नहाने के बाद प्राची अपने बाल झाड़ रही थी . बाल झाड़ने के बाद वह अपनी मांग मे सिंदूर भरने लगी . एक सींक से उसने दो जगह सिंदूर लगाया -एक आगे और एक थोड़ा पीछे . उसकी सहेली जो उसके पास ही बैठी थी बोली -तुम आगे -पीछे दो जगह सिंदूर क्यों लगाती हो ? मैं तो एक ही जगह लगाती हूँ .
अब इसका भी कोई अर्थ है क्या ? बस लगाती हूँ . प्राची ने सहज भाव से कहा .
मुझे तो लगता है इसमे कुछ राज है . तुम मुझसे छुपा रही हो .- यह कहकर उसकी सहेली मुस्कुराने लगी
उसके कौतुहल को और बढाते हुए प्राची ने कहा -हाँ राज है . सामने वाला टीका मैं अपने पति के लिए लगाती हूँ और पीछे वाला टीका अपने पूर्व प्रेमी के लिए . एक मेरा सुहाग है , एक मेरा -जीवन भर का दर्द . एक मेरा भाग्य है , एक मेरा प्यार . दिल की सच्चाइयों को झुठलाने के बजाय उन्हें स्वीकार लेना ज्यादा बेहतर है . स्त्री दुनिया से झूठ बोल सकती है , लेकिन अपने दिल से झूठ नही बोल सकती .
(यह लघु कथा आपको जैसी भी लगी , इसके लेखक प्रो राम जी राय को अपनी राय बताएं फोन -०६२२४-२६५४८८ . मोबाइल-०९९३४९८२३०६ (ब्रज कुमार पाण्डेय ) )
पंडित जी एक बार स्व.पिताजी के कहने पर जवानी के दिनों में एक लड़की देखने गये थे (अरे भाई शादी के लिये वैसे तो उस समय ये हमारा राष्ट्रीय कार्यक्रम हुआ करता था) तो उसकी मां ने तो डैश-डैश में मांग भर रखी थी......हे भगवान--- हे भगवान....
ReplyDeleteहमरी वाली तो कहौ कि डौट-डौट में भरती.... हे भगवान...
सुंदर रचना है समाज और निजता के बीच की चरमराहट को उधेड़ रही है...
do mang dekhara pata lag jaaega rahsya kya hai..
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