतियाँ लाते ही गए ,उधारवाद की कुनीति से
सब बंटाधार हो गया ,हम उधार के पैसों से अपने को चमकता हुआ दिखलाना
चाहते थे ,चाणक्य ने ऋण,शत्रु और रोग को पूर्णतया खत्म करने की नीति बताई
और हमने ऋण लेकर उसको चोरों के, लुटेरों के हवाले कर दिया ,नतीजा देश का
धन विदेशी बैंको में काला होकर सड़ रहा है और हम बेबस हैं।
हमने अपने ही सरकारी उद्योगों को ठन्डे कलेजे से नीजी हाथों में बेचा और अपनी
पीठ ठोकते रहे ,अब जब सब कुछ कोडियों के मोल बिक गया तो असल तस्वीर
नंगी हो गयी और हम फकीर नजर आने लगे ,जिन महापुरुषों ने जो सम्पति बनायी
उसे बेचकर हम राष्ट्र निर्माण का सपना देखने लगे ! अजीब मुर्खता थी यह …
हमने गुलाम रहकर उसके दुष्परिणाम भोग कर भी कुछ नहीं सिखा ,जिस ईस्ट इण्डिया
कम्पनी के कारण हम गुलाम हुए ,हमने उसके पुरे कबिले को न्योता दे दिया कि
वह भारत में आयें वे निवेशक के रूप में आये भी और भारतीय कम्पनियों के शेयरों
को सस्ते में खरीद कर रख लिया ,हमने उस समय कहा की देखो ,देश की तिजोरी
डॉलर से छलका दी है … हम अपनी मुर्खता का ढोल पीट कर गुणगान करते रहे
और देशवासियों को बरगलाते रहे। कुछ साल बाद वे विदेशी निवेशक कम दाम में
ख़रीदे शेयर ऊँचे दाम में हमको ही बेचकर उड़ने लगे और हम वापिस वहीँ आ गये
जहाँ थे और जेब कब खाली हो गई ,पता ही नहीं चला।
हमने रिटेल में भी विदेशी लुटेरों को निवेशक बनाकर न्योता दिया ,वो अभी नहीं आ रहे
हैं क्योंकि वो जानते हैं कंगाल से दोस्ती करने पर बुरा हश्र होता है मगर वो उस
समय जरुर आयेंगे जब हम भारतीय पसीना बहा कर सम्पन्न हो जायेंगे और वो हमें
पुन: लूट कर चल पड़ेंगे।
हमने मुक्त व्यापार की नीति को अपनाया जबकि हमने अपनी ताकत और कमजोरियों
को नहीं जाँचा और नतीजा ये हुआ कि हम जिनको निर्यात करना चाहते थे वे देश
हमें निर्यात करके चले गए ,नतीजा देश का कुटीर ,लघु,मध्यम उद्योग लकवाग्रस्त
हो गया, सब कुछ ढेर … और हम कहते हैं कि इसे ही प्रतिस्पर्धा कहते हैं ।
हमने वितरण क्षेत्र में लीकेज वाली नीतियाँ बनायी ,जानबूझ कर। तब के प्रधान
कहते थे दिल्ली से चला रुपया गरीब के पास दो आन्ने बन कर पहुँचता है ,जब यह
सब जानते थे तो क्यों लीकेज बंद नहीं किये गए ,शायद गरीबों के नाम को आगे
रख कर कुछ स्वार्थी तत्वों के पेट भरने का मकसद रहा होगा ,और उन नीतियों का
परिणाम यह रहा कि गरीब और गरीब हो गया और धन को जोंक और साँपों ने डस
लिया।
सरकार भूखी, लाचार, निराश, महंगाई से त्रस्त जनता के सामने भारत निर्माण के
सपने परोस रही है। जनता यह समझ ही नहीं पा रही है कि निर्माण किसका हो रहा
है ,उसकी थाली में रोटी की संख्या हर दिन कम होती जा रही है …।
सरकार अपनी गलत नीतियों का दोष दुसरो पर थोपना चाहती है ताकि भेड़ें उसका
अनुकरण करती रहे और जो दोषी नहीं है उसे ही अपराधी मानती रहे …. मगर
त्रस्त प्रजा का रोष कितना भयंकर होगा यह भविष्य में छिपा है …।
आचार्य चाणक्य ने सूत्र दिया था कि-" जैसे भूख मिटाने के लिए बालुका रेत को
उबालना निरर्थक होता है उसी प्रकार गलत उपायों से राष्ट्र की उन्नती का
सपना सच नहीं होता है।"
"राजा का कर्तव्य है कि वह राजलक्ष्मी की सुरक्षा चोरो और राजसेवकों से करता
रहे।"
अगर देश की सरकार ने इन सूत्रों का पालन किया होता तो आज हमारे राष्ट्र की
यह आर्थिक दुर्दशा नहीं हुई होती ,मगर राष्ट्र की जगह राजा अपने समूह का हित
