19.11.07

चीजों को क्यों न सार्वजनिक नजरिये से देखें

साथी नीरज के परिवार के लिए संवेदनाएं। उनके दुख को न हम अपनी सहानुभूति से कम कर सकते हैं न ही आर्थिक मदद से किसी अन्य दिशा से खुशियां ला सकते हैं. शायद हमारी यही नियति है. नौकरियां करते रहना. कुछ यादें के सहारे छुटकारा पा लेना. इस चिल्लपौं में खबर बनाने बनाते खुद सिंगल कॉलम बन जाना. अभी यहां लुधियाना में जागरण के एक पत्रकार मित्र लापता हैं. वे 6 नवंबर को घर जाने के लिए निकले थे. तब से उनका कोई सुराग नहीं है.
दोस्तो एक सुझाव है, कई बार कई लोगों से इस बारे में सुन चुका हूं. लेकिन कोई ठोस काम नहीं हुआ. नीरज जी के बहाने इसे अंजाम दें तो क्या बेहतर न होगा. सुझाव है कि हम सभी एक सहायता फंड बनाएं. इसे बावक्त जरूरत मित्रों को दिया जाए. जो जितनी मदद कर सकता है करे. मैं इस पूरी कार्य योजना के लिए यशवंत जी, अजय ब्रह्मात्मज जी, रियाज भाई, अंकित माथुर जी और राहुल का नाम समन्वय के लिए प्रस्तावित करता हूं. यह लोग पहल करें. भडास का मंच तो है ही. इसमें जो अन्य चीजें आगे बढानी हो वे भडास के जरिए बढाई जा सकती हैं. हां सिर्फ भावुक होकर हामी न भरे.


सचिन

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