((घर पर लप्पू टप्पू (शब्द साभार- मसिजीवी) क्या आ गया, जैसे दर्द की पोटली खुल गई। वो जो कागज सब किसी बैग में समेट कर डस्टबिन की तरह फेंके गये थे, निकल आए हैं। अब तक आठ नौ शहरों में नौकरी की और हर बार किसी कबाड़ी को कागज फेंक कर देते समय इन्हें अंतिम वक्त में रोक कर रख लेता। बस शायद इसलिए की, यार बीते वक्त का ये ही कागज तो गवाह बनेंगे भविष्य में और आज ये ही मुझे नास्टेल्जिक किए पड़े हैं। बीएचयू में सन 95 या 96 के नए साल पर लिखी गई ये कविता मुझे वाकई आज लुभा रही है, दस बारह साल बाद के नए साल पर सुनाने के लिए। हालांकि ये कविता बीएचयू में पढ़ने वाले छात्रों की मानसिकता और लाइफ स्टाइल पर लिखी गई थी लेकिन इसे अगर बड़े परिवेश में लाकर देखें और नए मुहावरे के आधार पर सोचें तो यह हर जगह लागू हुई मालूम पड़ती है....य़शवंत))
हैप्पी न्यू ईयर
इस साल को भी हम,
हैप्पी न्यू ईयर कहते हैं।
यह जानते हुए भी कि
प्रतिदिन बंद कमरों में
घंटों शून्य में तलाशूंगा
अपना उज्जवल भविष्य....
फिर भी इस साल को हम
हैप्पी न्यू इयर कहके पुकारते हैं।
यह जानते हुए भी कि
हर क्षण संवेदनाएं आहत होंगी
कुचल जाएंगी प्रेम करने की चाहत
कैरियर संवारने की होड़ में
फिर भी इस साल को हम
हैप्पी न्यू इयर कहके बुलाते हैं।
यह जानते हुए भी कि
दोहरा जमीरर लिए बगैर एक पग
चलना मुश्किल है
सफलताओं के आकर्षक बाजार में
फिर भी इस साल को हम
हैप्पी न्यू इयर कहके पुकारते हैं।
यह जानते हुए भी कि
निस्तेज हो जाना है किताबों के बीच
बूढ़ी आंखों की रोशनी
न बन पाने की फिक्र में
फिर भी इस साल को हम
उच्ऋंखल हो हो के बुलाते हैं।
यह जानते हुए भी कि
अखबारों में मिलेगा गढ़वा पलामू
और कालाहांडी का हाल
प्लेग का चीनी का शेयर का धमाल
फिर भी इस साल को
समृद्धि का साल हो कहके पुकारते हैं।
यह जानते हुए भी कि
वृत्त में बना यह कुछ किलोमीटरों का आश्रम
नहीं सोचता
अपने से बाहर की दुनिया के बारे में
फिर भी इस साल को हम
सबकी खुशी के लिए स्वागत करते हैं
यह जानते हुए भी कि
अपनी विकृतियों और दमित इच्छाओं
को अभिव्यक्त करने का सुनहरा अवसर है
यह नये साल का त्योहार भी
फिर भी इस साल को हम
बधाई लेल दे के बुलाते हैं।
आ जा आ जा नया साल
जल्दी आ जा
न जाने कितने और साल आयेंगे
और हम--
सब कुछ जानकर भी
हर नये साल को सेलिब्रेट करेंगे
दारू के साथ नाच के साथ
चिल्ला चिल्लाकर बुलायेंगे हैप्पी साल को
फिर हर साल खोजेंगे अपना भविष्य
न जाने किस किस में?
यशवंत सिंह
291, बिरला छात्रावास
का.हि.वि.वि.
वाराणसी
(नये वर्ष की पूर्व संध्या में बी.एच.यू. की हालात पर लिखी गई कविता)
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