आज ही खबर आई है कि रानी मुखर्जी और आदित्य चोपड़ा का विवाह होने वाला है। हालांकि इस खबर पर कोई आश्चर्य करने वाली कोई बात नहीं है, क्योंकि इसमें कोई अजूबा नहीं है, और यह उनका व्यक्तिगत मामला है। पहले भी भारतीय हीरोईनें “समय आने पर” अपना घर बसाती रही हैं। लेकिन इस बनने वाली जोड़ी में एक बात है, जो कि चर्चा और जिक्र के काबिल है, वह है आदित्य चोपड़ा का शादीशुदा होना। वे अपनी पत्नी से तलाक लेने जा रहे हैं और रानी मुखर्जी से शादी करेंगे।
शादीशुदा, तलाकशुदा, दुहाजू या बल्कि तिहाजू पुरुष से शादी करने का हमारी फ़िल्म इंडस्ट्री में रिवाज रहा है। ज्यादा पीछे न जायें तो हेमामालिनी ने धर्मेन्द्र से उनकी पत्नी जीवित रहते और तलाक न देने के बावजूद रोमांस किया और शादी भी की। हेमामालिनी का मामला ज्यादा अलग इसलिये भी है कि उस वक्त धर्मेन्द्र दो बच्चों के पिता भी थे। रेखा और अमिताभ के किस्से तो सभी को मालूम ही हैं, अमिताभ भी उस वक्त शादीशुदा थे और दो बच्चों के बाप थे, लेकिन फ़िर भी रेखा उन पर मर मिटी थीं और लगभग हाथ-पाँव धोकर उनके पीछे पड़ी थीं। यदि “कुली” फ़िल्म की दुर्घटना न हुई होती, जया भादुड़ी ने अमिताभ की सेवा करके उन्हें मौत के मुँह से खीच न लिया होता तो शायद अमिताभ भी रेखा के पति बन सकते थे। सारिका ने भी कमल हासन से उनके शादीशुदा रहते विवाह किया, उसके बाद सुना है कि उनमें भी तलाक हो गया है और कमल हासन को तीसरी औरत मिल गई है (शायद हीरोइन ही है)। हालांकि दक्षिण में दूसरी शादी का रिवाज सा है, और इसे “विशेष” निगाह से देखा भी नहीं जाता, लेकिन उत्तर भारत में इसे गत दशक तक “खुसुर-पुसुर” निगाहों से देखा जाता था। बीते दस वर्षों में, जबसे समाज में “खुलापन” बढ़ा है, यह संख्या तेजी से बढ़ी है, और चूँकि ये हीरोईने लड़कियों की “आइकॉन” होती हैं, इसलिये फ़िल्मों से बाहर के समाज में भी यह रिवाज पसरता जा रहा है।
हाल के वर्षों में यह ट्रेण्ड कुछ ज्यादा ही चल पड़ा है, पिछली पीढ़ी की हीरोइनों से शुरु करें तो सबसे पहले श्रीदेवी ने शादीशुदा और बच्चेदार बोनी कपूर से शादी की, फ़िर करिश्मा कपूर, रवीना टंडन, ॠचा शर्मा, मान्यता (आमिर खान की दूसरी बीवी हीरोइन नहीं हैं, लेकिन आमिर खुद दुहाजू ही हैं, फ़िरोज खान ने भी बुढ़ौती में एक जवान लड़की से शादी की थी) आदि भी उनकी ही राह चलीं। ताजा मामला आदित्य और रानी मुखर्जी का है, लेकिन उससे पहले करीना और सैफ़ का जिक्र करना भी आवश्यक है, खबरें हैं कि उनमें जोरों का रोमांस चल रहा है, लेकिन फ़िल्म इंडस्ट्री के “अफ़वाह रिवाज” पर तब तक भरोसा नहीं किया जा सकता जब तक कि वाकई में शादी न हो जाये, फ़िर भी यदि करीना-सैफ़ की शादी हुई तो यह शाहिद कपूर के साथ अन्याय तो होगा ही, सैफ़ जैसे अधेड़ और “तिहाजू” से करीना कैसे फ़ँस गई, यह भी शोध का विषय होगा।
बहरहाल, लेख का उद्देश्य इन हीरोइनों की आलोचना करना नहीं है, क्योंकि शादी उनका व्यक्तिगत मामला है, लेकिन प्रश्न उठते हैं कि आखिर इन शादीशुदा मर्दों में ऐसा क्या आकर्षण होता है कि हीरोईनें अपने हम-उम्र लड़कों का साथ छोड़कर इनके साथ शादी रचा लेती हैं?
1) क्या यह दैहिक आकर्षण है? (यदि ऐसा है तो मर्दों की दाद देनी होगी)
2) इसमें रुपये-पैसे का रोल और एक सुरक्षित भविष्य की कामना दबी होती है? (लेकिन वे खुद भी काफ़ी पैसे वाली होती हैं)
3) क्या वाकई ये हीरोइनें अपने-आपको इतनी असुरक्षित समझती हैं कि वे दूसरी औरत का घर उजाड़ने में कोई कोताही नहीं बरततीं? (उन्हें यह डर भी नहीं होता कि कल कोई और लड़की उसे बेदखल कर देगी?)
4) क्या वे “अनुभव” को प्राथमिकता देती हैं? (लेकिन यदि पुरुष को जीवन का अनुभव होता तो पहला तलाक ही क्यों होता?)
5) क्या आधुनिक समझे जाने वाली उस सोसायटी में भी मर्दों का राज ही चलता है? (चोखेर बालियाँ ध्यान दें…)
6) क्या यह कोई मनोवैज्ञानिक समस्या है?
आखिर क्या बात है… ?
सुरेश चिपलूनकर
http://sureshchiplunkar.blogspot.com
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