आप सब लोगों को मेरा प्रणाम ,मेरा नाम मनीषा है और मैं डॉक्टर रूपेश की दोस्त हूं । लोग हमें हिजड़ा कहते हैं लेकिन डॉक्टर भाई कहते हैं कि हम लैंगिक विकलांग हैं । उन्होंने बताया कि आपके ब्लाग पर आदमी - औरत की बात लेकर बहस हो रही है अगर डॉक्टर रूपेश भाई की अरह हम लोग भी आप सब भड़ासियों की नजर में इंसान हैं तो जरा हिम्मत करके हमारी चर्चा करिए । डॉक्टर भाई ने हम लोग को कम्प्यूटर सिखाया ,हिन्दी लिखना और टाइप करना सिखाया और मदद किया कि ब्लाग क्या होता है ये बताया अभी आप लोग से रिक्वेस्ट है कि हमारी बात को भड़ास के द्वारा लोगों तक पहुंचाइये । हमारा ब्लाग है
adhasach.blogspot.com
हम चार पांच लोग जैसे सोना ,भूमिका ,शबनम मौसी ,डॉक्टर भाई मिल कर लिखेंगे आज पहली बार हिजड़ों की समस्याओं के बारे में जैसे हमें डाईविंग लाईसेंस से लेकर राशन कार्ड तक नहीं मिल पाता आसानी से क्योंकि हम न तो स्त्री हैं न पुरूष और आप लोग हैं कि फालतू बातों पर बहस कर रहे हैं ।
यशवंत भाई को आशीर्वाद
जै भड़ास
मेरी पहली पोस्ट शबनम मौसी के बारे में थी जो काफ़ी हद तक सच लिखने की एक कोशिश भर थी
ReplyDeleteआप उसे यहाँ देख सकते हैं
http://sunobhai.blogspot.com/2007/05/blog-post.html
मेरी पहली पोस्ट शबनम मौसी के बारे में थी जो काफ़ी हद तक सच लिखने की एक कोशिश भर थी
ReplyDeleteआप उसे यहाँ देख सकते हैं
http://sunobhai.blogspot.com/2007/05/blog-post.html
ye to badi gmbhir bat hai j
ReplyDeletekya bahasiya rhi aurton ka dhyan idhar jaega? shayad nhi kyonki isme n sirf badhikta blki so called sharaft bhi khtre me pd jaegi...hai n?
हमारे दिमागों से अगर हिजड़ा का कीड़ा ख़तम हो कर इंसानियत की बात आजाये तो सारी समस्या ख़तम हो जाये. शासन हो या प्रशासन अथवा समाज हर व्यवस्था इन्सान के हवाले है और इन्सान के दिमाग में कीड़े बहुत हैं. जब वह तथाकथित रूप से हिजड़ों जैसी हरकतें करता है तो वह मज़ाक होती हैं ,लेकिन जब हिजड़े खुद को हिजड़ा कह कर डंके की चोट पर अपना जलवा दिखाते हैं तब हम दिमागी तौर पर हिजड़ा बन कर उन्हें अपने (समाज) से अलग कर दोयम दरज़े का व्यवहार करने लगते हैं .
ReplyDeleteमित्रवर/मित्रगण
ReplyDeleteभड़ास पर कम टिप्पणियॉं करता हूँ इसलिए नहीं कि शुचितावादी हूँ (नारद के शुचिताकाल में ही जब भड़ास बच्चा था तब ही इसकी संभावनाओं को इंगित कर पूरी पोस्ट लिखी थी) पर कहना होगा कि ये पोस्ट बदमजा है- पोस्ट के इतिहास से अपरिचय नहीं है, मनीषा की राय भी पढ़ी थी आपकी उससे असहमति हो सकती है इसमें भी कोई दिक्कत नहीं है पर असहमति के लिए इस तरीके के इस्तेमाल में केवल हिंसा है विचार नहीं है...व्यंग्य भी नहीं हे बस मुझे लगता है केवल विद्रूपता है। फिर आप बाकायदा भड़ासी हैं तब क्यों मनीषा (जिस भी लैंगिकता के साथ) नई आईडी बनाने की आवश्यकता क्यों पड़ी। बेनाम होने के अधिकार का हम सम्मान करते हैं पर इस तरह अपमानित करने के प्रयास के लिए इसका प्रयोग हो इसके हामी नहीं।
एक सवाल यशवंत से भी, मित्र इस तरह एक नए भड़ासी आईडी को और जोड़ दिया गया..आप दो सौ पचास से इक्यावन गिने जाएंगे :)) क्या सच की संख्या कैसे पता चले ? :))
sach mai vicharneeya post hai swagat hai manisha
ReplyDeletehttp://hariprasadsharma.blogspot.com/