साधने लग जाए तो स्थिति विकट होनी ही थी और हुई भी। …
पिछले सालों में अर्थशास्त्री गलत नीतियाँ लाते ही गए ,उधारवाद की कुनीति से
सब बंटाधार हो गया ,हम उधार के पैसों से अपने को चमकता हुआ दिखलाना
चाहते थे ,चाणक्य ने ऋण,शत्रु और रोग को पूर्णतया खत्म करने की नीति बताई
और हमने ऋण लेकर उसको चोरों के, लुटेरों के हवाले कर दिया ,नतीजा देश का
धन विदेशी बैंको में काला होकर सड़ रहा है और हम बेबस हैं।
हमने अपने ही सरकारी उद्योगों को ठन्डे कलेजे से नीजी हाथों में बेचा और अपनी
पीठ ठोकते रहे ,अब जब सब कुछ कोडियों के मोल बिक गया तो असल तस्वीर
नंगी हो गयी और हम फकीर नजर आने लगे ,जिन महापुरुषों ने जो सम्पति बनायी
उसे बेचकर हम राष्ट्र निर्माण का सपना देखने लगे ! अजीब मुर्खता थी यह …
हमने गुलाम रहकर उसके दुष्परिणाम भोग कर भी कुछ नहीं सिखा ,जिस ईस्ट इण्डिया
कम्पनी के कारण हम गुलाम हुए ,हमने उसके पुरे कबिले को न्योता दे दिया कि
वह भारत में आयें वे निवेशक के रूप में आये भी और भारतीय कम्पनियों के शेयरों
को सस्ते में खरीद कर रख लिया ,हमने उस समय कहा की देखो ,देश की तिजोरी
डॉलर से छलका दी है … हम अपनी मुर्खता का ढोल पीट कर गुणगान करते रहे
और देशवासियों को बरगलाते रहे। कुछ साल बाद वे विदेशी निवेशक कम दाम में
ख़रीदे शेयर ऊँचे दाम में हमको ही बेचकर उड़ने लगे और हम वापिस वहीँ आ गये
जहाँ थे और जेब कब खाली हो गई ,पता ही नहीं चला।
हमने रिटेल में भी विदेशी लुटेरों को निवेशक बनाकर न्योता दिया ,वो अभी नहीं आ रहे
हैं क्योंकि वो जानते हैं कंगाल से दोस्ती करने पर बुरा हश्र होता है मगर वो उस
समय जरुर आयेंगे जब हम भारतीय पसीना बहा कर सम्पन्न हो जायेंगे और वो हमें
पुन: लूट कर चल पड़ेंगे।
हमने मुक्त व्यापार की नीति को अपनाया जबकि हमने अपनी ताकत और कमजोरियों
को नहीं जाँचा और नतीजा ये हुआ कि हम जिनको निर्यात करना चाहते थे वे देश
हमें निर्यात करके चले गए ,नतीजा देश का कुटीर ,लघु,मध्यम उद्योग लकवाग्रस्त
हो गया, सब कुछ ढेर … और हम कहते हैं कि इसे ही प्रतिस्पर्धा कहते हैं ।
हमने वितरण क्षेत्र में लीकेज वाली नीतियाँ बनायी ,जानबूझ कर। तब के प्रधान
कहते थे दिल्ली से चला रुपया गरीब के पास दो आन्ने बन कर पहुँचता है ,जब यह
सब जानते थे तो क्यों लीकेज बंद नहीं किये गए ,शायद गरीबों के नाम को आगे
रख कर कुछ स्वार्थी तत्वों के पेट भरने का मकसद रहा होगा ,और उन नीतियों का
परिणाम यह रहा कि गरीब और गरीब हो गया और धन को जोंक और साँपों ने डस
लिया।
सरकार भूखी, लाचार, निराश, महंगाई से त्रस्त जनता के सामने भारत निर्माण के
सपने परोस रही है। जनता यह समझ ही नहीं पा रही है कि निर्माण किसका हो रहा
है ,उसकी थाली में रोटी की संख्या हर दिन कम होती जा रही है …।
सरकार अपनी गलत नीतियों का दोष दुसरो पर थोपना चाहती है ताकि भेड़ें उसका
अनुकरण करती रहे और जो दोषी नहीं है उसे ही अपराधी मानती रहे …. मगर
त्रस्त प्रजा का रोष कितना भयंकर होगा यह भविष्य में छिपा है …।
27.8.13
ek nayee kavita
आधी रात को दिखते हैं बाबूजी
बिलकुल बाबूजी की तरह
पट्टे के पाजामे और कई छेदों वाली
पीली सी बनियान में
हाथ कमर के पीछे बांधे
वो तेज तेज नापते
छोटे से बरामदे की सरहद बुदबुदाते हुए
मुन्ना क्यों नहीं लौटा अब तक ?
