अगर कोई बात गले में अटक गई हो तो उगल दीजिये, मन हल्का हो जाएगा...
30.12.07
मुक्तिबोध की चार लाइनें....
ओ मेरे आदर्शवादी मन ओर मेरे सिद्धांतवादी मन अब तक क्या किया? जीवन क्या जिया!! उदरम्भरि बन अनात्म बन गये भूतों की शादी में कनात से तन गये किसी व्यभिचारी के बन गये बिस्तर दुखों के दागों को तमगों सा पहना अपने ही खयालों में दिन राहत रहना....
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