आज मुझे मसिजीवी जी की बात पर कोई दुःख नहीं हुआ क्योंकि बुद्धिजीवी तो ऐसा सोचने के लिए स्वतंत्र हैं शायद उन्हें यह भ्रम हो गया है कि शायद भड़ास में चोखेरबाली वाली मनीषा जी से यशवंत जी की जो बौद्धिक चर्चा स्त्रियों को लेकर हो रहा है उसके ही क्रम में ही चोखेरबाली वाली मनीषा जी को अपमानित करने के लिये किसी भड़ासी (कदाचित यशवंत जी या मैंने) ने यह नया ई-मेल आईडी बनाया है । प्रतीत होता है कि मसिजीवी के आगे मेरी मैत्रिण मनीषा को अपनी लैंगिकता प्रमाणित करने के लिये बाकायदा अपना पेटीकोट उठाकर चड्ढी उतार कर फोटो खिंचवाना पड़ेगा वरना हो सकता है स्याही पर जीवित रहने वाले भाईसाहब को संतुष्टि न होगी और उन्हें विद्रूपता ,कुद्रूपता और पता नहीं कौन-कौन सी रूपता सपनों में आती रहेगी । चूंकि मेरी मैत्रिण मनीषा के बारे में इस लिए नहीं जानते क्योंकि स्याही पर जीवित रहने वाले भाईसाहब भड़ास पर टिप्पणी करने से बचते हैं ऐसा उन्होंने लिखा लेकिन मुझे पता है कि उनके पास दूसरों की पोस्ट्स पढ़ने के लिए समय नहीं रहता है । जब से भड़ास में चोखेरबाली वाली मनीषा जी से यशवंत जी की जो बौद्धिक चर्चा स्त्रियों को लेकर शुरू हुई है उससे कहीं बहुत पहले से मेरी लिखी पोस्ट्स में मेरी मैत्रिण मनीषा का जिक्र करता आ रहा हूं ।
स्याही पर जीवित रहने वाले भाईसाहब अंत में लिखते हैं:-
"एक सवाल यशवंत से भी, मित्र इस तरह एक नए भड़ासी आईडी को और जोड़ दिया गया..आप दो सौ पचास से इक्यावन गिने जाएंगे :)) क्या सच की संख्या कैसे पता चले ? :)) "स्याही पर जीवित रहने वाले भाईसाहब सामान्य ज्ञान कैसा है मुझे नहीं पता पर इतना जरूर मालुम पड़ गया है कि उन्हें भड़ास के बारे में तनिक भी जानकारी नहीं है वरना उन्होंने इस सवाल को मुझसे भी किया होता क्योंकि स्याही पर जीवित रहने वाले भाईसाहब को इतना भी नहीं पता कि भड़ास का एक मोडरेटर मैं भी हूं । चूंकि मेरी मैत्रिण मनीषा को आप एक नहीं मान सकते इसलिए अब बताता हूं कि भड़ासी उनके जुड़ने से दो सौ पचास नहीं बल्कि उन जैसे बुद्धिजीवी लोगों की गिनती मे दो सौ साढ़े पचास होने चाहिए । मैं मानता हूं कि ऐसे ही स्वयंभू बुद्धिजीवी लोगों ने मेरी मैत्रिण मनीषा जैसे विकलांग लोगों को हाशिए पर धकेला हुआ है और सीधे ही उनके दोषी हैं । मैं परमात्मा से प्रार्थना करता हूं कि उनके परिवार में कोई ऐसा बच्चा पैदा न हो लेकिन अब छटपटा कर ये न कहने लगिएगा कि अरे अब तो डा.रूपेश श्रीवास्तव भी हिजड़ों की तरह कोसने लगे ।
http://bhadas.blogspot.com/2008/01/blog-post_30.html
उनकी जानकारी के लिए इस पोस्ट की जानकारी दे रहा हूं जब मैंने मेरी मैत्रिण मनीषा का जिक्र करा था ,अगर कल को इन्हें यह संदेह होने लगे कि डा.रूपेश श्रीवास्तव और मुनव्वर सुल्ताना भी काल्पनिक है तो क्या किया जाएगा ? वैसे मैंने ऐसे लोगों की अगर परवाह करी होती या इनकी सोच से दुनिया देख रहा होता तो आज मैं भी बौद्धिक षंढत्व का चलता फिरता आइना होता । लगता है कि मैंने इस बात को यशवंत दादा की वजह से ज्यादा ही भाव दे दिया वरना तो इस बात के लिये खामोशी ही मेरा उत्तर है ।
जय जय भड़ास
dr. sab jo hr jagah fata hi dhoondhte hain unka aap kya kijiega...msijivi j ko maf kijie ve nhi jante..ve kya kr rhe hain...
ReplyDeleteडाक्साब,
ReplyDeleteमैंने दफ्तर में आपकी पोस्ट देखी थी पर वहॉं हिन्दी आइपिंग का जुगाड़ न होन के कारण ही इतनी बढ़ पाई। मुझे खेद है
कल की पोस्ट पर मैंने टिप्पणी दी थी जिसे शायद समयाभाव के कारण यशवंत अप नहीं कर पाए ।
पितृसत्ता के सवाल को यदि लैंगिक असमानता का सवाल मानते हैं तो हम इससे हिजड़ों, समलैंगिकों, वेश्याओं के प्रश्न को असंबद्ध नहीं कह सकते। मेरे भ्रम की वजह केवल मनीषा नाम थी, मुझे केवल लगा कि यह उन्हें लक्षित कर लिखा गया है। मैं मानता हूँ कि मेरे गलत होने की भी संभावना है पर आप मानेंगे कि जिस समाज में हिजड़ों की आवाज हाशिए के भी हाशिए पर है(हाशिए की जो थेड़ी बहुत जगह है उस पर भी कब्जा दलित व स्त्री चिंतन का ही है) इसलिए मुझे अगर यह लगा कि यह मनीषा व हिजड़ों का अपमानित करने के लिए लिखा गया है ये भले ही गलत हो पर अक्षम्य नहीं माना जाना चाहिए।
किसी प्रमाण की आवश्यकता नहीं है। मुखौटा विवाद के समय ही हम कह चुके हैं ब्लॉगर अपनी जा पहचान बनाता तथा गढ़ता है वही उसकी सही पहचान है।
कष्ट पहुँचा उसके लिए खेद है।