19.10.07

चाहता हूं गालियां अपने लिए भी

चाहता हूं गालियां अपने लिए भी
मैं भी जनरल बोगी की दुर्गंध में बैठ,
दुर्घटना का शिकार होना चाहता हूं,
चाहता हूं मैं भी भूख से बेहाल होकर-
कंकर पत्थर फांकना।
पहनकर घूमना चाहता हूं-
कपड़े के नाम पर-
एक चिथड़ी कमीज और निकर।
लेना चाहता हूं एक निशंक नींद-
चौराहे के फुटपाथ पर,
चाहता हूं मैं भी गरियाया जाऊं-
छुट्टी मांगने या,
चम्मच ठीक से साफ न कर पाने पर।
...और भी बहुत कुछ है जो-
मैं चाहता हूं खुद के लिए-
ताकि ठीक सकूं एक कविता-
इंसान की मजबूरी पर।

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