आज मांगना ही है शादी के लिए गहना-रूपया
आखिर वही तो है बडकी का इकलौता भैया ....
...अम्मा तो अक्सर दिखती है
बाबूजी के पैर दबाती
दीदी की शादी की बात चलाती
सहसा किसी बात पर
दोनों के बीच पसरता सन्नाटा
सीलिंग फैन की चिचियाती आवाज़
ढँक लेती सिसकियाँ
फिर आँखें पोंछती अम्मा
ठाकुरजी की ओर जाती दिखती है
और मेरी आँखों के कोरों से
कोई टीस पिघलती है ....
आधी रातों के खाबों की
यही बात एक अखरती है
भूलने वाली मामूली यादें
बार-बार उभरती हैं
-विवेक मृदुल
बिलकुल बाबूजी की तरह
पट्टे के पाजामे और कई छेदों वाली
पीली सी बनियान में
हाथ कमर के पीछे बांधे
वो तेज तेज नापते
छोटे से बरामदे की सरहद बुदबुदाते हुए
मुन्ना क्यों नहीं लौटा अब तक ?
आज मांगना ही है शादी के लिए गहना-रूपया
आखिर वही तो है बडकी का इकलौता भैया ....
...अम्मा तो अक्सर दिखती है
बाबूजी के पैर दबाती
दीदी की शादी की बात चलाती
सहसा किसी बात पर
दोनों के बीच पसरता सन्नाटा
सीलिंग फैन की चिचियाती आवाज़
ढँक लेती सिसकियाँ
फिर आँखें पोंछती अम्मा
ठाकुरजी की ओर जाती दिखती है
और मेरी आँखों के कोरों से
कोई टीस पिघलती है ....
आधी रातों के खाबों की
यही बात एक अखरती है
भूलने वाली मामूली यादें
बार-बार उभरती हैं
-विवेक मृदुल
जिला मुख्यालय की सीट से टिकिट के लिये इंका और भाजपा में मची भारी घमासान से राजनैतिक हल्कों में सरगर्मी बढ़ी
जिला मुख्यालय की राजनैतिक रूप से सर्वाधिक मूहत्वपूर्ण सिवनी विधानसभा सीट के लिये टिकिट की मारामारी कांग्रेस और भाजपा में तेज हो गया हैं। पिछले पांच चुनावों से भाजपा इस सीट से जीत रही है। इसलिये भाजपा नेताओं का मानना है कि सिर्फ टिकिट मिल जाये जीतना तो सुनिश्चित है ही। जिले की कांग्रेसी राजनीति में केन्द्रीय मंत्री कमलनाथ का सीधा हस्तक्षेप बढ़ गया है इसीलिये राजनैतिक जानकारों का मानना है कि जिले में कांग्रेस की चुनावी रणनीति में होने ंवाला आमूल चूल परिवर्तन भाजपा की डगर आसान नहीं रहने देगा और जिले चारों विस क्षेत्रों में बिना कठिन परिश्रम किये जीतना संभव नहीं होगा। कांग्रेस भी टिकिट की लड़ायी में उलझी हुयी हैं। राहुल गांधी के नेतृत्व में टिकटार्थियों के लिये बनाये गये मानदंड़ और टिकिट का आवेदन लगाने वालों से मांगी गयी जानकारियों के कारण समीकरण काफी उलझ गये है। वैसे कांग्रेस इस द्वोत्र से 1990 से चुनाव हार रही हैं। लेकिन यह भी राजनैतिक रूप से कम महत्वपूर्ण बात नहीं है कि इस क्षेत्र से टिकिट मांगने वालों की संख्या में कोई कमी नहीं आ रही है। इस बार कांग्रेस और भाजपा के आलाकमान ने टिकिट देने की प्रक्रिया निर्धारित की है उससे एक बात तो हुयी है कि चुनाव लड़नें इच्छुक नेता जो मंड़ल या ब्लाक के पदाधिकारियों को अपने आधीन समझते थे उन्हें अपनी ही टिकिट ले लिये उनके दर पर पहुंचना पड़ रहा है।
