11.3.08

चंदू भाई, उन्हें माफ न करिए, उन्हें इगनोर करिए क्योंकि उन्हें पता है कि वे क्या कर रहे हैं

(इस पोस्ट के ठीक नीचे भड़ासी साथी बहार बरेलवी के लिए भी संदेश है...यशवंत)
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हे भगवान, उन्हें माफ न करो, क्योंकि वे खूब जानते हैं कि वे क्या कर रहे हैं...

चंदू भाई ने भड़ास पर मनीष राज की एक पोस्ट पर एक टिप्पणी की और मठाधीश भाई उसे ले उड़े। और नया शिगूफा, नई सनसनी पैदा करने में एक क्षण भी देर न करते हुए, चंदू भाई की निष्ठा, उनके अतीत और उनकी सोच-समझ पर तपाक से सवालिया निशान लगा दिया। कहां बातें हो रही थीं अंतरराष्ट्रीय विवादों और उससे जुड़ी प्रतिबद्धताओं की और इसी दौरान विवाद बढ़ाने और उसे बेचने का एक मौका मिलते देखा तो एकदम से अंतरराष्ट्रीय से सीधे आ गये गली कूचे में....दे तेरी की, ले तेरी की....करने। क्योंकि आदत तो आदत होती है, वो जाती नहीं है।

और जो हमेशा की स्टाइल रही है कि एकदम से धमाका करो ताकि अगला पीड़ित आदमी बिना सोचे समझे आकर चरणों पर गिर पड़े, दुहाई हुजूर की....करते हुए। या फिर एकदम से अकबक सकबक ले तेरी की दे तेरी की स्टाइल में करते हुए जवाब देने लगे, जैसे भड़ास और भड़ासियों ने किया। हालांकि मैंने यह कह रखा है कि मैं किसी महान ब्लागर और उसके ब्लाग को लक्षित करते हुए नहीं लिखूंगा लेकिन भाई लोग हैं कि उंगली करना बंद नहीं कर रहे हैं। भड़ास से दिक्कत भी है, भड़ास को बैन भी करवाना चाहते हैं और भड़ास को पढ़ते भी हैं, देखते भी हैं। तभी तो चंदू भाई की टिप्पणी भड़ास से ले उड़े और अपने ब्लाग पर ले जाकर चिपका दिया, और चिल्लाने लगे....ये देखो, चंद्रभूषण का, जिनका इतना अच्छा इतिहास रहा है और अब वो ये कह रहे हैं.....।

चंदू भाई, आपकी सज्जनता है जो आपने इतनी विनम्रता से अपना पक्ष रख दिया वहां, इस अंदाज में कि वो नहीं जानते वो क्या कर रहे हैं, हे भगवान, उन्हें माफ करो......और बेचारे को प्यारे प्यारे कहकर दुलरा दिया लेकिन दरअसल ये हम जैसे लोगों की हार है क्योंकि हम अगर वहां जाकर कमेंट करते हैं तो उसे वो अपनी जीत के रूप में लेते हैं और खुद को मजबूत मानते हुए मठाधीशी बढ़ाने के अपने अभियान में लग जाते हैं। वे फिर निकल पड़ते हैं शिकार की तलाश में। किसी फिर जिनुइन आदमी को पकड़कर उसकी ऐसी तैसी करेंगे और उससे कहेंगे कि अब तो तुम फंस गए, आओ यहां सफाई दो, कचहरी लगी हुई है, अदालत चल रही है, अपना बयान दर्ज कराओ, फैसला हम सुनायेंगे।

मेरे खयाल से ब्लाग मठाधीशी के अंत के लिए कुछ फंडे बहुत कारगर हैं, जिसे मैं यहां सूत्रबद्ध करना चाहूंगा....

1- मठाधीश द्वारा पैदा किए गए किसी विवाद, बहस या बैठक का हिस्सा न बनो, सब जानते सुनते हुए भी उन्हें इगनोर करो। तब वो खुद ब खुद ठंडा पड़ जाएंगे।

2- जो भी विवाद या बहस या चर्चा मठाधीश द्वारा शुरू की जाती है, उसके लक्ष्य में टीआरपी बटोरना होता है क्योंकि जो सिद्धांत व व्यवहार में इतना अंतर रखता हो उसकी बहसों की जेनुइननिटी पर शक करना चाहिए। इसीलिए अब जबकि हर चीज का पर्दाफाश हो चुका है, ऐसी चर्चाओं, बहसों को इग्नोर करना सीखें।

3- मसला चाहें अति अंतरराष्ट्रीय हो या अति स्थानीय, उसे हमेशा सर्वाधिक सनसनीखेज बनाने की कोशिश की जाती है, और अगर सनसनी नहीं पैदा होती है तो उसमें अनाम नाम से इतने एक्सट्रीमिस्ट कमेंट डाल दिये जाते हैं कि आप बिना जवाब दिये नहीं रह सकते। तो आपके अंदर ये जो जवाब देने की ललक पैदा की जाती है उस ललक को खत्म करिए। पढ़िए, गुनिए और चुपचाप निकल लीजिए।

4- मठाधीश के ब्लाग को हफ्ते में एक बार देखें और सबको चाट जाएं। हमेशा वहां चल रहे मुद्दों, बहसों से खुद को अनभिज्ञ रखें और आपको जो भी कहना है अपने ब्लाग के जरिए कहें। कभी भी मठाधीश के ब्लाग के जरिए खुद सफाई देने की कोशिश न करें।

