मेरी भास्कर में छप चुकी रचना का तनवीर जाफरी के नाम से प्रकाशन का मुद्दा अब एक नये मोड़ पे आता लग रहा है तनवीर जाफरी को मैंने फोन न० 01712535628 पर 10:12 बजे फोन किया ।
तनवीर साहब ने बताया कि :- सृजनगाथा को उन्होने "जीवन की बंजर भूमि में" आलेख नहीं भेजा । आपके व्यंग्य को मेरे नाम से छपवाने की गलती सृजनगाथा की ही है ।साहित्य के पुरोधा बने रहने के लिए , साहित्यिक दूकान चलाने के लिए जो चुरकटी जारी है उसपे लगाम कब लगेगी मेरी समझ से परे है । "
भाइयो , अब मुआमला तनवीर और जयप्रकाश "मानस " के बीच का हों गया है । यदि पकड़ गए तो अपना-अपना गिरेबान बचाते नज़र आ रहे हैं । मैंने तो पहले ही कहां था कि "यदि कोई तकनीकी गलती हों तो बस सुधार दीजिए "
समयचक्र भी सक्रिय हों गया , श्री राम ठाकुर दादा ये वाले =>दादा वहाँ न जाइए जहाँ मिलै न चाय....! भी सक्रिय हुए । कुछ सक्रिय हों रहे हैं कुछ लोगों ने मुझे डंडा उठाने फिर ".........." देने की सलाह दे रहे हैं......जैसे मेरे प्रिय डाक्टर डा. रूपेश श्रीवास्तव - आयुषवेद ।
तो भाइयो तीनों तरफ है आग बराबर लगी हुयी ।
इनका भी तो आभारी ही हूँ चक्करघिन्नी said...
साहित्य अकादमी से जुड़ा हुआ व्यक्ति इस तरह रचना की चोरी करे समझ से परे है। मेरा सुझाव है कि आप पत्रिका के सम्पादक से चर्चा करने के उपरांत इन पर अवश्य ही कानूनी कायर्वाही करें। हम आपके साथ हैं।
रवीन्द्र रंजन , इन सबके अलावा महा भडासी यशवंत जी जिन्होंने लगातार साथ दिया
अब आप मेरे पॉड कास्ट पे सुनिए http://girishbillore.mypodcast.com/2008/02/JEEVAN_KEE_BANJAR_BHOOMI-82997.html<= को क्लिक करिये "मेरी आवाज़ सुनो भाई "
कल जबलपुर के अखबारों की कतरनें शायद पोस्ट कर दूं ।
मामला मेरा ज़रूर है किन्तु राजेश पाठक टाइप के लोगों ने इसे यदि व्यक्तिगत मानके चुप चाप सह लेने की जो सलाह दी उसे मैं :-"......'के अलावा क्या कहूं ?"
तनवीर साहब ने बताया कि :- सृजनगाथा को उन्होने "जीवन की बंजर भूमि में" आलेख नहीं भेजा । आपके व्यंग्य को मेरे नाम से छपवाने की गलती सृजनगाथा की ही है ।साहित्य के पुरोधा बने रहने के लिए , साहित्यिक दूकान चलाने के लिए जो चुरकटी जारी है उसपे लगाम कब लगेगी मेरी समझ से परे है । "
भाइयो , अब मुआमला तनवीर और जयप्रकाश "मानस " के बीच का हों गया है । यदि पकड़ गए तो अपना-अपना गिरेबान बचाते नज़र आ रहे हैं । मैंने तो पहले ही कहां था कि "यदि कोई तकनीकी गलती हों तो बस सुधार दीजिए "
समयचक्र भी सक्रिय हों गया , श्री राम ठाकुर दादा ये वाले =>दादा वहाँ न जाइए जहाँ मिलै न चाय....! भी सक्रिय हुए । कुछ सक्रिय हों रहे हैं कुछ लोगों ने मुझे डंडा उठाने फिर ".........." देने की सलाह दे रहे हैं......जैसे मेरे प्रिय डाक्टर डा. रूपेश श्रीवास्तव - आयुषवेद ।
तो भाइयो तीनों तरफ है आग बराबर लगी हुयी ।
इनका भी तो आभारी ही हूँ चक्करघिन्नी said...
साहित्य अकादमी से जुड़ा हुआ व्यक्ति इस तरह रचना की चोरी करे समझ से परे है। मेरा सुझाव है कि आप पत्रिका के सम्पादक से चर्चा करने के उपरांत इन पर अवश्य ही कानूनी कायर्वाही करें। हम आपके साथ हैं।
रवीन्द्र रंजन , इन सबके अलावा महा भडासी यशवंत जी जिन्होंने लगातार साथ दिया
अब आप मेरे पॉड कास्ट पे सुनिए http://girishbillore.mypodcast.com/2008/02/JEEVAN_KEE_BANJAR_BHOOMI-82997.html<= को क्लिक करिये "मेरी आवाज़ सुनो भाई "
कल जबलपुर के अखबारों की कतरनें शायद पोस्ट कर दूं ।
मामला मेरा ज़रूर है किन्तु राजेश पाठक टाइप के लोगों ने इसे यदि व्यक्तिगत मानके चुप चाप सह लेने की जो सलाह दी उसे मैं :-"......'के अलावा क्या कहूं ?"
गिरीश भाई,इतने दिन से अपन सब चोर-चोर पकड़ो पकड़ो चिल्ला रहे थे अब पकड़ में आने पर तो वो भी यही चिल्ला रहा है क्या करें ? डंडा कहां है जरा दिख कर ही धमकाइए,करिए मत पहले से ही फटी है जान पड़ता है ।
ReplyDeleteजय जय भड़ास
BHAI BILKUL FATEE MEN NAHEE HOO
ReplyDeleteTANVEER TATHAA BHAAI JAYPRAKASH MANAS AB SAKATE MEN HAI
BACH KE BHAGANE KEE RAH NAHEE SOOJH RAHEE UNAKO
BHAI SAAHAB FATEE KA JALOOS TO AB IN DOUNO KA NIKAL RAHA HAI
AAP SABHEE MERAA SAATH MAT CHHODANAA
गिरीश भाई,मैने इस प्राणियों की दुकान फटने के वचन कहे हैं जरा विशेष ध्यान दीजिए । इन दलिंदरों की तो ऐसी हालत होनी चाहिए कि कहीं अपनी दिखाने लायक न रह जाएं और रही बात आपके साथ की तो प्रभु हम अलग कब हैं ? मैं तो कह चुका हूं कि हम सब भड़ासी मरने के बाद भी नर्क में ग्राउंड फ़्लोर में मिलेंगे......
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