आयती जीत की संभावना नहीं फिर भी मची भाजपा में होड़ -जिला मुख्यालय की राजनैतिक रूप से सर्वाधिक मूहत्वपूर्ण सिवनी विधानसभा सीट के लिये टिकिट की मारामारी कांग्रेस और भाजपा में तेज हो गया हैं। पिछले पांच चुनावों से भाजपा इस सीट से जीत रही है। इसलिये भाजपा नेताओं का मानना है कि सिर्फ टिकिट मिल जाये जीतना तो सुनिश्चित है ही।इस क्षेत्र से दो बार स्व. महेश शुक्ला, दो बार नरेश दिवाकर चुने गये और वर्तमान में नीता पटेरिया भाजपा से विधायक है। भाजपा में टिकिट के लिये इस बार नीता और नरेश के अलावा पालिका अध्यक्ष राजेश त्रिवेदी भी दावेदार के रूप में उभर कर सामने आयें है।लेकिन कार्यकर्त्ताओं एक वर्ग ने ब्राम्हण बनिया विरोधी मोर्चा खोल रखा है। क्षेत्र के कार्यकर्त्ता सम्मेलन में यह मुहिम जोरदार तरीके से चली भी थी। इसके बाद भाजपा में अब यह चर्चित हे गया है कि चौथा कौन? चौथा कौन की चर्चा चालू होते ही पूर्व मंत्री स्व. महेश शुक्ला कि पुत्र अखिलेश शुक्ला एवं पूर्व जिला भाजपा अध्यक्ष द्वय प्रमोद कुमार जैन कंवर साहब,सुदर्शन बाझल एवं सुजीत जैन के नामों की चर्चा भी चाले हो गयी हैं। लेकिन ये सभी संभावित नाम भी ब्राम्हण एवं बनिया वर्ग से ही हैं। इन वर्गों के विरोध में मुहिम चलाने वाला तबका अपनी ओर से किसी सशक्त दावेदार का नाम आम सहमति से सामने नहीं ला पाया है। वैसे राजेन्द्रसिंह बघेल,नरेन्द्र टांक, घासीराम सनोड़िया, राजेश उपाध्याय,ज्ञानचंद सनोड़िया आदि नेताओं के नाम भी दावेदारों के रूप में सामने आ रहें है। इनमें से कौन बाजी मार लेगा? इस पर कुछ कहा नहीं जा सकता है लेकिन इस बार का चुनाव पिछले चुनावों जैसा नहीं होगा यह बात भाजपा आलाकमान भी जानता है कि सिवनी क्षेत्र में भाजपा को बिना कमर कस कर चुनाव लड़े आयती जीत नहीं मिलने वाली हैं। जिले के कांग्रेस के पुरोधा हरवंश सिंह के आकस्मिक निधन के बाद जिले की कांग्रेसी राजनीति में केन्द्रीय मंत्री कमलनाथ का सीधा हस्तक्षेप बढ़ गया है इसीलिये राजनैतिक जानकारों का मानना है कि जिले में कांग्रेस की चुनावी रणनीति में होने ंवाला आमूल चूल परिवर्तन भाजपा की डगर आसान नहीं रहने देगा और जिले चारों विस क्षेत्रों में बिना कठिन परिश्रम किये जीतना संभव नहीं होगा।
सिवनी क्षेत्र से कांग्रेस में भी मची है घमासान-कांग्रेस भी टिकिट की लड़ायी में उलझी हुयी हैं। एक तरफ तो राहुल गांधी के नाम पर राजा बघेल की टिकिट काफी पहले से सुनिश्चित मानी जा रही थी। लेकिन टिकिट की कवायत चालू होने के बाद बहुत सारा पानी बैनगंगा के पुल के नीचे से बह चुका है। राहुल गांधी के नेतृत्व में टिकटार्थियों के लिये बनाये गये मानदंड़ और टिकिट का आवेदन लगाने वालों से मांगी गयी जानकारियों के कारण समीकरण काफी उलझ गयें हैं। वैसंे तो कांग्रेस में 38 लोगों ने टिकिट