5- कोशिश करें कि जो मठाधीश लोग आपको टारगेट पर लेते हों, बजाय उनके सामने सफाई देने व समझाने के, उनके ही चाल चरित्र व्यवहार पर सवाल खड़ा कर दो।


तो ये है मेरी कुछ नसीहतें व सुझाव, जिन्हें अगर आप अपनाएं तो मठाधीशों की मठाधीशी खुद ब खुद खत्म हो जाएगी। चंदू भाई से इस अनुरोध के साथ ये सब लिख रहा हूं कि अगर कुछ भी मेरे लिखे से बुरा लगा हो तो माफ करें। मैं कतई आपको मोहरा या पार्टीबंदी या खेमेबंदी का पार्ट नहीं बनाना चाहता लेकिन जिस तरह से भड़ास पर मनीष राज की पोस्ट पर की गई आपकी टिप्पणी को सवाल बनाया गया, उससे मुझे दिल से कष्ट हुआ। साथ ही जिस अंदाज में सवाल खड़ा किया गया वो काफी तकलीफदेह है। आपके अतीत व आपकी सोच व आपकी विचारधारा पर ही सवालिया निशान लगा दिया गया, एक छोटी सी टिप्पणी के कारण और ये कहीं भी किसी भी तरह से उचित नहीं है। मैं और भड़ास के सभी साथी इस कुकृत्य की निंदा करते हैं।

जय भड़ास
यशवंत

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((भड़ासी साथी बहार बरेलवी जी से अनुरोध....अपने भड़ासी साथी बहार बरेलवी ने अभी भड़ास पर एक पोस्ट डाली जिसे मैंने डिलीट कर दिया। इस पोस्ट में पोस्ट जैसा कुछ न था, सिर्फ एक ब्लागर की उर्दू कविताओं वाले ब्लाग का लिंक था, और उस लिंक को खोलने पर जो ब्लाग खुला उसमें कविताएं शुद्ध उर्दू में लिखी गई थीं जिसे समझना मेरे लिए असंभव है क्योंकि मैं उर्दू के शब्द में हिंदी में तो लिख पढ़ समझ सकता हूं पर उर्दू को उर्दू में नहीं पढ़ सकता। यही हालत ज्यादातर भड़ासियों की होगी। तो मेरा बहार बरेलवी जी से अनुरोध है कि वो अगर कोई पोस्ट डालें तो उसमें अपनी बात कहें, वो बात चाहे जिस भी तरह की हो। मैं उनसे माफी मांगता हूं कि मैंने उन्हें बिना बताए वो पोस्ट डिलीट कर दी पर इसके पीछे मेरी मजबूरी को वो समझेंगे। सभी भड़ासी साथियों से भी अनुरोध करूंगा कि वो भड़ास पर पोस्ट डालें न कि किसी ब्लाग या किसी रचना का सिर्फ और सिर्फ लिंक पोस्ट कर दें। इससे भड़ास के पाठकों को निराशा होती है क्योंकि वो चाहते हैं कि जो भी बात हो, यहीं कही जाए भले उसके नीचे जिस पोस्ट से वो बात ली गई हो, उसका जिक्र कर उसका आभार प्रकट कर दिया जाए....यशवंत))

8 comments:

  1. DADA..DADA..DADA...NAYKI KANIYA JAB GHAR MEIN AATI HAI TO SAAS,NANAD SIKHATE HAIN,BUJURG MAHILAAEIN SAMJHATI HAIN TO MERE KO AISA HI SAMJHO NA. AB KABHI IDHAR UDHAR MUNH NAHI MARUNGAA.DADA PROMISE HAI PLEASE MAAF KAR DO NA.

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  2. दादा,आपका कहना एकदम सही है वो लोग बड़े ही शातिर हैं और भड़ासी भाई भोले तो वो कुटिलता का प्रयोग कर अपने शब्द हमारे मुंह में घुसा देते हैं और जब हम भावुक हो कर कुछ बोल देते हैं तो साले बात पकड़ कर बवाल मचाते हैं । इन पर ध्यान न देना ही ठीक है.....
    जय जय भड़ास

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  3. यशवंत सर,ये शरीफ़ दिखने वाले लोग तो कुछ ज्यादा ही कमीने हैं । अब आप जो कहते हैं वैसा ही करना चाहिये....
    जय भड़ास

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  4. mujhe behad pasand aayaa

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  5. bhai mazaa aa gayaa kyaa 4ke-6kke maar rahen hain aap

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  6. yshvnt g, sari buraee ke jd me avara paisa hai...blog me shayd paisa bhi aane lga to mthadhisi bhi shuroo ho gyi....aap bchna guru....vaise avinash ka gaja ka swal chhota nhi...insaniyt kahi bhi pidit ho...hme uske lie chahe jahan ho...awaj uthani chahie...bura to nhi man rhe ho guru...

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  7. प्यारे बच्चों,मैं मुनव्वर सुल्ताना का बाप हूं और अब एक बूढ़ा सिपाही बक्काड़बाजी के मैदान में आया है । डा.रूपेश का दिल से शुक्रिया कि उन्होंने मेरे यूं ही बेकार जाते बुढ़ापे को ब्लागिंग सिखाकर नयी दिशा दी है.....
    भड़ास ज़िन्दाबाद

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  8. प्यारे बच्चों,मैं मुनव्वर सुल्ताना का बाप हूं और अब एक बूढ़ा सिपाही बक्काड़बाजी के मैदान में आया है । डा.रूपेश का दिल से शुक्रिया कि उन्होंने मेरे यूं ही बेकार जाते बुढ़ापे को ब्लागिंग सिखाकर नयी दिशा दी है.....
    भड़ास ज़िन्दाबाद

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