ये नफ़रत की आंधी
वे ही चलाते है,जो लगाते है टोपी गांधी
दो भाईयों के बीच खोदते है खायी
जिनको सिर्फ सत्ता ही देती है दिखाई
दो धर्मो के बीच वे ही खडी करते है दीवार
जिनका मानवता से नही कोई सरोक़ार
तो फिर हम क्यो बहाते है अपनों का ही खून
उनके लियें,जिन्हे है सिर्फ सत्ता का ही जूनून
गांधी को तो सिर्फ ब्राण्ड के लिये ही प्रयोग करते है
अन्दर तो हिंसा,दंगे,नफ़रत व आतंकवाद ही भरते है
गीता यह कहती है कि आत्मा कभी नही मरती है
यह विश्वास तब और दृण हो जाता है
जब तू पहले अयोध्या व उसके बाद गोधरा में नज़र आता है
दोनो जगह मरी तो मानवता ही मरी है
और बची है तो सिर्फ तेरी सत्ता ही बची है । तेरी सत्ता ही बची है ।
कानपुर से
शशिकान्त अवस्थी
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