मांगी थी लेकिन अनुशासनहीनता के आरोपों के चलते जिले के उपाध्यक्ष खुमान सिंह के निष्कासन के बाद यह संख्या अब 37 रह गयी है। कांग्रेस के प्रमुख दावेदारों में राजकुमार खुराना,नेहा सिंह,दिलीप बघेल,रमेश जैन, मोहन चंदेल, चंद्रभान सिंह बघेल,ठा. धमेन्द्र सिंह के अलावा अल्पसंख्यक नेताओं में जकी अनवर, सुहेल पाशा, असलम भाई,आरिफ पटेल,साबिर अंसारी प्रमुख हैं। वैसे कांग्रेस इस द्वोत्र से 1990 से चुनाव हार रही हैं। लेकिन यह भी राजनैतिक रूप से कम महत्वपूर्ण बात नहीं है कि इस क्षेत्र से टिकिट मांगने वालों की संख्या में कोई कमी नहीं आ रही है। हाल ही में प्रदेश कांग्रेस के निर्देश पर इस क्षेत्र में कांग्रेस संदेश यात्रा भी प्रारंभ हो गयी हैं। 24 अगस्त से प्ररंभ यह यात्रा 30 अगस्त चलेगी। इस यात्रा में सभी संबंधित ब्लाक कांग्रेस के पदाधिकारी एवं टिकटार्थी शामिल हो रहें हैं। इस यात्रा के दौरान कांग्रेस नेता एक फोल्डर के माध्यम से कांग्रेस की केन्द्र सरकार की उपलब्धि और भाजपा की प्रदेश सरकार की पोल भी खोल रहें है। कांग्रेस में एक यह मांग भी जबरदस्त तरीके से उठ रही है कि इस बार सिवनी या केवलारी क्षेत्र से मुस्लिम नेता को टिकिट दी जाये। राहुल गांधी की गाइड लाइन,कांग्रेस के पर्यवेक्षकों की कवायत एवं नव नियुक्त प्रदेश प्रभारी मोहनप्रकाश के सख्त निर्देशों के चलते किसे टिकिट मिली है यह तो अभी नहीं कहा जा सकता लेकिन इतना जरूर है कि अच्छे उम्मीदवार को टिकिट और कांग्रेसी यदि एक रहे तो भाजपा के लियें सीट गंवाने का खतरा भी हो सकता है।
तो कांग्रेस और भाजपा में उत्साह का संचार तो हो ही जायेगा-इस बार कांग्रेस और भाजपा के आलाकमान ने टिकिट देने की प्रक्रिया निर्धारित की है उससे एक बात तो हुयी है कि चुनाव लड़नें इच्छुक नेता जो मंड़ल या ब्लाक के पदाधिकारियों को अपने आधीन समझते थे उन्हें अपनी ही टिकिट ले लिये उनके दर पर पहुंचना पड़ रहा है। राहुल गांधी के भोपाल प्रवास के दौरान अधिकांश पदाधिकारियों ने उन्हें महत्व ना मिलने की बात की थी। राहुल गांधी के निर्देश पर कांग्रेस पर्यवेक्षकों ने इस बार ब्लाक कांग्रेस कमेटी से भी सुझाव मांगे तथा तीन तीन नाम प्रस्तावित करने को कहा। इससे यह हुआ कि अपने आप को बहुत बड़ा नेता मानकर टिकिट मांगने वालों को अपनी मनुहार लेकर उनके दर तक जाना पड़ा। इसी तरह भाजपा में भी रायशुमारी देने का जिन कार्यकर्त्ताओं को अधिकार दिये गये हैं उनके पास अपनी जुगाड़ जमाने के लिये वर्तमान और भावी विधायक पहुंच रहें हैं।दोनों ही पार्टियों द्वारा इस प्रक्रिया को अपनाने से पार्टी के कार्यकर्त्ताओं की प्रतिक्रिया संतोषजनक देखी जा रही हैं। यदि वास्तव में इसी के आधार पर टिकटें बंटतीं हैं तो इससे कार्यकर्त्ताओं में उत्साह का संचार तो हों ही जायेगा।
“मुसाफिर“
