19.10.07

आसमान का स्वाद कैसा होता है

क्यों इन सपनों में रंग भर रहे हो चित्रकार
ये ऐसे ही थे धूसर बेरंग
क्यों इन कल्पनाओं को पंख दे रहे हो
ये उड़ना नहीं जानती


आसमान का स्वाद कैसा होता है
मैंने चखा नहीं
उड़ने का अहसास कैसा होता है
मैंने कभी छुआ नहीं

पर अब इच्छा है चित्रकार
मेरे सपनों में रंग भर दो
मैं भी सपने देखना चाहती हूं
मेरी कल्पनाओं को पंख दे दो
एक बार उड़ना चाहती हूं

जाना चाहती हूं दूर देस
जहां जी सकें सतरंगी सपने
सुंदर आत्माएं- तन और तृष्णा से मुक्त
विचरण करें अपने होने को
संपूर्णता में अभिव्यक्त करते


खिलखिल झिलमिल हिलमिल
बस कुछ ऐसे ही रंग हों
भाषा हो, रोशनी हो, संगीत हो
सब एक दूसरे में एकाकार होती हुईं
अपने अलग-अलग होने के वजूद को साबित करते हुए भी
होड़ करें मुक्ति के उस मन को छू लेने को
चूम लेने को
जिसके लिए तुम हो, मैं हूं, सब हैं..
आसमान का स्वाद, उड़ने का अहसास
पा लेने दो........उड़ जाने दो...दूर देस
-मीरा

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