28.2.08

क्रान्ति शब्द से ही मलेरिया क्यों हो जाता है ???????

एक बात जो हमेशा से मेरे मन में रही है कि क्यों हम लोग गम्भीर मुद्दों पर कार्य नहीं कर पाते ? क्या हम पागल हैं ? मानसिक विकलांग हैं ? या फिर अपंग अपाहिज हैं ? कायर हैं और डरपोक हैं ? या फिर बस बहस करके मुद्दों पर बौद्धिक जुगाली करते हैं ताकि मीडिया का ध्यानाकर्षण कर सकें ? क्रान्ति शब्द से ही मलेरिया क्यों हो जाता है ? चलिये परिस्थितियों के गोबर में से मैं गुबरैला(गुब्डौरा) थोड़े से गोबर को गोलिया कर गोली बना कर लुढ़का कर आपके सामने लाता हूं । भड़ास पर अगर कुछ लोग यह मानते हैं कि उनका मन नहीं लग रहा है या प्रशंसनीय बातें सामने नहीं आ रही हैं तो लीजिये मुद्दों के गोबर की गोलियां प्रस्तुत हैं और देखिए कि आप अपने स्तर पर कुछ कर पाते हैं या बस बहस करके चिया जाते हैं या उतनी भी हिम्मत नहीं जुटा पाते कि कौन नौकरी ,परिवार खतरे में डाले -----
पहली गोली : जस्टिस आनंद सिंह के मुद्दे पर आपने क्या किया जो पिछले बारह सालों से सुप्रीम जुडीशियरी के भ्रष्टाचार के खिला लड़ रहे हैं ? लड़ाई आज भी उसी स्थिति में जारी है बस जस्टिस आनंद सिंह की आर्थिक स्थिति दयनीय हो चली है ,फ़ाकाकशी में दिन गुजर रहे हैं ।
दूसरी गोली : जी न्यूज वाले श्री विजयशेखर ने स्ट्रिंग आपरेशन करके यह सिद्ध किया कि जुडीशियरी में कितना भ्रष्टाचार है । इस वीर ने अपनी कमाई के मात्र चालीस हजार रुपए खर्च करे और तत्कालीन राष्ट्रपति कलाम साहब और सुप्रीम कोर्ट के चीफ़ जस्टिस वी.एन.खरे व दो अन्य सम्मानित लोगों के वारंट निकलवा लिये । इस बहादुर को कोर्ट ने आदेश दिया है कि तुम खुद माफ़ीनामा लिख कर दो वरना सजा भुगतो ।
तीसरी गोली : न्याय प्रक्रिया तो एकदम पारदर्शी होनी चाहिए और सबके सामने न्याय होना चाहिए फिर दूरदर्शन पर जिस तरह संसद की कर्यवाही व सांसदॊं का जूतमपैजार ,गाली गलौंच का सीधा प्रसारण आ सकता है उसी तरह से सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाही का प्रसारण क्यों जनता को दिखाया जाता जबकि निजी चैनलो पर जनता की अदालत टाइप के कार्यक्रम धड़ल्ले से आते हैं ?
अगर कुछ करना है तो अपनी पत्रकारिता की तुतुहरी इन मुद्दों पर बजा कर इन्हें प्रकाश में लाओं ताकि आमजन न्यूज पेपर पढ़ लेने के बाद सहेज कर रख सके न कि उस पर बच्चे को टट्टी करा कर पिछवाड़ा पोंछ कर फेंक दे ,है दम????????
जय जय भड़ास

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