22.1.08

ठेल-पेल के पढ़ाने वाले ब्लागरों से बचाइए...फुलझरियां--पार्ट वन

ब्लागिंग करते हुए दरअसल हम लोग एक पूरी दुनिया को जीते हैं। उसमें ढेर सारे अनुभव, खट्टे-मीठे, प्यारे-न्यारे होते हैं। मेरे कुछ निजी अनुभव भी हैं। लेकिन इस दुनिया में निजी क्या है, कुछ नहीं। अगर निजता इतनी ही पसंद होती तो भड़ास क्यों निकालता। दरअसल भड़ास तो निजता का ही सार्वजनिक प्रदर्शन होता है। तो ब्लागिंग की फुलझरियों का पहला पार्ट पेश करते हुए मुझे अपार हर्ष महसूस हो रहा है.....। कृपया कोई बुरा न माने। होली बस अब आगे ही है। पढ़ें और मजा लें....
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इन दिनों कुछ ज्यादा ही प्रमोशनल मेल आने लगे हैं। और तो और, अपने कुछ ब्लागर साथियों ने गजब ढा रखा है। पोस्ट लिखी नहीं कि तुरंत प्रमोशन में जुट गये। जीमेल स्टेटस मैसेज पर हेडिंग व लिंक दे मारा। उसके बाद एक मेल बनाया जिसमें अपने ब्लाग व उस पोस्ट का लिंक डाला और एक बड़े ग्रुप को सेंड कर दिया। उसके बाद कई लोगों को मोबाइल से एसएमएस भी कर दिया। बाप रे....धांय धांय फायरिंग। और जिनको ये गोलियां लग रही होंगी, उनका क्या हाल होगा, इस पर बिना विचारे वो फायरिंग में लगे हैं।

ऐसी ब्लाग प्रमोशनल मेल में न उपर लिखा है न नीचे, सिर्फ बीच में पोस्ट का लिंक।
अब लीजिये, साहब। इन्होंने तो पेल दिया, अब आप सब कामधाम छोड़कर इसे क्लिक करिये और पढ़िए।
पहले तो दो चार लोग ऐसा करते थे, अब देख रहा हूं कि ये संख्या आधा दर्जन तक पहुंच गई है। अपने ब्लाग को प्रमोशन देने, हिट बढ़ाने व लोकप्रिय बनाने के लिए अपने ब्लागर भाई लोग जी-जान से जुटे हैं पर वे भी तो ध्यान रखें कि ऐसे प्रमोशनल मेल किसी ब्लागर को न भेजें, वो तो इसे देखते ही जलभुन जाता है, भुनभुनाता है... मुवां मेरा तो पढ़ता नहीं, अपना पढ़ाने के लिए पेले रहता है।

एक दिन तो गजब हो गया। एक सज्जन जिनसे मैंने कभी चैट नहीं किया, कभी मेल पर बातचीत नहीं हई, कभी मिले नहीं लेकिन वो एक सीनियर ब्लागर हैं, एक अच्छा और चर्चित ब्लाग चलाते हैं, ने एक दिन चैट की खिड़की से मेरे घर के आगे दरवाजे पर अपने ब्लाग की नई पोस्ट की हेडिंग के बाद उसका लिंक चेंप दिया। पीली रोशनी लुपलुपाने लगी, चैट वाली।

मैं भौचक..मन ही मन बुलबुलाया... न दुआ न सलाम। बस सीधे बता दिया काम। स्वार्थी कहीं के। लिंक डाला और चलते बने, ये भी नहीं कहा कि यशवंत जी, पढ़ लीजिेयेगा। समझ क्या रखा है अपने आप को और मुझे। खुद को साहब और अपन को चेला समझ रखा है। बड़े आए.....। इस बार तो छोड़ देता हूं, पहली बार है, आगे से ऐसा किया तो खबर लूंगा।

और वो दिन भी आ गया जब उन्होंने आगे भी ऐसा कर दिया, ज्यादा दिन बाद नहीं बल्कि अगले ही दिन। उन्होंने अपनी नई पोस्ट का यूआरएल बजरिये चैट के दरवाजे मेरे आगे चेंप दिया, साइड में चैट की पीली रोशनी लुकलुकाते हुए मुझे चिढ़ाने लगी, जैसे लगा कि वो ब्लागर महोदय पीली रोशनी के रूप में वेश बदलकर आए हों और अपना लिंक देते हुए आंख मिचकाते हुए मुंह चिढ़ा रहें हों.....

मुझसे रहा न गया, मैंने तुरंत लिखा... who r u and what is this?

थोड़ी देर बाद चैट वाली पीली रोशनी फिर लुकलुकाई- नमस्कार, मैं फलां... आपने पहचाना नहीं, आपके ब्लाग पर एक बार कमेंट लिखा था।

खुद के मुंह पर पड़ रही पीली रोशनी को मैंने हरी में तब्दील कर दिया और उनकी ओर जवाबी पीली रोशनी पेल दी......

