एकदम अलगे टेस्ट है भांग का...फास्ट क्लास...मूड भोकना बिलार ....तीन दिन तक लहर लहर लहराई रे....रे बाप खटिया घूमता है..मन एकदम मस्त,मतंग तो मेरे गाँव में एगो गुरु जी थे ,एकदम चौबीसों घंटे पितारिया फेरेम आँख पर चढाए .ओड्हुल की तरह आँख लालम लाल ...बड़ा नशीला था रे बाप...स्कूल में घुसते समय एकदम फिट लगते थे ...टिफिन की घंटी बजते-बजते फूल टाईट दिखने लगते थे,लगता था दो तीन घंटे में क्या हो जाता था उनको? तो हम छौरण छापारी भी कम चार सौ बीस नही थे...लगे जासूसी करने की आख़िर गुरु जी पर कोई परेत डार्लिंग तो नही आती है की गुरु जी बारह बजते-बजते डोलने लगते थे। तीन चार छान्टल छौरा भीड़ गए की आख़िर माजरा क्या है पता लगाना चाहिए। बालमन को तब इ भांग,गांजा पहचानने बुझने भी नही आता था अब तो इसी पर पी एच डी कर रहे हैं रोज..आज इस चौक पर भांग का शोध पत्र..कल उस चौक पर गांजा का शोध पत्र....पुलिस वाले तो प्रमाण पत्र लेकर बैठे हैं की जब तक माल मिलता रहेगा हर चौक-चौराहे पर यह सूचना के अधिकार से ज्यादा प्रभावी रूप में उपलब्ध होता रहेगा। आप गौर कीजिएगा किसी भी विकसित,उपेक्षित या सुदूर क्षेत्र में जाइए रात के बारह बजे दूध खोजिएगा नही मिलेगा लेकिन तनी इ आइटम खोज कर तो देखिये आराम से मिल जाएगा । अगर खोजने में परेशानी हो तो स्थानीय थाना में सम्पर्क कीजिएगा वहन आपको पुख्ता जानकारी मिल जाएगी की इ माल किधर मिलेगा...समझे...नही समझे तो तनी ट्राई मारिएगा ।
तो गुरु जी के पीछे लग गए हम सब ...हे रे गाछी होकर इ मास्टर रोज जाता है..चौक पर साइकिल लगाकर चाय पान कर के तब स्कूल जाता है। त पहले से हम बाल बुतरुक चौक पर हाजिर। दु गो इधर दु गो उधर। मास्टर साहब एकदम फ्रेश हो कर साइकिल से उतरे ..बायाँ दायाँ देखा..हाथ जेब में...दु गो सिक्का एगो छौरा को दिया ...छौरा एगो पत्ता में कुछ लेकर हाजिर .....बकरी के नेरी जैसा हरा ...गलगर....चार गोली भीतर...फ़िर चाय...फ़िर काला पीला फकीरा...फ़िर स्कूल....फ़िर क्लास.....फ़िर पढ़ाई चालू ''बच्चों शिक्षक राष्ट्र के निर्माता होते हैं ,उनके आचरण को आत्मसात करके ही छात्र उज्जवल भविष्य की और जा सकता है''
ठीके बात बोले सर जी आप। तो उस गोल्गर आइटम की छवि अंकित हो गयीहम पर। आज भी उस दिन को याद करते है तो झुरझुरी सी हो जाती है शरीर में की उसी दिन स्कूल से छुट्टी होने के बाद हम चारों बच्चे पहुँच गए उस दूकान पर जहाँ से मास्टर जी ने हरियरका गिला था। पचास-पचास पैसा हिस्सा पड़ा ....चार गोली ..दो रुपैया चुपचाप चापाकल पर जाकर गटक लिए। कंठ से निचे उतरा तो गंद सीटी बजाने लगा ..तनी देर में मिजाएज एकदम टुन्न ..सब चीज हरा-हरा ...घर पहुँचते पहुँचते एकदम भोथ...दुआर पर रामेसरा कोना दाब के मूत रहा था छुट गई हँसी... अब लो ..इ हँसी रुकवे न करे ...हँसे जा रहे हैं...हँसे जा रहे हैं...हल्ला सुन कर माई दुआरी पर आई। मेरा लाफिंग बढ़ता ही जा रथा था,नो कंट्रोल यार .....जब माई ने झोंटा पकड़ कर झुलाया तो तनी शांत हुए हम। लेकिन माई ली टेब की जरुर कोई गड़बड़ है फ़िर एकाध घंटा के बाद भोजन हाजिर ....दो चार छः आठ रोटी ...सब्जी...रपेट रहे हैं ....घानी घट्बे नही कर रहा था.....जबरदस्ती माँ ने उठाया .....पालथी मार कर खाने से गोर में झुनझुनी लग गयी थी सो उठते ही लरफारा कर गिर पड़े...लो अब तो हो गया किलिअर ....कुल खानदान करम धरम...सब साफ...सब धो दिया लुच्चा कुपातर बेल्लाज्जा। लाज के मारे सिर निचे ...आँख ज्वालामुखी की तरह बम्मा मेल ....बिस्तर पर घोलटा की घूर्णन गति चालू.....अगले दिन दस बजे जाकर नींद खुली ,किसी से नजर मिलाने में भी आफत ....लेकिन अब करें भी तो क्या करें.ग्लानी भी हुई,लंबा चौडा प्रवचन सुनकर कसम खाया की आज दिन के बाद कभ्भी भौन्सरी को देखूंगा भी नही...लेकिन डाक्टर साहेब ने जब महा शिवरात्री से ही डंका बजा दिया है तो लीजिए आज फूल टाईट मूड में आए हैं इधर...आदेश हो हुजुर ....आज इ मूड में किसकी पेलाई ..किधर से कब तक कितनी बार करें दद्दा...वैसे मज्जा तो अब आवेगा ..अपने ग्रीन लाईट भाई महा गुरु से दारु पार्टी की डिमांड किए हुए हैं....तनी सुनिए न...डाक्टर साहेब तनी कान लाइए न इधर ..इ भांग संग दारु के परिणय से कौनो रिएक्सनो होता है का?आब चिकर के मत बोलिएगा...नही तो गुरु घंटाल के मूड को तो जानते ही हैं न...कहीं बम्के तो '' भांग के साथ दारु बैन'' तनी ज्यादा उखड़े तो ''भडास'' बैन .....लेकिन हम भी गुरु तोरे चेला हैं ....एब्की होली में देखिएगा डाक्टर साहब .....चुप्पेचाप महागुरु के पैग में एगो भांग के गोली गिरा देंगे...तब देखिएगा होली का आनंद .....
''होली खेलत यशवंत लालानमा...चेला चपाटी संग भडास के अन्गन्मा....जोगी जी धीरे धीरे...छौरा सब कछ्छातीरे... त बोलो सा रा रा रा रा ......जोगी जी सा रा रा ....बोलो होरी वाली भौजी की।
जय भडास
जय यशवंत
मनीष राज बेगुसराय
मनीष भाई,मजा आ गया ;मैंने बहुत पहले एक शोधपत्र लिखा था बहुत मजेदार बन गया था उसका शीर्षक था - "नशा और प्रयोगवाद"
ReplyDeletejio raja...aisa hi likho re bhaiya...
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