एक मित्र हैं। वे आजकल ड्राई मंथ के दौर से गुजर रहे हैं। बिलकुल मुंह बंद कर लिया है। मसाला बंद। दारू बंद। गंदी बातें बंद। सिर्फ सच कहूंगा और सुनूंगा। इसके सिवा न कुछ लूंगा न दूंगा। वजह जाननी चाही तो बोले....पूरे साल नंगई करते हैं। जब जी चाहा मसाला और पान खाते हैं, शाम होते ही जब जी चाहा दारू, बीयर और व्हिस्की पीते हैं। शरीर के अंदर जो सिस्टम है न, यह सब झेलते झेलते पक चुका है। उसकी ओवरहालिंग जरूरी है। इसीलिए हिंदुओं में सावन का महीना आता है और मुस्लिमों में रोजे का महीना। इन महीनों में अगर हम दारू और मसाला नहीं छोड़ते हैं तो मुंह और पेट का कैंसर पक्का है। उनकी बात सुनकर लगा, सही कह रहे हैं। थोड़ा डरा मैं। मुझे सामने मौत नाचती नजर आई। यमराज दिखने लगे। जैसे उन्होंने आदेश दे दिया हो कि हे कैंसर भाइयों, यशवंत के पास पहुंचो। पीछे से मैं लाश के वास्ते लिखी बस लेकर आता हूं। मित्र की आवाज से मेरा दुःस्वप्न टूटा। उन्होंने मुझे डराना जारी रखते हुए बात को थोड़ा और विस्तार दिया और मेरे परेशान चेहरे की तरफ एकटम घूरते हुए आत्मविश्वास पूर्वक बोले....देखो, हर हफ्ते में एक दिन उपवास रखने का चलन क्यों है?? इसके पीछे धार्मिक रीजन इसलिए है क्योंकि साइंटिफिक बेस है। इसलिए ताकि इनर सिस्टम ठीक रहे। विषैली गैसें निकल जाएं। कोने-अंतरे में पड़े हुए पुराने टाइप के मल बाहर निकल आएं। साथ ही, हमारी उमर बढ़ जाए। यह साइंस में सिद्ध हो चुका है कि हफ्ते में एक दिन उपवास रखने वालों के मुकाबले रोज खाने वाले जल्दी मरते हैं। तो बंधु, यह सब चूतियापा एक महीने के लिए कैंसिल कर लो और बाकी ग्यारह महीने मन लगाकर हंगामा करो और मस्ती करो। उनकी बात सुनकर मैं अंदर से प्रभावित हुआ। मैंने अपने नास्तिक होने को मन ही मन गरियाना शुरु कर दिया...ये आस्तिक लोग तो मंगलवार और सावन आदि के नाम पर ड्राइ डे और ड्राइ मंथ मना लेते हैं जिससे उनका शरीर और अंदर का हाजमा फिट रहता है। अपुन लोग तो नास्तिक होने के बाद कउनो हनुमान जी और मंगल बेफे सावन रोजा को नहीं मानते। दिन चाहे दुर्गा जी का हो या हनुमान जी का, बकरा और दारू मिल जाए तो फिर क्या....हो जाता है यम-यम-चप-चप। लेकिन सही बात है, रोज-रोज एक ही काम करने से अंदर वाली मशीन तो कभी गड़बड़ा ही सकती है। देखो, कार की भी सर्विसिंग करानी पड़ती है। तो शरीर की सर्विसिंग भी जरूरी है। खैर, मुझे लगा कि मामला आस्तिक या नास्तिक का नहीं है, यह मामला विल पावर का है। कई ऐसे आस्तिक देखे हैं जो रोज हनुमान चलीसा पढ़ते हैं और शाम को लौंडियों को लाइन मारते हैं। चुपके से पैग लगाकर घर जाते हैं और पूछने पर बताते हैं कि होमियोपैथी की दवा खाई है। तो, बात आस्तिक नास्तिक की नहीं, विल पावर की है। खैर, सावन के कई दिन गुजर चुके हैं और मुझे देर से ही यह बात पता चली है (हालांकि मेरी पत्नी हर साल सावन में मुझे सुधारने की कोशिश करती है लेकिन बजाय मैं सुधरने के, उन्हें भी सावन में नानवेज खाने की आदत डाल दी है..... ऐसी पत्नियां सबको मिले) तो भी सावन के नाम पर नहीं बल्कि बढ़ती उम्र और खराब होते लीवर (अभी तक तो सलामत है, लेकिन अंदर का हाल कौन जाने?) के नाम एक महीने तक किसी भी तरह के मसाले और मदिरा और मांस से छुट्टी ले लेनी चाहिए। हालांकि कल रात तक व्हिस्की पी। छुट्टी का दिन था। बच्चों को लेकर घुमाने निकला। सबने कोल्ड ड्रिंक की फरमाइश की तो फौरन लाया। सबको कोल्ड ड्रिंक गिलास में उड़ेलकर दिया, अपनी वाली गिलास में ड्राइविंग सीट के नीचे रखे पव्वे का ढक्कन खोलकर मिला लिया। बच्चों ने पीने के बाद कहा, पापा मजा नहीं आया, अबकी माजा ले आओ। पहले तो मन हुआ कि मना कर दूं लेकिन देखा कि पव्वे में एक पैग पड़ा है तो फौरन माजा ले अया और सबको पिलाया। अपने वाली गिलास में माजा में व्हिस्की का अंतिम पैग भी मिला लिया। मेरे लाख छिपाने के बावजूद आयुष बीच-बीच में मेरे हरामीपने को कनखियों से देख ले रहा था--- वो आखिर में बड़े प्यार से पूछ ही बैठा...पापा, तुम दारू कोल्डड्रिंक में भी पिला के पी लेते हो और माजा में भी?? पानी के साथ भी पी लेते हो और सोडा में भी?? क्या दारू को सब्जी और दाल में भी मिला के पी सकते हो?? उसका सवाल सुन के मैं सन्न। मैंने कोई जवाब नहीं दिया...थोड़ा डपट दिया...चुप्प रहो,,,जब देखो तब टांय-टांय बोलते रहते हो। मौका हाथ लगा देख सिम्मी दीदी (आयुष की बड़ी बहन) बोल पड़ीं--ठीक कहते हो पापा, जब देखो टांय-टांय बोलता रहता है। पढ़ने का नाम नहीं लेता, बोलने को कह दो तो बोलता ही रहेगा। मैंने उसे भी कहा--अच्छा तुम भी चुप रहो। लेकिन मन में ही अपने मन से मैंने पूछा--क्या सब्जी और दाल में भी मिला के पी सकते हो यशवंत?? अंदर से जवाब आया..हालात और परिस्थिति पर डिपेंड करता है। अगर पानी बिलकुल न हो, और इफरात में दाल ही दाल उपलब्ध हो तो जाहिर सी बात है दाल में डालकर दाल का जूस पीने का आनंद उठाते हुए ह्विस्की को सिप किया जा सकता है.....खैर, मैने सिर झटक दिया।
तो, भई, सोच रहा हूं २ अगस्त से लेकर २ सितंबर तक के दौर को ड्राई मंथ घोषित कर दूं। अगर बीच में विल पावर डोल जाता है तो इसके बारे में भड़ास पर जरूर लिखूंगा। हां, अगर किसी भडा़सी के पास हाऊ टू डेवलप आवर विल पावर जैसे विषय पर कोई शोध हो तो वो मुझे जरूर बताए या पढ़ाए, मैं उसका आभारी रहूंगा।
जय भड़ास
यशवंत
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