19.1.08

हंगामा खड़ा करना मकसद नही मेरा .............


आज के खुलासे के बाद मेरे पास ढेरों फीडबैक आये .............अधिकतर लोगो के फोन आये

कुछ ने कहा की मीडिया में रहकर बैर ना पालो
क्या यही है पत्रकारिता ??

3 comments:

  1. जुग-जुग जीयो भैया जसवंत, ललकरले रहा, एही तरे, मारा खेदि-खेदि के सरवन के। कुल भकुआइ गयल हउवैं।

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  2. भाई तुम भटके हुए नहीं हो बल्कि हिन्दुस्तान भटक गया है और हमारे-आपके जैसे लोग ही सही रास्ते पर ला सकते हैं । मेरी भी लोग टांग खींचते हैं कि यार आप पत्रकार हो समाजसेवक नहीं ; लेकिन मेरी गुरूशक्तियां मुझे बतातीं हैं "पतनात त्रायते इति पत्रकारः" यानि कि जो पतन से मुक्ति दिलाए वह ही पत्रकार है । मैं और मेरे जैसे लोग हर हाल में तुम्हारे संग हैं । हम सब बदलाव चाहते हैं क्योंकि हम षंढ जैसी जिन्दगी नहीं जी सकते । मैं मतवाला , रणभेरी , सेनापति , न्रसिंह जैसे पत्रों में लिखने वालों का वंशज हूं ;अन्याय का विरोध करना मेरे D.N.A.
    में हैं मैं अगर बाजारवाद से डर कर बदलना भी चाहूं तो मर सकता हूं बदल नहीं सकता । क्रांति आती है पर आहुति देनी होती है । आखिर में ,जिनकी फटती है उनका मार्ग अलग है और हमारा अलग । मुझे पता है आप हरगिज न बदलोगे । आशीर्वाद....................

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  3. मेरे दोस्त सच की राह में हमेशा बाधाएं आती है लेकिन युग पुरुष उनसे डरते नही है उनसे टकराते है मेरी शुभ कामनाएं आपके साथ है......
    आपका - अनिल यादव.....

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