8.12.07
प्रिय तुमने जब से
प्रिय तुमने जबसे मेरी आस्तीन छोड़ी तबसे मुझे अकेलापन खाए जा रहा है । तुम क्या जानो तुम्हारे बिना मुझे ये अकेला पन कितना सालता है । हर कोई ऐरा-गैरा केंचुआ भी डरा देता है।
भैये.....साफ-साफ सुन लो- "दुनियाँ में तुम से बड़े वाले हैं खुले आम घूम रहें हैं तुम्हारा तो विष वमन का एक अनुशासन है इनका....?"
इनका इनका कोई अनुशासन है ही नहीं ,यार शहर में गाँव में गली में कूचों में जितना भी विष फैला है , धर्म-स्थल पे , कार्य स्थल पे , और-तो-और सीमा पार से ये बड़े वाले लगातार विष उगलतें हैं....मित्र मैं इसी लिए केवल तुमसे संबंध बनाए रखना चाहता हूँ तुम मेरी आस्तीन छोड़ के अब कहीं न जाना भाई.... ।
जीवन भर तुम्हारे साथ रह कर कम से कम मुझे इन सपोलों को प्रतिकारात्मक फुंकारने का अभ्यास तो हों ही गया है।
भाई मुझे छोड़ के कहीं बाहर मत जाना । तुम्हें मेरे अलावा कोई नहीं बचा सकता मेरी आस्तीनों के कईयों को महफूज़ रखा है। बाहर तो तुम्हारे विष को डालर में बदलने के लिए लोग तैयार खड़े हैं जी । सूना है तुम्हारे विष की कीमत है । तुम्हारी खाल भी उतार लेंगें ये लोग , देखो न हथियार लिए लोग तुम्हारी हत्या करने घूम हैं ।नाग राज़ जी अब तो समझ जाओ । मैं और तुम मिल कर एक क्रांति सूत्र पात करेंगें । मेरी आस्तीन छोड़ के मत जाओ मेरे भाई।
फोटो:-साभार डॉ.सुभाष भदौरिया.
भड़ासी बंधु आपका आभारी हूँ कि आप ने मेरी ता.नवेम्बर 10 2007 की पोस्ट
ReplyDeleteइन सियासत के नागों से बचिए.
देखें भड़ास पर डॉ.सुभाष भदौरिया
की तस्वीर का इस्तेमाल कर बड़ा ही सार्थक व्यंग्य लिखा.इस किंग कोबरा की तस्वीर को सर्च करनें में मुझे काफी समय लगा था.
आप तुरंत हासिल कर धन्य हो गये.
आप की ये अदा पंसन्द आयी.
मेरी ग़ज़ल के कुछ अशआर पेश हैं.
ग़ज़ल
मार कर मुझ में जान डालेगा.
और फिर हसरतें निकालेगा .
उसका ऐलान तो जरा देखो,
आस्तीनों में सांप पालेगा.
आग से खेलने की चाहत में,
हाथ क्या घर भी वो जला लेगा.
अंत में हफ़ीज जालंधरी के शेर से अपनी बात को विराम दे रहा हूँ.
देखा जो तीर खा के कमींगाह की तरफ,
अपने ही दोस्तों से मुलाकात हो गयी.
कमींगाह-शिकार की ताक में छिपकर बैठने का स्थान.
डॉ.सुभाष भदौरिया अहमदाबाद.ता.8-12-07 10-07AM
भदौरिया जी आपका आभारी हूँ कि आपकी ता.नवम्बर 10 2007 की पोस्ट
ReplyDeleteइन सियासत के नागों से बचिए.से मुझे फोटो मिला सोच रहा था किसी दोस्त का फोटो डाल दूँ .... किंतु सच तो ये है की आपने अप्रत्यक्ष रूप से मेरी बड़ी मदद की है.... और अपनी टिप्पणी देकर तो और भी कृत-कृत्य कर दिया है....
आप स्सभार लिखने की तमीज मुझ में न थी नया-नया ब्लागिया जो ठहरा इस किंग कोबरा की तस्वीर को सर्च करनें मे आपको समय और जो जोखिम उठाने पड़े होंगे उसका मुझे इसका एहसास है.....!
देखें न आपने मुझे तक खोज लिया
हा.....हा... हा.....हा...हा.....हा...!!
आपकी ग़ज़ल के अशआर
मार कर मुझ में जान डालेगा.
और फिर हसरतें निकालेगा .
उसका ऐलान तो जरा देखो,
आस्तीनों में सांप पालेगा.
आग से खेलने की चाहत में,
हाथ क्या घर भी वो जला लेगा.
बहुत पसंद आए .....पर क्या करूं नाम से ही गिरीश हूँ विषधरों को गले में लटकाने की आदत सी पड़ गयी है....
तो गिरीश जी ,
ReplyDeleteआप जिसे खोज रहे थे वो भदौरिया जी के पास मिला .
चलो , सुरक्षित तो है.....?
HAA AGYAAT JEE
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