7.3.08

बाअदब, बामुलाहिजा होशियार....पं.सुरेश नीरव जी महाराज काव्य की कड़ाही में सेक्स बघार रहे हैं...

पं. जी को मैंने जैसे ही ब्लाग पर मोहतरमा सुल्ताना साहिबा के तास्सुरात का दर्शन कराया तो मा निषाद...की तरह स्वतः उनके मुंह से यह यौनानंदी काव्य होली रस में भींगकर झरने लगा....बचाओ चुनरी कहीं लागा दाग तो क्या होगा साब?


सेक्स कला है या विज्ञान, जिनके दिमाग में ये तर्क होता है
उनका भरी जवानी में बेड़ा गर्क होता है
अबे भैये, ब्रह्मचर्य और नपुंसकता में बड़ा फर्क होता है
सिंह भी गुफा में केवल कर्क होता है
ये देश उलझा रहा है आज तक चोले और चोली में
जीवन को रंगीन प्रयोगशाला बनाओ गुरु
इस बार होली में.........

2 comments:

  1. अच्छी तुकबन्दी है और सार्थकता भी....

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  2. SARTHAKTA KE SATH SATH MANORANJAK BHI HAI PANKAJ BHAI.

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