सा. दर्पण झूठ ना बोले, सिवनी से साभार
27 अगस्त 2013
26.8.13
पाक की नापाक हरकतों का जवाब देने की वजहे - सुधीर मौर्य
पाकिस्तान के अवामी लीग के नेता का भारत को धमकी देना, उनका कहना की अगर भारत ने जंग छेड़ी तो फिर ना तो भारत के मंदिरों में कभी घंटियाँ बजेंगी और ना ही वहाँ (भारत) के मैदानों में कभी घास उगेगी। उनकी नापाक फितरत की सोच है। भारत को यकीनन उनके इस वक्तव्य को गंभीरता से लेना चाहिए। इतिहास गवाह है मुस्लिम सेनाओं ने इसी तरह के अपवित्र उदॆशय को लेकर हम पर कई हमले किये और कुछ काल के लिए उन्होंने अपनी धूर्तता से हमे हरा भी दिया। पर मंदिरों में घंटियाँ सतत बजती रहीं और भारत के मैदान घास से ही नहीं वरन फसलों से भी लहलहाते रहें। -
पाकिस्तान अपने नापाक उद्देश्य में कभी कामयाब नहीं होगा, इसका हमें यकीन है पर फिर भी उसके नेता की इस धमकी को कोरी धमकी न मान कर भारत को दुष्ट पकिस्तान की नाक में नकेल तुरंत कसनी ही चाहिए, उसे छठी का दूध याद दिलाना ही चाहिए। असल में तो भारत को पाकिस्तान की इस धमकी पर इस्लामाबाद में अपनी सेना भेजकर उचित प्रतुत्तर देना चाहिए था । -
सरहद पर घात लगाकर पाकिस्तानी सैनिक, भारतीय सैनिको की कायरतापूर्वक हत्या कर रह हैं, उनके सर काट रहे हैं। इन हालातों में भारत को डंके की चोट पर पाकिस्तान में घुसकर उसकी नापाक करतूतों के लिए उसे फ़ौरन सबक सिखाना चाहिए। -
पाकिस्तान में रह रहे हिन्दुओ पर अत्याचार दिनोदिन बढते जा रहें हैं। उनकी लड़कियों को जबरन उठाकर मुस्लिम बनाया जा रहा है, उनका बलात्कार किया जा रहा है। उन्हें जबरन मुस्लिम मर्दों की रखेल/बीवी बनाया जा रहा है। कट्टरपंथियों की इन हरकतों पर वहां की सरकार और न्यायपालिका आँखे मूंद कर बैठी है। पिछले साल एक हिन्दू लड़की रिंकल कुमारी को जबरन उठाकर उसके साथ बलात्कार किया गया और उसे उसकी बिना मर्ज़ी के मुस्लिम बना कर एक मुस्लिम गुंडे की बीवी/रखेल बना दिया गया। रिंकल वहां की सुप्रीम कोर्ट में चीख - चीख कर कहती रही की वो अपने मां
- बाप के पास जाना चाहती है, उसे जबरन मुस्लिम बनाया जा रहा है पर वहां के चीफ जस्टिस ने भी उसकी आवाज़ नहीं सुनी और उसे बलात्कारियों के हाथों में सौंप दिया। जहाँ वो नारकीय जीवन जीने को आज भी मजबूर है। रिंकल तो एक बानगी भर है ऐसी कितनी ही हिन्दू लड़कियां का वहां जबरन बलात्कार किया जा रहा है उसका कुछ हिसाब नहीं है। -
पाकिस्तान की इन हरकतों अब भारत को नज़रंदाज़ नहीं करना चाहिए। उस पर हमला करके उसकी धूर्तता की उचित - उचित सजा देनी चाहिए। रिंकल, सरहद पर मरते भारतीय सैनिकों की आत्मायो के साथ न्याय होगा जब अब पाकिस्तान में भारतीय सैनिकों के बूटों का संगीत गूंजेगा।
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सुधीर मौर्य 'सुधीर'
गंज जलालाबाद, उन्नाव - २ ० ९ ८ ६ ९