ओह, सारी, दरअसल आपका नाम अगड़म बगड़म सा आ रहा था, इसलिए पहचान नहीं पाया।

उधर से पीली रोशनी संदेश लाई...कोई बात नहीं

मैं जलभुन गया....क्यों नहीं कोई बात है। आप ब्लाग क्या लिख रहे हैं, दूसरों को उंगली करने में लगे हैं। भइया, लिखा तो ठीक अब उसे दूसरे के कंप्यूटर में हाथ डालकर उंगली करते हुए बताने की क्या जरूरत कि लो पढ़ो, ये लिखा है। इतने महान लेखक होते तो दिनभर आपके ब्लाग को खोले न बैठा होता। मैं आपके ब्लाग से पोस्ट को ईमेल के रूप में सब्सक्राइब न कर लेता। ....भई, छोड़ंगू नहीं आपको, रुकिए, पीली रोशनी फेंकता हूं...

मैंने लिखा...आप अपनी पोस्ट ठेल के, पेल के पढ़वाते हैं, है ना?

पीली रोशनी इस बार कुछ यूं उस तरफ गई कि वो भी पीले पड़ गए, कोई जवाब नहीं। मैं थोड़ा ज्यादा सक्रिय हो गया, इससे पहले कि पीली रोशनी उधर से आए, मेरे को चिढ़ाए, उस तरफ इतनी पीली रोशनी फेंक दो कि पहले तो वो बेहोश हो जाएं, दूसरे होश में भी आएं तो उन्हें मेरी ओर पीली रोशनी फेंकने का होश न रहे।

मैंने दनादन टाइप करना और इंटर मारना जारी रखा...आजकल ढेर सारे लोग ईमेल से अपने ब्लाग पढ़वाने में लगे हुए हैं। लेकिन उन लोगों को ये समझना चाहिए कि अगले आदमी भी ब्लाग लेखक हैं, वो अपना लिखें, पढ़ें, पढ़ाएं या इन इमेलियों का पढ़ें। ब्लागिंग वैसे ही समय खाता है, ये इमेलिये ब्लागर तो जान खाये हैं।

लगा, मेरी भड़ास निकल गई और उस तरफ पीली रोशनी ने अब तक काम कर भी दिया होगा। और वाकई, उधर से मेरी ओर कोई पीली रोशनी चैट के दरवाजे से नहीं आई। और वाकई, उन साथी ने उसके बाद आज तक उंगली करके पढ़ाने की, पेल-ठेल के पढ़ाने की जहमत नहीं उठाई। धन्यवादी साथी।

(पार्ट टू में कुछ और फुलझरियां होंगी....इंतजार करिये)
जय भड़ास
यशवंत

7 comments:

  1. Yashwant ji. Bhadas par pahli baar pichle mahine aay tha aur ek hi din mein 40 - 50 post padh gaya ..... tab se to yeh apne ghar jaise lagne lag gaya. daily ek bar bhadas par jarur aata hu. badhai itne ache blog ko banane ke liye, aur ek baat. kya bhadas ka member banne ke liye Patrakaar hona jaruri hai? Rohit Tripathi

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  2. आपने तो की सारे टिप्स बता दिये. जल्दी ही आजमाते हैं आप पर ...बच के रहियेगा... :-)

    वैसे आपने घर के दरवाजे पर ये दरबान काहे बिठा रक्खा है जी... यही वर्ड वेरीफिकेशन ...

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  3. सरजी, मुझे तो ये गुडगांवा के ब्लागर्स मीट का असर लगता है। अपनी तरफ भी हल्ला है कि माइक्रोसॉफ्ट वाले वहां जाने वाले को तमगा और पैसा दिया था। खैर आप कसम खा लीजिए कि अपने रहते किसी को फलने-फूलने नहीं देंगे,भाइजी लोग जबरदस्ती पेलना भूल जाएंगे। इधर हमको भी कुछ लोग बकरी समझकर ,सुइया देकर दुहने में लगे हैं कि एक बार देख लीजिए नया अंक। अब एके घंटा में अपनी लिखें कि पहले उन्हीं का पढ़ लें। काहे कोई जोर-जबरदस्ती करता है हर जगह सरजी।

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  4. बहुत खूब चेता भी रहे हो और पढा भी रहे हो

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  5. कौनो मादरचोद बकैती कर रहा है।
    लगाओ लप्पड़ साला गिरे दूर जा के।
    कौनो जबरिया नही चलेगी भडास पर।
    जय भड़ास।
    बाबा भडासानंद की जय!

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  6. :) , चलिए, इसी बहाने आपको एक लिंक टिका देते हैं. पर भड़ास के बारे में पढ़ के तो अच्छा लगेगा ना? कि इस लिंक को भी पीली रौशनी में फेंक देंगे? ये लिंक देखें, और इसमें तीसरे नंबर के चित्र को क्लिक कर बड़ा कर पढ़ें. भड़ास की न सिर्फ चर्चा हुई है केंद्रीय हिन्दी संस्थान की पत्रिका गवेषणा में, बल्कि भड़ास का चित्र भी प्रकाशित हुआ है.

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