सीन एक , टेक टू
पता नही इस दिमाग की गाड़ी को ऐसा क्या हो गया है , साला बिना सीन एक के और टेक टू के बिना काम ही नही करता। इस लिए बोले सीन एक।
इधर कई दिनों से मोहल्ले पर जाना बंद कर दिया है , लेकिन मीडिया से जुडा हूँ तो भडास से दो चार होना ही पड़ता है, (इसमे खबरें जो रहती हैं, यशवंत भाई , आपका खबरों वाला कालम सुपर हिट है ), बहरहाल भडास से ही पता चला कि कुछ देसी विदेशी को लेकर जैसे मेरठ के किसी मोहल्ले मे दंगा हो गया है। भाई एकबारगी तो मैं सच मे डर गया, और वैसे भी आई बी की रिपोर्ट है कि यहाँ मुस्लिम धार्मिक स्थलों पर ९०० लौउड स्पीकर लग चुके हैं, ये लौउड स्पीकर पूरे क्षेत्र मे प्लान करके लगाये गए हैं। क्या आप जानते हैं दंगों मे इन लौउड स्पीकरों की क्या भूमिका होती है ? सबसे तेज कम्युनिकेशन इसी से होता है भाई... मेरा सवाल है ऐसा क्यों? जबकि मेरठ मे तकरीबन ५७ प्रतिशत मुस्लिम आबादी है । बहरहाल ये सारी बातें बाद मे
जहाँ तक मैं सोचता हूँ, विदेश का भी ध्यान हमे देना चाहिए, अच्छी बात है, आख़िर आदमी बड़ी बड़ी बातें करके ही तो महान होता है। जब तक आदमी बड़ा बड़ा लिखेगा नही , बड़ा बड़ा सोचेगा नही , बड़ा बड़ा बड़ा बड़ा ब्ला ब्ला ब्ला ब्ला कुछ ऐसा ही तो नही लग रहा है ?
भाई इतनी तो मुश्किलें हैं यहा... लेकिन मेरी समझ मे नही आता की क्या ये हिदू मुस्लिम विवाद जीवन को जैसे हम जीना चाहते हैं , एक सलीके से , एक शाइस्तगी से, लेकिन काम करते हुए, पूरी उर्जा के साथ, ऐसे जीने मे कोई मदद कर देंगे? मुझे नही लगता। ये सारी रोटियां सेंकने का चक्कर है , बैठे ठाले।
बाकी कल आराम से
राहुल, बजार
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