तुमको सुनता हूं
पढ़ता हूं
तो अट्टाहस करता हूं
तरस खाता हूं तुम पर
हम मर्द हरामी के,
कितना समझदार हो गए हैं
सोचते हैं रोज, हर रोज
हरामीपने के तोड़
और तुम हो कि
बस, वही जीती रहती हो
अपनी खोल में
सती सावित्री से लेकर
नीलिमा, घुघूती, मनीषा
प्रेमिका, दोस्त, पत्नी
बीवी, भाभी, बहन...
जो भी हो तुम लोग
लेकिन बहुत पर्सनल
होती हैं तुम्हारी बातें
सरेआम होते हुए भी
जीती रहती हो अपने
दर्द, और अपनी दुनिया में
कितना गैप है तुममें और हममें
मेरी जान ताकि
तुम लोग भी खुल के
निकाल सको अपनी भड़ास
अपने किसी भड़ासी मंच पर
बिना रोये, बिना बताये
साफ साफ,सहज, सरल, तरीके से
कि कहती कि हां, मैं....
तुम कुत्तों में से
किसी एक के साथ भी
रहने के कायल नहीं
क्योंकि तुम हो जो
लड़ते समझते हो
ना जाने किन मुद्दे
विषयों, हरामजदगियों
सूअरपनों, कुत्तेपनों को
और हम लोग हैं
जो हमेशा कहते
बोलते आते हैं कि
हम लोग जो हैं
सो हैं, समझो
पर.....
पता नहीं तुम लोग
और हम लोग में
इतना गैप है कि
अगर कभी पाटने की कोशिश करो
तो खुद मैं चिल्ला उठूंगा
क्या कर रही हो तुम सब
चुप, बंद, बस करो....
शायद....
इस गैप को पाटने
न पाटने के बीच
के बीच की जन्मी है ये खाई
क्योंकि तुम छायावादी लोग हो
और जो होती हो क्रांतिकारी तो
तुम औरत होने के काबिल
नहीं कही जाती
बावजूद इसके कहना चाहूंगा
कि बनाओ सब औरतें
एक कामन ब्लाग
अनाम नाम से
और गाओ
अपनी मस्त धुन
बिना मस्त कमेंट पाने
और चाहने की इच्छा के बगैर
ताकि ढेर सानी अनाम लड़कियां
जी सकें कई जनरेशन से आगे
ये मानते हुए
कि वे हो गई हैं
बराबर इन कुत्तों के
जिनके अगल बगल उन्हें
उठना बैठना जीना खाना पड़ता है
.......
.......
........
......
((शायद मैं अपनी बात कह नहीं पा रहा हूं, माफ करें औरतें, और गरियायें मर्द....सालों कि परवाह न करना....जय भड़ास.....यशवंत))
fantastic
ReplyDeletebhai, kuchh bacha ho tab ot kahen.
ReplyDeleteapa ne to gagar main sagar udel kar paimano ki tashir par nai shan chada di.
जब सब जानते ही हो
ReplyDeleteतो और ज़्यादा
जानने की इच्छा
क्यों पालते हो
This comment has been removed by the author.
ReplyDelete