27.1.08

ठंढिया क्यों गए......

लग रहा है कि सब भड़ासी बंधु-भगिनी अपने-अपने तरीके से गणतंत्र दिवस मनाने में व्यस्त हैं । एक बात यह भी है कि साथ में रविवार की छुट्टी बोनस के रूप में मिल गई तो हो सकता है कि एकाध दिन की कैजुअल लीव मार कर घूमने(या फिर घुमाने ) का कार्यक्रम बना कर धूप सेंक रहे हों । लेकिन हमें तो भाई आदर्शवादिता का एड्स है तो पूरे तीन दिन झोपड़पट्टियों में घूम कर सूंघेंगे कि ५९ सालों मे क्या वो आदमी गणतंत्र का मतलब जान पाया जो हमारे देश के सभी जनप्रिय नेताओं का सबसे बड़ा वोट बैंक है । इस पूरे कार्यक्रम में धारावी और नई मुंबई की शान मानखुर्द (ये भी धारावी का छोटा भाई ही है) गया और लोगों से बात करी कि क्या आपको पता है आज गणतंत्र दिवस है ? सबने कहा , अरे येड़ा समझा है क्या ?आज के दिन को कैसे भूल सकते हैं ? झंडे का मस्त धंधा होता है लेकिन साला समझ नहीं आता ये साला ३६५ दिन में बस दो ही दिन लोग झंडा क्यों खरीदते हैं ,पन अपुन को क्या कल से वापिस शेंगचना बेचना है।
उन महिलाओं से भी मिला जो दुर्भाग्य से वेश्याव्रत्ति में फंसी हैं ,उन्होंने कहा कि भाईसाहब ये साला दो दिन तो ऐसे आते हैं कि धंधा ही नहीं होता (१५ अगस्त भी) है ,क्या नाटक है ? अरे हां अपने लैंगिक विकलांग मित्रों को कैसे भूल सकता हूं तो उन सबसे भी मिला लेकिन उन लोगों ने जो भी कहा उसे मैं कितना भी समर्पित भड़ासी क्यों न हूं यहां नहीं लिख सकता ।
नये मित्र भड़ास पर आते जा रहे हैं उनमें से हमारी नवागंतुक सखी हैं ’शानू’ इन्होंने पोस्ट लिखा है ye public hai bhai sab janti hai ;इनका स्वागत है । सब लोग लिखते रहो ताकि खली-वली होती रहे...........
जय भड़ास

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